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सूराऐ युनुस की तफसीर



सूरए यूनुस, क़ुराने करीम का दसवां सूरा है जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पैग़म्बर बनने के शुरूआती दिनों में नाज़िल अर्थात अवतरित हुआ था। इस सूरे में 109 आयते हैं।


यूनुस एक ईश्वरीय दूत का नाम है। क़ुरान में यह नाम चार बार आया है। इस सूरे की 98वीं आयत में यूनुस नाम का उल्लेख है। इसी नाम पर इस सूरे का नाम भी पड़ा।


“शूरू करता हूं अल्लाह के नाम से जो बहुत ही कृपालु और दयालु है। अलिफ़-लाम-रॉ यह तत्वर्थिता पर आधारित किताब की आयते हैं, क्या यह लोगों के लिए आश्यर्च की बात है कि हमने उनमें से एक को ईश्वरीय संदेश भेजा कि वह लोगों को डराए और ईमान रखने वालों को शुभ संदेश दे, उनके ईश्वर के निकट उनका उच्च स्थान है, लेकिन काफ़िरों ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से एक जादूगर है।”


क़ुरान को तत्वर्थि इसलिए कहा गया है क्योंकि उसकी आयतें जो कुछ बताती हैं वह सत्य है और उनका आधार तर्क एवं सच्चाई पर है और वे सही और सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शित करती हैं। अनेकेश्वरवादियों की ओर से लगातार की जाने वाली आपत्तियों में से एक यह थी कि ईश्वरीय संदेश फ़रिश्तों के बजाए इंसानों पर कैसे नाज़िल हो गया? क़ुरान उसका जवाब देते हुए कहता है, क्या यह लोगों के लिए आश्चर्य का विषय है कि हमने उन्हीं में से एक को ईश्वरीय संदेश भेजा? इसका अर्थ है कि नेता एवं मार्गदर्शक अनुसरणकर्ताओं के ही बीच से होना चाहिए जो उनके दुखों को समझता हो और उनकी ज़रूरतों से अवगत हो, अगर ऐसा नहीं होगा यानी उनकी ज़रूरतों और समस्याओं से अवगत नहीं होगा तो वह उनका नेतृत्व नहीं कर सकेगा।


आयत के आख़िर में कहा गया है, काफ़िरों ने कहा कि यह व्यक्ति स्पष्ट रूप से जादूगर है। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अति प्रभावशाली बातों और उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए अद्वितीय नियमों एवं चमत्कारों का उनके पास कोई जवाब नहीं था, इसीलिए क़ुरान के चमत्कार को वे जादू बताने लगे।


सूरए यूनुस में एकेश्वरवाद, क़ुरान की वास्तविकता, अनेकेश्वरवादियों चेतावनी और उन्हें डराने, उनकी आपत्तियों का जवाब देने, सृष्टि और सृष्टिकर्ता की महानता का उल्लेख करने, और दुनिया की अस्थिरता एवं परलोक पर अधिक ध्यान देने पर बल दिया गया है। इस सूरे में भी मक्के में नाज़िल होने वाले अन्य सूरों की भांति कुछ बुनियादी विषयों का उल्लेख किया गया है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण सृष्टि का आरंभ और परलोक है। इस सूरे में ईश्वरीय दूतों के जीवन का भी उल्लेख है।


इस सूरे की 5वीं और छटी आयतों में ईश्वर की पहचान और उसका ज्ञान और ईश्वर की दूरदर्शिता एवं उसकी सृष्टि के कुछ उदाहरण भी पेश किए गए हैं।


“वह वही है जिसने सूर्य को चमकदार और चांद को प्रकाशमय बनाया, और फिर उसके लिए अनेक चरण निर्धारित किए ताकि तुम वर्षों की गिनती और दूसरे हिसाब किताब रख सको, अल्लाह ने यह सब कुछ वास्तविकता एवं दूरदर्शिता के आधार पर पैदा किया है, वह उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं अपनी आयतों का उल्लेख करता है।


सूर्य अपने प्रकाश से न केवल प्रकाश देता है बल्कि वनस्पतियों एवं जानवरों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मूल रूप से ज़मीन पर होने वाली हर गतिविधि जैसे की हवाओं का चलना और नदियों का बहना इसी दहकते हुए सूर्य की कृपा से है, अगर किसी दिन इस स्वर्ण रंग के सूर्य की किरने ज़मीन पर नहीं पड़ें तो थोड़ी ही देर में चारों ओर अंधेरा और ख़ामोशी छा जाती है। चंद्रमा भी अपने सुन्दर प्रकाश के साथ हमारी रातों का दिया है। रात के राहगीरों को रास्ता दिखाता है और उसकी नर्म रोशनी धरती पर बसने वालों को शांति एवं प्रसन्नता प्रदान करती है। ईश्वर ने चंद्रमा के लिए विभिन्न चरण निर्धारित किए हैं ताकि हम अपने जीवन के वार्षों और दिनों और अपने कामों का हिसाब किताब रख सकें।     


