Hindi
Saturday 20th of April 2024
0
نفر 0

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय



नाम व अलक़ाब (उपाधियाँ) :    अल-मुज्तबा, अबू मोहम्मद (1)


माता पिता :    हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम तथा आपकी माता हज़रत फ़ातिमा ज़हरा थीं। आप अपने माता पिता की प्रथम संतान थे।


जन्म तिथि व जन्म स्थान  :     हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म रमज़ान मास की पन्द्रहवी (15) तारीख को सन् तीन (3) हिजरी में मदीना नामक शहर में हुआ था। जलालुद्दीन नामक इतिहासकार अपनी किताब तारीख़ुल खुलफ़ा में लिखता है कि आपकी मुखाकृति हज़रत पैगम्बर से बहुत अधिक मिलती थी।


शहादत (स्वर्गवास) :    इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई ।माविया के षड़यन्त्र स्वरूप आपकी जोदा नामक पत्नि ने आपके पीने के पानी मे विष मिला दिया था। यही विष आपकी शहादत का कारण बना।


समाधि     इमाम हसन अलैहिस्सलाम के ताबूत(अर्थी) को जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान में आपको आपकी दादी हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद के बराबर में दफ़्न कर दिया गया।


पालन पोषण


हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पालन पोषन आपके माता पिता व आपके नाना हज़रत पैगम्बर (स0) की देख रेख में हुआ। तथा इन तीनो महान् व्यक्तियों ने मिल कर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।


हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत का समय


शिया सम्प्रदाय की विचारधारा के अनुसार इमाम जन्म से ही इमाम होता है। परन्तु वह अपने से पहले वाले इमाम के स्वर्गवास के बाद ही इमामत के पद को ग्रहन करता है। अतः हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी अपने पिता हज़रत इमाम अली की शहादत के बाद इमामत पद को सँभाला।


जब आपने इमामत के पवित्र पद को ग्रहन किया तो चारो और अराजकता फैली हुई थी। व इसका कारण आपके पिता की आकस्मिक शहादत थी। अतः माविया ने जो कि शाम नामक प्रान्त का गवर्नर था इस स्थिति से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया।


इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सहयोगियों ने आप के साथ विश्वासघात किया उन्होने धन,दौलत, पद व सुविधाओं के लालच में माविया से साँठ गाँठ करली। इस स्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सम्मुख दो मार्ग थे एक तो यह कि शत्रु के साथ युद्ध करते हुए अपनी सेना के साथ शहीद होजाये। या दूसरे यह कि वह अपने सच्चे मित्रों व सेना को क़त्ल होने से बचालें व शत्रु से संधि करले । इस अवस्था में इमाम ने अपनी स्थित का सही अंकन किया सरदारों के विश्वासघात व सेन्य शक्ति के अभाव में माविया से संधि करना ही उचित समझा।


संधि की शर्तें


1- माविया को इस शर्त पर सत्ता हस्तान्त्रित की जाती है कि वह अल्लाह की किताब (कुरआन ) पैगम्बर व उनके नेक उत्तराधिकारियों की शैली के अनुसार कार्य करेगा।
2- माविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। माविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।


3-नमाज़े जुमा में इमाम अली पर होने वाला सब (अप शब्द कहना) समाप्त किया जाये। तथा हज़रत अली को अच्छाई के साथ याद किया जाये।


4-कूफ़े के धन कोष में मौजूद धन राशी पर माविया का कोई अधिकार न होगा। तथा वह प्रति वर्ष बीस लाख दिरहम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को भेजेगा। व शासकीय अता (धन प्रदानता) में बनी हाशिम को बनी उमैया पर वरीयता देगा। जमल व सिफ़्फ़ीन के युद्धो में भाग लेने वाले हज़रत इमाम अली के सैनिको के बच्चों के मध्य दस लाख दिरहमों का विभाजन किया जाये तथा यह धन रीशी इरान के दाराबगर्द नामक प्रदेश की आय से जुटाई जाये।


5-अल्लाह की पृथ्वी पर मानवता को सुरक्षा प्रदान की जाये चाहे वह शाम में रहते हों या यमन मे हिजाज़ में रहते हों या इराक़ में काले हों या गोरे। माविया को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति को उस के भूत काल के व्यवहार के कारण सज़ा न दे।इराक़ वासियों से शत्रुता पूर्ण व्यवहार न करे। हज़रत अली के समस्त सहयोगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाये। इमाम हसन अलैहिस्सलाम, इमाम हुसैन व पैगम्बर के परिवार के किसी भी सदस्य की प्रकट या परोक्ष रूप से बुराई न की जाये।


हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के संधि प्रस्ताव ने माविया के चेहरे पर पड़ी नक़ाब को उलट दिया तथा लोगों को उसके असली चेहरे से परिचित कराया कि माविया का वास्तविक चरित्र क्या है।


शहादत (स्वर्गवास)


इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई ।माविया के षड़यन्त्र स्वरूप आपकी जोदा नामक पत्नि ने आपके पीने के पानी मे विष मिला दिया था। यही विष आपकी शहादत का कारण बना।


समाधि


तबक़ाते इब्ने साद में उल्लेख मिलता है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अन्तिम चरण में कहा कि मुझे मेरे नाना के बराबर में दफ्न करना ।


अबुल फरज इसफ़हानी अपनी किताब मक़ातेलुत तालेबीन में उल्लेख करते हैं कि जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम को दफ़्न करने के लिए ले गये तो आयशा (हज़रत पैगम्बर की एक पत्नि जो पहले ख़लीफ़ा की पुत्री थी) उन्होंने इसका विरोध किया। तथा बनी उमैया व बनी मरवान आयशा की सहायता के लिए आगये व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के दफ़्न में बाधक बने।


अन्ततः इमाम हसन अलैहिस्सलाम के ताबूत (अर्थी) को जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान में लाया गया। व आपको आपकी दादी हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद के बराबर में दफ़्न कर दिया गया।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इमाम महदी अलैहिस्सलाम का वुजूद, ...
हुसैन(अ)के बा वफ़ा असहाब
कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की ...
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम हुसैन अ.स. का चेहलुम
वुज़ू के वक़्त की दुआऐ
इमाम अस्र (अ) कुरआने करीम की रौशनी ...
जीवन तथा ब्रह्माड़ मे पशुओ और जीव ...
सहीफ़ए सज्जादिया का परिचय
इमाम हसन(अ)की संधि की शर्तें

 
user comment