Hindi
Thursday 18th of April 2024
0
نفر 0

वहाबियत या जंगलीपन

वहाबियत या जंगलीपन

हिंसा और निर्दयता में प्रसिद्ध सऊद इब्ने अब्दुल अज़ीज़ ने मक्के पर क़ब्ज़ा करने के दौरान सुन्नी समुदाय के बहुत से विद्वानों को अकारण ही मार डाला और मक्के के बहुत से प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित लोगों को बिना किसी आरोप के फांसी पर चढ़ा दिया। प्रत्येक मुसलमान को, जो अपनी धार्मिक आस्थाओं पर डटा रहता है, विभिन्न प्रकार की यातनाओं द्वारा डराया जाता है और नगर-नगर और गांव-गांव में पुकार लगाने वाले भेजे जाते थे और वे ढ़िढोंरा पीट पीट कर लोगों से कहते थे कि हे लोगो सऊद के धर्म में प्रविष्ट हो जाओ और उसकी व्यापक छत्रछाया में शरण प्राप्त करो।
उस्मानी शासन के नौसेना प्रशिक्षण केन्द्र के एक उच्च अधिकारी अय्यूब सबूरी लिखते हैं कि अब्दुल अज़ीज़ इब्ने सऊद ने वहाबी क़बीलों के सरदारों की उपस्थिति में अपने पहले भाषण में कहा कि हमें सभी नगरों और समस्त आबादियों पर क़ब्ज़ा करना चाहिए। अपनी आस्थाओं और आदेशों को उन्हें सिखाना चाहिए। हम अपनी इच्छाओं को व्यवहारिक करने के लिए सुन्नी समुदाय के उन धर्मगुरूओं का ज़मीन से सफाया करने पर विवश हैं जो सुन्नते नबवी और शरीअते मुहम्मदी अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के चरित्र तथा मत का अनुसरण करने का दावा करते हैं, विशेषकर प्रसिद्ध व जाने माने धर्मगुरूओं को तो बिल्कुल नहीं छोड़ेंगे क्योकि जब तक वे जीवित हैं, हमारे अनुयायी प्रसन्न नहीं हो पाएंगे। इस प्रकार से सबसे पहले उन लोगों का सफाया करना चाहिए जो स्वयं को धर्मगुरू के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
सऊद इब्ने अब्दुल अज़ीज़, मक्के का अतिग्रहण करने के बाद अरब उपमहाद्वीप के दूसरे महत्त्वपूर्ण नगरों पर क़ब्ज़े के प्रयास में रहा और इस बार उसने जद्दह पर आक्रमण किया। इब्ने बुशर जो स्वयं वहाबी है, तारीख़े नज्दी नामक पुस्तक में लिखता है कि सऊद, बीस दिनों से अधिक समय तक मक्के में रहा और उसके बाद वह जद्दह पर क़ब्ज़े के लिए मक्के से निकला। उसने जद्दह का परिवेष्टन किया किन्तु जद्दह के शासक ने बहुत से वहाबियों को तोप से उड़ा दिया और उन्हें भागने पर विवश कर दिया। इस पराजय के बाद वहाबी मक्के नहीं लौटे बल्कि वे अपनी मुख्य धरती अर्थात नज्द चले गये क्योकि उन्होंने सुना था कि ईरान की सेना ने नज्द पर आक्रमण कर दिया है। यह स्थिति मक्के को वहाबियों के हाथों से छुड़ाने का सुनहरा अवसर थी। मक्के के शासक शरीफ़ ग़ालिब ने, जो वहाबियों के आक्रमण के बाद जद्दह भाग गया था, जद्दह के शासक के सहयोग से भारी संख्या में सैनिकों को मक्के भेजा। यह सैनिक तोप और गोलों से लैस थे और वहाबियों की छोटी सी सेना को पराजित करने और मक्के पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे।
इसके बावजूद संसार के मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थान मक्के पर क़ब्ज़े के लिए वहाबियों ने यथावत प्रयास जारी रखे। वर्ष 1804 में सऊद के आदेशानुसार जो वहाबियों का सबसे शक्तिशाली शासक समझा जाता है, पवित्र नगर मक्के का पुनः परिवेष्टन कर लिया गया। उसने मक्केवासियों पर बहुत अत्याचार किया यहां तक कि बहुत से मक्कावासी भूख और अकाल के कारण काल के गाल में समा गये।
सऊद के आदेशानुसार, मक्के के समस्त मार्गों को बंद कर दिया गया और जितने भी लोगों ने मक्के में शरण ले रखी थी, सबकी हत्या कर दी गयी। इतिहास में आया है कि मक्के में बहुत से बच्चे मारे गये और मक्के की गलियों में उनके शव कई दिनों तक पड़े रहे।
मक्के के शासक शरीफ़ ग़ालिब ने जिसके पास वहाबियों से संधि करने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं था, वर्ष 1805 में वहाबियों से संधि कर ली। इतिहासकारों ने इस संदर्भ में लिखा कि मक्के के शासक ने भय के मारे वहाबियों के आदेशों का पालन किया। मक्के पर उनके वर्चस्व के समय वह उनके साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करता रहा और उसने वहाबी धर्मगुरूओं को बहुत ही मूल्यवान उपहार दिए ताकि अपनी और मक्केवासियों की जान की रक्षा करे।
वहाबियों द्वारा मक्के के पुनः अतिग्रहण के बाद उन्होंने चार वर्षों तक इराक़ी तीर्थयात्रियों के लिए, वर्तमान सीरिया अर्थात शामवासियों के लिए तीन वर्षों तक और मिस्र वासियों के लिए दो वर्षों तक के लिए हज के आध्यात्मिक व मानवीय संस्कारों पर रोक लगा दी।