पहली तारीख़ में चांद बारीक दिखाई देता है और धीरे धीरे उसकी रोशनी बढ़ती रहती है और महीने के मध्य में चांद पूरा दिखाई देता है। उसके बाद से चांद छोटा दिखने लगता है और महीने के अंत तक घटा टोप अंधेरे में चला जाता है। पुनः बारीक चांद दिखने लगता है और वही पहले वाले चरणों से गुज़रता है। चांद में यह परिवर्तन व्यर्थ ही नहीं है, बल्कि बहुत ही सटीक प्राकृतिक कलैंडर है कि जिसे सब लोग देख सकते हैं और उसके आधार पर अपने कार्यों का हिसाब किताब रख सकते हैं। चांद धरती का चक्कर लगाता है और धरती सूर्य का, यही प्राकृतिक कलैंडर का आधार बनता है जो सभी के लिए स्पष्ट है और भरोसा करने योग्य है।


इन्सान के जीवन में हिसाब किताब, तारीख़े, वर्ष, महीने, और सामाजिक आवाश्यकताएं ऐसे विषय हैं जिनके महत्व को सभी स्वीकार करते हैं। ईश्वर ने इस प्रकार मनुष्य के जीवन के लिए एक सटीक व्यवस्था का प्रबंधन कर दिया है।


अगली आयत में अल्लाह सुबाहनहु तआला कहता है, निश्चित रूप से दिन और रात का आने-जाने और जो उन चीज़ों में जो कुछ अल्लाह ने ज़मीन और आसमान में पैदा किया है धर्म में गहरी आस्था रखने वालों के लिए निशानियाँ हैं।


इस आयत में रातों और दिनों के आने-जाने की ओर संकेत किया गया है और बल दिया गया है कि इन निशानियों द्वारा धर्म में गहरी आस्था रखने वाले वास्तविकता तक पहुंच जाते हैं, लेकिन धर्म में आस्था न रखने वाले ईश्वर की इन निशानियों के पास से कोई ध्यान दिए बिना गुज़र जाते हैं। इस आयत में रातों और दिनों के आने-जाने को ईश्वर की निशानी बताया गया है। क्योंकि अगर सूर्य लगातार और एक ही तरह से ज़मीन पर चमकता रहेगा तो ज़मीन का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि धरती रहने योग्य नहीं रहेगी। इसी प्रकार अगर रात निरंतर जारी रहे तो समस्त चीज़ें ठंड से जम जाएगीं। लेकिन ईश्वर ने इन दोनों को एक दूसरे के बाद रखा है ताकि धरती पर जीवन संभव हो सके।


सूरए यूनुस की 7वीं और 8वीं आयतों में परलोक में मनुष्यों के भविष्य का उल्लेख किया गया है। जो लोग प्रलय के दिन हमारे निकट आने की आशा नहीं रखते और केवल दुनिया के जीवन में मस्त हैं और इसी प्रकार वे लोग जो हमारी निशानियों पर ध्यान नहीं देते उनका स्थान नर्क है। प्रलय पर विश्वास नहीं करना और भौतिक दुनिया में विश्वास एवं भरोसा एक प्रकार से गंदगी में फंसना है।


इनके मुक़ाबले में एक दूसरा समूह भी है। “वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम अंजाम दिए, ईश्वर ने उनके ईमान द्वारा उनका ऐसी स्वर्गों की ओर मार्गदर्शन किया कि जिनके नीचे से नहरें बह रही होंगी। स्वर्गों में उनकी दुआ यह होगी कि हे अल्लाह तू पाक है, और वे एक दूसरे को सलाम करेंगे, और उनकी दुआ का अंत इन शब्दों पर होगा कि समस्त प्रशंसा ब्रह्माण्ड के पालनहार के लिए है।


जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम अंजाम दिए, ईश्वर उनका मार्गदर्शन करता है। ईश्वरीय मार्गदर्शन का प्रकाश, उनके जीवन के क्षितिज को उज्जवल कर देता है और उसकी रोशनी में वे इतना स्पष्ट देखते हैं कि दुनिया की चको चौंध एवं भौतिक और शैतानी विचार उन्हें धोखा नहीं दे पाते हैं और वे भटकते नहीं हैं। दूसरी दुनिया में भी ईश्वर उन्हें स्वर्ग में भेजता है जहां नाना प्रकार की अनुकंपाएं होती हैं। वे बहुत ही स्वच्छ एवं पाक साफ़ वातावरण में जीवन व्यतीत करते हैं और अनेक प्रकार की अनुकंपाओं से लाभान्वित होते हैं। वे कहते हैं, हे अल्लाह, तू हर प्रकार की ग़लतियों से पाक साफ़ है, और वे अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं।


इसी सूरे की 37वीं आयत में अनेकेश्वरवादियों के एक और दावे की आलोचना की गई है।


“और ऐसा नहीं है कि यह क़ुरान अल्लाह के अलावा किसी और की ओर से गढ़ लिया गया हो बल्कि यह समस्त पूर्व किताबों की पुष्टि करता है और इसमें उन किताबों की व्याख्या है, और इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह अल्लाह की ओर से है।


अनेकेश्वरवादियें का दावा था कि पैग़म्बरे इस्लाम ने क़ुरान अपनी ओर से गढ़ा है और ईश्वर से जोड़ दिया है। लेकिन आयत में इस दावे को रद्द किया गया है और तर्क दिया गया है कि यह आसमानी किताब है जो पूर्व की आसमानी किताबों की पुष्टि करती है। और पूर्व की किताबों में जो शुभ संदेश दिए गए हैं और वास्तविकताएं बयान की गई हैं वे पूर्ण रूप से क़ुरान से समन्वय रखते हैं। स्वयं इससे सिद्ध हो जाता है कि ईश्वर से इसे जोड़ा नहीं गया है बल्कि वास्तविक रूप से यह ईश्वर की ओर से है। यहां क़ुरान इस वास्तविकता का इनकार करने वालों को चुनौती देता है,“क्या वे कहते हैं कि उसने क़ुरान को अपनी ओर से गढ़ लिया है, तो उनसे कह दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अल्लाह के अलावा जिसे बुला अपनी सहायता के लिए बुला सकते हो बुला लो और उसके जैसा एक सूरा ले आओ।”


यह आयत उन आयतों में से है कि जो स्पष्ट रूप से क़ुरान के चमत्कार होने की घोषणा करती है, यह चमत्कार न केवल पूरा क़ुरान है बल्कि उसका हर सूरा चमत्कार है, और क़ुरान समस्त विश्ववासियों को चेलेंज पेश करता है कि अगर वे समझते हैं कि क़ुरान ईश्वर की ओर से नहीं है तो कम से कम एक सूरा ही उसके जैसा पेश कर दें।


निःसंदेह क़ुरान का चमत्कार केवल उसकी अद्वितीय एवं मीठी भाषा में नहीं है, बल्कि इसके अलावा ऐसा ज्ञान देना जो उस समय प्रचलित नहीं था, पूर्वजों के इतिहास का उल्लेख और उसमें किसी भी प्रकार का विरोधाभास नहीं पाया जाना भी एक चमत्कार है।


सूरए यूनुस की 57वीं आयत में ईश्वर क़ुरान को सामाजिक एवं व्यक्तिगत रोगों के उपचार का बेहतरीन नुस्ख़ा क़रार दे रहा है।


“हे लोगों तुम्हारे लिए तुम्हारे पालनहार की ओर से सिफ़ारिशें आ गई हैं, और सीनों में जो कुछ है उसका उपचार, और यह मोमिनों के लिए मार्गदर्शन एवं कृपा है।”


यह आयत वैश्विक संदेश के रूप में समस्त मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहती है, हे लोगों तुम्हारे ईश्वर की ओर से तुम्हारे लिए सिफ़ारिशें और उपदेश आये हैं। यह संवाद, दिलों की बीमारियों के लिए उपचार और लोगों के मार्गदर्शन का साधन है तथा मोमिनों के लिए कृपा और अनुकंपा है। दिलों की बीमारियों के उपचार का अर्थ आत्मा को लालच, द्वेष, ईर्ष्या, अनेकेश्वरवाद और पाखंड जैसी बीमारियों से सुरक्षित रखना है। क़ुरान पापों और बुरी आदतों को मन से पाक कर देता है। हज़रत अली (अ) इस वास्तविकता को बहुत ही अच्छे ढंग से बयान करते हुए फ़रमाते हैं, अपनी बीमारियों के उपचार के लिए क़ुरान से उपचाह की गुहार लगाओं, और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उससे सहायता मांगो, इसलिए कि क़ुरान में गंभीर दुखों का उपचार है कि जो ईश्वर का इनकार, पाखंड एवं भटकाव है।

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