Hindi
Saturday 20th of April 2024
0
نفر 0

कर्बला सच्चाई की संदेशवाहक

कर्बला सच्चाई की संदेशवाहक

मोहर्रम, हुसैन और कर्बला एसे नाम और एसे विषय हैं जो किसी एक काल से विशेष नहीं हैं।  पैग़म्बरे इस्लाम का संदेश, आने वाले समस्त कालों के लिए था इसीलिए इमाम हुसैन (अ) इस संदेश के लिए एसी सुरक्षा व्यवस्था करना चाहते थे जो प्रत्येक काल के न्यायप्रेमियों के लिए संभव हो।  उन्होंने यज़ीद की बैअत अर्थात उसका समर्थन करने के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकराया था कि मेरा जैसा, यज़ीद जैसे की बैअत कैसे कर सकता है।  यह शब्द बताते हैं कि इमाम हुसैन (अ) केवल अपनी तथा यज़ीद की बात नहीं कर रहे थे बल्कि आगामी कालों में हुसैनी और यज़ीदी पदचिन्हों पर चलने वाले समस्त लोग उनकी दृष्टि में थे।


महान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक होता है कि उसमे समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित किया जाए और उसकी प्रतिभाओं से पूर्णतयः लाभ उठाया जाए।  इमाम हुसैन (अ) के आन्दोलन में न केवल विभिन्न वंशों और वर्णों के लोग नहीं हैं बल्कि स्त्री, पुरुष, बड़े बूढ़े, जवान और बच्चे यहां तक कि छह महीने के बच्चे भी पूर्णतयः सक्रिय दिखाई देते हैं।  ईश्वर पर पूर्ण विश्वास, अपने इमाम का आदेश पालन, समकालीन राजनीति पर पैनी दृष्टि और अपने प्रकाशयी लक्ष्य की प्राप्ति की सच्ची भावना आदि जैसी विशेषताएं, हुसैन के सभी साथियों में पूरी तरह से मौजूद थीं।  साहस और निर्भीकता, इन्ही विशेषताओं का परिणाम था।  हुसैनी आन्दोलन में किसी भी व्यक्ति के संघर्ष और प्रयास को अनदेखा नहीं किया जा सकता।  विभिन्न आयु के पुरुषों ने यदि रणक्षेत्र में अपनी वीरता के कौशल दिखाए तो महिलाओं ने भी धैर्य व संयम द्वारा धर्म युद्ध में भाग लिया।


अपने छोटे-छोटे बच्चों को इस्लामी सिद्धांतों तथा इमाम हुसैन के लक्ष्य से अवगत कराना कोई सरल काम नहीं था परन्तु कर्बला में उपस्थित प्रत्येक महिला ने अपने इस कर्तव्य को अनूठे ढंग से निभाया है।  इसी के साथ उनकी संतानों ने भी अपनी-अपनी आयु के अनुसार माताओं के प्रयासों का परिणाम दिखाया है।


हुसैनी कारवान करबला की ओर आ रहा था कि मार्ग में एक परिवार से उसकी भेंट हुई।  इस परिवार में मुख्यतः तीन व्यक्ति थे।  एक बूढ़ी माता, एक युवा और एक नववधू।  पिता की मृत्यु के पश्चात ईसाई घराने की इस माता ने बड़ी कठिनाइयों से अपने पुत्र का पालन-पोषण किया था।  शिक्षा-दीक्षा के पश्चात अपने पुत्र को विवाह के बंधन में बांधा था ताकि उसका वंश आगे बढ़ सके और माता को जीवन भर के दुखों के पश्चात इस आयु में सुख के दिन देखना नसीब हों।  यह छोटा सा कारवां जब हुसैनी कारवां के सामने पहुंचा तो वहबे कल्बी नामक युवक ने जाकर इमाम हुसैन और उनके साथियों से भेंट की और बस विदा लेने ही वाला था कि उसकी माता की दृष्टि उस कारवान के तेजस्वी चेहरे पर पड़ गई।  उसने तुरंत बेटे को बुलाया और कहा कि मेरे और तेरे पिता के घराने वाले सभी अत्यन्त धार्मिक थे। वह सदैव सत्य की खोज में रहा करते थे।  उन्होंने मुझसे कहा था कि किसी यात्रा में यदि तेरा सामना अत्यन्त तेजस्वी व्यक्तित्व वालों से हो तो उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना और यदि वे ईश्वर के अन्तिम पैग़म्बर के घराने वाले हों तो फिर उनके साथ हो जाना क्योंकि वे सत्य पर होंगे।  माता की यह बात सुनकर आज्ञाकारी बेटे ने इमाम हुसैन से पुनः भेंट की और विभिन्न प्रश्नों के पश्चात जब वह इस परिणाम तक पहुंच गया कि यह वही कारवान है जिसकी खोज उसके पूर्वजों और माता को थी तो वह अत्यधिक प्रसन्नता के साथ अपनी माता के पास आया और उसे सूचित किया।  वहब की माता तुरंत अपनी सवारी से उतरी और इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब एवं अन्य महिलाओं की सेवा में उपस्थित हुई।  उनके लक्ष्य, विश्वास और धर्म की ओर से पूर्णतयः संतुष्ट होने के पश्चात उनके साथ होने का निर्णय ले लिया।


आशूर का दिन निकलने से पूर्व ही यज़ीदी सेना की ओर से तीर आने लगे थे।  दिन चढ़ते-चढ़ते इमाम हुसैन के कई साथी शहीद हो चुके थे।  बलिदान की इस बेला में एक होड़ सी लगी हुई थी।  प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा थी कि वह किसी न किसी प्रकार अपना जीवन देकर इमाम हुसैन को बचा ले।  एसे में वहब कल्बी की माता ने भी अपने पुत्र को ईश्वरीय सिद्धांतों की सुरक्षा के लिए रणक्षेत्र में जाने पर तैयार किया।  वहब का स्वयं भी यही लक्ष्य था।  एक बार माता ने वहबे कल्बी को बुलाया और कहा बेटा मुझे इस बात का भय है कि कहीं तेरी नववधु तुझे इस रात पर जाने से रोक न ले।  अभी वहब कुछ कहने भी न पाए थे कि वधु आगे आई और बोली मैं अपने पति को इस महान लक्ष्य की प्राप्ति से नहीं रोकूंगी परन्तु मेरी एक शर्त है कि वहब मुझे वचन दें कि स्वर्ग सुन्दरियों के देखने के पश्चात वे मुझे भूलेंगे नहीं।  यह सुनकर माता ने अपनी साहसी बहू को सीने से लगा लिया।  कुछ समय बीता और वहबे कल्बी रणक्षेत्र में हुसैन का समर्थन करते हुए शहीद हो गए।  यज़ीदी सेना ने माता की भावनाओं को उत्तेजित करने हेतु वहब का सिर माता की ओर फेंका, जिसे उस बूढ़ी महिला ने कांपते हांथों से उठाकर पहले छाती से लगाया, उसे चूमा और फिर शत्रु की ओर यह कहकर फेंका दिया कि हम जो वस्तु ईश्वर के मार्ग में भेंट स्वरूप देते हैं उसे वापस नहीं लेते।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का ...
पाक मन
मुहाफ़िज़े करबला इमाम सज्जाद ...
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
पैगम्बर अकरम (स.) का पैमाने बरादरी
मासूमाऐ क़ुम जनाबे फातेमा बिन्ते ...
इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के राजनीतिक ...
पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की वफ़ात
हक़ और बातिल के बीच की दूरी ??
बग़दाद में तीन ईरानी तीर्थयात्री ...

 
user comment