मक्के पर अतिग्रहण के बाद सऊद  ने पवित्र नगर मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बारे में सोचा और इस पवित्र नगर का भी परिवेष्टन कर लिया किन्तु वहाबियों की भ्रष्ट आस्थाओं व हिंसाओं से अवगत, मदीनावासियों ने उनके मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध किया। अंततः वर्ष 1806 में पवित्र नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। वहाबियों ने पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के रौज़े में मौजूद समस्त मूल्यवान चीज़ों को लूट लिया किन्तु समस्त मुसलमानों के विरोध के भय से रसूले इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र रौज़े को ध्वस्त न कर सके। वहाबियों ने चार पेटियों में भरे हीरे और मूल्यवान रत्नों से बनी विभिन्न प्रकार की चीज़ों को लूट लिया। इसी प्रकार मूल्यवान ज़मुर्रद से बने चार शमादान को जिनमें मोमबत्ती के बदले रात में चमकने वाले और प्रकाशमयी हीरे रखे जाते थे, चुरा लिया।
उन्होंने इसी प्रकार सौ तलवारों को भी चुरा लिया जिनका ग़ेलाफ़ शुद्ध सोने का बना हुआ था और जो याक़ूत और हीरे जैसे मूल्यवान पत्थरों से सुसज्जित थीं जिनका दस्ता ज़मुर्रद और ज़बरजद जैसे मूल्यवान पत्थरों का था। सऊद इब्ने अज़ीज़ ने मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बाद समस्त मदीना वासियों को मस्जिदुन्नबी में एकत्रित किया और इस प्रकार से अपनी बातों को आरंभ किया। हे मदीनावासियों, आज हमने धर्म को तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिया। तुम्हारे धर्म और क़ानून परिपूर्ण हो गये और तुम इस्लाम की विभूतियों से तृप्त हो गये, ईश्वर तुम से राज़ी व प्रसन्न हुआ, अब पूर्वजों के भ्रष्ट धर्मों को अपने से दूर कर दो और कभी भी उसे भलाई से न याद करो और पूर्वजों पर सलवात भेजने से बहुत बचो क्योंकि वे सबके सब अनेकेश्वरवादी विचारधरा अर्थात शिरक में मरे हैं।
सऊद ने अपनी सैन्य चढ़ाइयों में बहुत से लोगों का नरसंहार किया। उसकी और उस समय के वहाबी पंथ की भीषण हिंसाओं से अरब जनता और शासक भय से कांपते थे। इस प्रकार से कि कोई मारे जाने के भय से हज या ज़ियारत के लिए मक्के और मदीने की यात्रा करने का साहस भी नहीं करता था। मक्के के शासक ने अपनी जान के भय से, सऊद की इच्छानुसार, मक्के और मदीने में पवित्र स्थलों और जन्नतुल बक़ीअ क़ब्रिस्तान को ध्वस्त करने का आदेश दिया। उसने हिजाज़ में वहाबी धर्म को औपचारिकता दी और जैसा कि वहाबी चाहते थे, अज़ान से पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम पर सलवात भेजने को हटा दिया। अरब शासकों और हेजाज़ के प्रतिष्ठित लोगों ने जो इस पथभ्रष्ट पंथ की आस्थाओं और ज़ोरज़बरदस्तियों को सहन करने का साहस नहीं रखते थे, सबसे उच्चाधिकारी अर्थात उस्मानी शासक को पत्र लिखकर वहाबियों की दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई शक्ति के ख़तरों से सचेत किया।  उन्होंने बल दिया कि वहाबी पंथ केवल सऊदी अरब तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका इरादा समस्त मुसलमानों पर वर्चस्व जमाना और पूरे उस्मानी शासन पर क़ब्ज़ा करना है।
हेजाज़, यमन, मिस्र, फ़िलिस्तीन, सीरिया और इराक़ जैसी इस्लामी धरती पर शासन करने वाली उस्मानी सरकार ने मिस्र के शासक को वहाबियों से युद्ध करने का आदेश दिया। यह वही समय था जब सऊद 66 वर्ष की आयु में दिरइये नामक स्थान पर कैंसर में ग्रस्त होकर मर गया और उसका अब्दुल्लाह नामक पुत्र उसकी जगह बैठा।
उस्मानी सरकार की ओज्ञ से लैस मिस्र का शासक मुहम्मद अली पाशा वहाबियों को विभिन्न युद्धों में पराजित करने में सफल रहा और उसने वहाबियों के चंगुल से मक्के, मदीने और ताएफ़ को स्वतंत्र करा दिया। मिस्र के शासक ने इन युद्धों में वहाबियों के बहुत से कमान्डरों को गिरफ़्तार कर उस्मानी शासन की राजधानी इस्तांबोल भेज दिया। इस विजय के बाद मिस्र में जनता ने ख़ुशियां मनाई और विभिन्न समारोहों का आयोजन किया किन्तु वहाबियों की शैतानी अभी समाप्त नहीं हुई थी। मिस्र का शासक मुहम्मद अली पाशा ने समुद्री मार्ग से एक बार फिर अपनी सेना हेजाज़ भेजी। उसने मक्के को अपनी सैन्य छावनी बनाई और मक्के के शासक और उसके पुत्र को देश  निकाला दे दिया और उनके माल को ज़ब्त कर लिया। उसके बाद वह मिस्र लौट आया और उसने अपनी ही जाति के इब्राहीम पाशा नामक व्यक्ति को लैस करके नज्द की ओर भेजा।
इब्राहीम पाशा ने वहाबियों के केन्द्र नज्द के दिरइये नगर का परिवेष्टन कर लिया। वहाबियों ने इब्राहीम पाशा के मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध किया। तोप और गर्म हथियारों से लैस इब्राहीम पाशा ने दिरइये पर क़ब्ज़ा कर लिया और अब्दुल्लाह इब्ने सऊद को गिरफ़्तार कर लिया। अब्दुल्लाह इब्ने सऊद को उसके साथियों और निकटवर्तियों के साथ उस्मानी शासक के पास भेज दिया दिया गया। उस्मानी शासक ने अब्दुल्लाह और उसके साथियों को बाज़ारों और नगरों में फिराने के बाद उन्हें मृत्युदंड दे दिया। अब्दुल्लाह इब्ने सऊद के मारे जाने के बाद तत्कालीन शसक आले सऊद और उसके बहुत से साथियों ने विभिन्न इस्लामी जगहों पर समारोहों का आयोजन किया और बहुत ख़ुशियां मनाई।

