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दानशील व कृपालु इमाम हसन का जन्म दिवस

दानशील व कृपालु इमाम हसन का जन्म दिवस

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती, हज़रत अली एवं हज़रत फ़ातेमा अलैहिमस्सलाम के सुपुत्र हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।

रमज़ान के पवित्र महीने की पंद्रह तारीख़ को हज़रत अली एवं फ़ातेमा ज़हरा अलैहिमस्सलाम के घर में एक फूल खिला जिसकी सुगंध से पूरा मदीना नगर महक उठा। नवजात शिशु को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की गोदी में दिया गया। आपने अपने नाति के कानों में सबसे पहले ईश्वर के अनन्य होने की गवाही दोहराई, फिर उसके मुख को चूमा और ईश्वरीय आदेशानुसार उसका नाम हसन रखा जिसका अर्थ होता है, सुंदर और भला।

वस्तुत:इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म से ही पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का वंश चला है। उनके जन्म से पहले तक मक्के के अनेकेश्वरवादी पैग़म्बर को नि:संतान होने का ताना देकर उन पर कटाक्ष किया करते थे किंतु इमाम हसन के जन्म ने उनके मुंह बंद कर दिए। पैग़म्बर का कथन है कि संतान फूल है और संसार में मेरे दो फूल हसन और हुसैन हैं। इमाम हसन अलैहिस्सलाम का यह स्वर्ण कथन हर मुसलमान को अपने मन और हृदय में जागृत रखना चाहिए कि लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो लोग तुम्हारे साथ व्यवहार करें।

ईरान के प्रख्यात कवि जलालुद्दीन मौलवी ने अपने काव्य लेख मसनवीये मानवी में परिपूर्णता की ओर मनुष्य के बढ़ने की प्रक्रिया को एक विशेष ढंग से रेखांकित किया है। वे बत्तख़ के अण्डों का उदाहरण देते हैं जिन्हें मुर्ग़ी सेती है और बत्तख़ के चूज़े अण्डों से बाहर निकलते हैं किंतु जैसे ही वे अपने आपको पहचानते हैं और उन्हें पता चलता है कि उनकी प्रवृत्ति मिट्टी की नहीं है तो वे पानी की ओर चल पड़ते हैं। मौलवी इस उदाहरण के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि यद्यपि हम मनुष्य भी मिट्टी में ही प्रशिक्षण पाते हैं और यहीं पर पलते बढ़ते हैं किंतु हमें परिपूर्णता की ओर अग्रसर होना चाहिए। इसी कारण ईश्वर ने मनुष्यों से कहा है कि वे उंचे क्षितिजों की ओर क़दम बढ़ाएं और बुरे कर्मों की ओर प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से उन्मुख न हों क्योंकि ऐसे कर्म मनुष्य को उंची उड़ान से रोक देते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनानुसार मनुष्य की परिपूर्णता, कल्याण और मोक्ष के लिए उनके परिजनों को आदर्श बनाया जाना चाहिए क्योंकि वे क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं की छत्र छाया में बड़े हुए हैं और उनकी कथनी और करनी पूर्ण रुप से क़ुरआनी शिक्षाओं के अनुसार है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी इन्हीं लोगों में से एक हैं। वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वीर एवं साहसी पुत्र थे। जब माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने उनका प्रशिक्षण आरंभ किया तो उनसे कहा कि मेरे प्रिय पुत्र अपने पिता अली की भांति बनो, सत्य के मार्ग में मौजूद बाधाओं को दूर करो, कृपाशील ईश्वर की उपासना करो और शत्रुओं तथा द्वेष रखने वालों से मित्रता न करो।

वाकपटुता और शब्दालंकार में अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम की भांति इमाम हसन को विशेष दक्षता प्राप्त थी। वे अत्यंत साहसी और दानी थे। दीन दुखियों और दरिद्रों की सहायता करने में वे बहुत प्रसिद्ध थे, इसी कारण उन्हें दानशाली की उपाधि दी गई थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम उन चार लोगों में से एक थे जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व बलेही व सल्लम ईसाइयों के धर्मगुरुओं के साथ मुबाहेला अर्थात अपनी सत्यता को सिद्ध करने के लिये झूठ बोलने वाले पक्ष पर ईश्वरीय प्रकोप की दुआ के लिए अपने सबसे निकट लोगों के रुप में ले गए थे। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जो कोई ईश्वर की मज़बूत रस्सी को थामना चाहे, जिसके बारे में क़ुरआने मजीद ने कहा है कि वह टूटने वाली नहीं है, तो वह अली तथा हसन और हुसैन से प्रेम करे क्योंकि ईश्वर इनसे प्रेम करता है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम आध्यात्मिक विशेषताओं और सदगुणों का उत्तम उदाहरण थे। वे सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते थे। अपने सदगुणों और शिष्टाचार से उन्होंने लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था, इसी के साथ विनम्रता और दूसरों का सम्मान आप के चरित्र का अटूट भाग था। इमाम हसन अलैहिस्सलाम मुआविया के समकालीन थे। दोनों के व्यक्तित्व पूर्ण रुप से भिन्न थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम इस्लाम और उसकी प्रकाशमयी मान्यताओं को पुनर्जागृत करने का प्रयास कर रहे थे जबकि मुआविया केवल अपनी राजनैतिक स्थिति और सत्ता विस्तार के बारे में सोचता था। वह इमाम हसन के सदगुणों और चारित्रित विशेषताओं से पूर्णत: अवगत था अत: वह उनके सामने आने से कतराता था। उसका कहना था कि मैंने हसन को जब भी देखा तो उनसे प्रभावित हो गया और मुझे इस बात का भय हुआ कि कहीं वे मुझ पर टिप्पणी न कर दें।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम चारित्रिक दृष्टि से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से अत्यधिक समानता रखते थे। भय और डर कभी भी उनके अस्तित्व में स्थान नहीं बना सका। अपने अद्वितीय साहस के साथ ही वे अत्यंत कृपालु व दयालु थे। एक बार वे कहीं जा रहे थे कि शत्रुओं द्वारा भड़काए गए एक वृद्ध व्यक्ति ने आप को रोक कर कुछ अपशब्द कहे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसके अपमानजनक व्यवहार पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और जब वह मन भर कर आप को बुरा भला कह चुका तो आपने मुस्कुराते हुए उससे कहा कि मुझे तू यहां अजनबी प्रतीत होता है और ऐसा लगता है कि तुझे कुछ भ्रांति हो गई है। यदि तू भूखा है तो मैं तुझे खाना देता हूं, यदि तू निर्धन है तो मैं तेरी आवश्यकता की पूर्ति कर देता हूं, यदि तुझे शरण चाहिए तो उसके लिए भी मैं तैयार हूं और यदि तुझे मार्गदर्शन की आवश्यकता है तो भी मैं तेरी सहायता कर सकता हूं। वह वृद्ध व्यक्ति इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बातों से अत्यधिक प्रभावित हुआ और रोने लगा। उसने कहा कि आज तक मैं आप और आपके पिता से सबसे अधिक घृणा करता था किंतु अब मेरी दृष्टि में आप लोगों से बेहतर कोई नहीं है।

मित्रो आप सबकी सेवा में एक बार पुन: पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हुए उनके कुछ स्वर्ण कथनों से अपनी विशेष चर्चा को समाप्त करते हैं। वे कहते हैं। जो कोई विचार विमर्श के पश्चात कोई कार्य करता है तो उसे सही मार्ग और परिपूर्णता प्राप्त हो जाती है।एक अन्य स्थान पर इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मांगने से पहले ही दे देना सबसे बड़ी महानता है।


source : hindi.irib.ir
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