इब्राहीम पाशा लगभग नौ महीने तक दिरइये नगर में रहा और उसके बाद उसने इस नगर को वासियों से ख़ाली कराने का आदेश दिया और उसके बाद नगर को बर्बाद कर दिया। इब्राहीम पाशा ने मुहम्मद इब्ने अब्दुलवह्हाब और आले सऊद की जाति और उसके बहुत से पौत्रों को मरवा दिया या देश निकाला दे दिया ताकि फिर इस ख़तरनाक पंथ का नाम लेने वाला कोई न रहे। उसके बाद नज्द और हेजाज़ में उस्मानी शासक की सफलताओं का श्रेय मिस्र के शासक मुहम्मद अली पाशा को जाता है। इस प्रकार से 1818 में वहाबियों का दमन हुआ और उसके लगभग एक शताब्दी तक वहाबियों का नाम लेने वाला कोई नहीं था।
सऊदी अरब में नज्द की धरती पर मिस्रियों की चढ़ाई का बहुत ही उल्लेखनीय परिणाम निकला था। अब्दुल अज़ीज़ और उसके पुत्र सऊद का विस्तृत देश बिखर गया और बहुत से वहाबी मारे गये। वहाबी पंथ का निमंत्रण और लोगों पर इस भ्रष्ट आस्था को थोपने का क्रम रूक गया और वहाबियों को लेकर लोगों के दिलों में जो भय था, वह समाप्त हो गया।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

पवित्र रमज़ान पर विशेष ...
इमाम हसन अ. की शहादत
मोहर्रम गमों और आँसुओं का महीना
पवित्र रमज़ान-20
ग़ैबत की क़िस्में
समस्त धमकियों और ख़तरों के बावजूद ...
उन्नीस मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले ...
पवित्र रमज़ान-23
करबला....अक़ीदा व अमल में तौहीद
व्यापक दया के गोशे

 
user comment