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Friday 29th of March 2024
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हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के इश्क़ की कहानी क़ुरआन की ज़बानी

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई उन्हें कुएं में डालने के बाद रोते हुए अपने पिता के पास आए। उन्होंने पिता के समक्ष यह सिद्ध करने के लिए यूसुफ़ को भेड़िया खा गया है, उनके शरीर से कुर्ता उतार लिया था और उस पर किसी पशु का ख़ून लगा कर उसे पिता के समक्ष पेश कर दिया था किंतु वे उस कुर्ते को फाड़ना भूल गए। हज़रत यूसुफ़ के पिता हज़रत याक़ूब ने जैसे ही अपने पुत्र के कुर्ते को देखा को सब कुछ समझ गए। उन्होंने कहा कि तुम लोग झूठ बोल रहे हो, तुम्हारी आंतरिक इच्छाओं ने इस बुरे कर्म को तुम्हारे समक्ष अच्छा करके प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने प्राण प्रिय पुत्र के विरह में रोते हुए कहा कि मैं ऐसे धैर्य का उदाहरण प्रस्तुत करूंगा जो अत्यंत सुंदर धैर्य होगा।


हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम अकेले कुएं के भयावह अंधेरे में बड़ा कठिन समय बिता रहे थे किंतु ईश्वर पर ईमान और उससे प्राप्त होने वाला संतोष उनके दिल में आशा की किरण जगाए हुए था। कुछ दिन गुज़रे थे कि वहां एक कारवां पहुंचा और उसी कुएं के निकट ठहर गया। जल्द ही किसी ने कुएं में डोल डाला। हज़रत यूसुफ़ को आवाज़ से पता चल गया कि कुएं की मुंडेर पर कोई है, फिर उन्होंने डोल और रस्सी को नीचे आते देखा। उन्होंने तुरंत ही डोल को पकड़ लिया। पानी निकालने वाले को लगा कि डोल सीमा से अधिक भारी हो गया है और जब उसने शक्ति लगा कर उसे ऊपर खींचा तो अचानक उसकी नज़र एक सुंदर बालक पर पड़ी। वह ख़ुशी से चीख़ पड़ा कि पानी के बजाए एक बच्चा निकला है। कारवां वाले यूसुफ़ को अपने साथ मिस्र ले गए और दासों के मंडी में उन्हें सस्ते दामों बेच दिया। फ़िरऔन के मंत्री ने जिसे अज़ीज़े मिस्र कहा जाता था, यूसुफ़ को ख़रीद लिया। इस प्रकार मिस्र पहुंच कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के जीवन का एक नया अध्याय आरंभ हुआ।


सूरए यूसुफ़ की 21वीं आयत में ईश्वर कहता हैः और मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा था उसने अपनी पत्नी से कहा कि इसे आदर सत्कार के साथ रखना, हो सकता है कि यह भविष्य में हमें लाभ पहुंचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें। और इस प्रकार हमने यूसुफ़ को (मिस्र की उस) धरती में स्थान दिया और उन्हें सपनों की ताबीर अर्थात व्याख्या का ज्ञान प्रदान किया। और ईश्वर, अपने मामले में विजयी रहता है किन्तु अधिकांश लोग इसे नहीं समझते। अज़ीज़े मिस्र ने, जो उस बालक की सुंदरता और मासूमियत से वशीभूत हो गया था और स्वयं उसकी कोई संतान नहीं थी, अपनी पत्नी से कहा कि वह उसे सम्मान के साथ रखे।


क़ुरआने मजीद के व्याख्याकारों की दृष्टि में इस आयत में ईश्वर ने जो कहा है कि हमने यूसुफ़ को मिस्र की धरती में स्थान दिया, वह इस कारण है कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का मिस्र आना और अज़ीज़े मिस्र के जीवन में उनका शामिल होना, भविष्य में उनकी अभूतपूर्व शक्ति की भूमिका बन गया। शायद यह इस बात की ओर भी संकेत हो कि हर प्रकार की सुविधा से संपन्न अज़ीज़े मिस्र के महल में जीवन की तुलना कुएं के अकेलेपन और भय के जीवन से किसी भी प्रकार नहीं की जा सकती।


हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम, अज़ीज़े मिस्र के घरे में पले-बढ़े और व्यस्कता के चरण तक पहुंचे और फिर ज्ञान व तत्वदर्शिता से संपन्न हुए। उनके सुंदर व तेजस्वी चेहरे ने अज़ीज़े मिस्र को वशीभूत कर लिया था और उसकी पत्नी ज़ुलैख़ा भी उन्हें चाहने लगी थी, इस प्रकार से कि यूसुफ़ का प्रेम उसके दिल की गहराइयों में बस गया था। धीरे-धीरे वह यूसुफ़ के प्रेम में पागलपन की सीमा तक डूब गई जबकि पवित्र प्रवृत्ति वाले यूसुफ़ केवल अपने ईश्वर से प्रेम करते थे।


ज़ुलैख़ा ने अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाए और यूसुफ़ के मार्ग में अनेक जाल बिछाए किंतु वह सफल नहीं हो सकी। उसके मन में जो अंतिम युक्ति आई वह यह थी कि उन्हें अपने शयन कक्ष में अकेले बुलाए और उन्हें उत्तेजित करने के सभी साधन तैयार रखे। उसने अत्यंत सुंदर वस्त्र धारण किया और बन ठन कर ऐसा वातावरण बना दिया कि युवा यूसुफ़ के पास उसकी बात मानने के अतिरिक्त कोई मार्ग न रहे। जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उसके शयन कक्ष में आ गए तो उसने सारे दरवाज़े बंद कर दिए और उनसे कहा कि मैं तुम्हारे अधिकार में हूं।


हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने देखा कि लड़खड़ाने और पाप में पड़ने के सभी साधन उपलब्ध हैं और उनके पास कोई अन्य मार्ग नहीं बचा है। उन्होंने ज़ुलैख़ा से कहा कि मैं ईश्वर की शरण चाहता हूं। इस प्रकार उन्होंने पूरी दृढ़ता से उसकी अनैतिक मांग को ठुकरा दिया और उसे समझा दिया कि वे उसके समक्ष झुकने वाले नहीं हैं। इसी के साथ उन्होंने सभी के समक्ष यह वास्तविकता भी स्पष्ट कर दी कि इस प्रकार की परिस्थिति में शैतान के उकसावों से बचने का एकमात्र मार्ग, ईश्वर की शरण में जाना है। सूरए यूसुफ़ की 23वीं आयत है। और जिस स्त्री के घर में यूसुफ़ थे उसने उन पर डोरे डाले और दरवाज़े बंद कर दिए और कहने लगी लो आओ। यूसुफ़ ने कहा, मैं ईश्वर की शरण चाहता हूं, निश्चित रूप से अज़ीज़े मिस्र ने मुझे अच्छा ठिकाना प्रदान किया है और (क्या संभव है कि मैं उससे विश्वासघात करूं?) निसंदेह अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।


इस स्थान पर हज़रत यूसुफ़ व ज़ुलैख़ा की घटना सबसे संवेदनशील चरण में पहुंच जाती है जिसे क़ुरआने मजीद ने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से बयान किया है। सूरए यूसुफ़ की 24वीं आयत में कहा गया है। और निसंदेह उस स्त्री ने यूसुफ़ से बुराई का इरादा किया और यदि वे भी अपने पालनहार का तर्क न देख लेते तो उसकी ओर बढ़ते। इस प्रकार हमने ऐसा किया ताकि बुराई और अश्लीलता को उनसे दूर रखें कि निश्चित रूप से यूसुफ़ हमारे निष्ठावान बंदों में से थे। यद्यपि ज़ुलैख़ा, यूसुफ़ को पाप के मुहाने तक ले गई किंतु ईमान व बुद्धि की शक्ति के असाधारण रूप से लामबंद हो जाने के कारण, वासना का तूफ़ान थम गया। उस संवेदनशील क्षण में हज़रत यूसुफ़ ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए, आंतरिक इच्छाओं का डट कर मुक़ाबला किया। इस आयत में ईश्वर द्वारा हज़रत यूसुफ़ को अपना निष्ठावान बंदा बताए जाने में यह बिंदु निहित है कि वह अपने निष्ठावान बंदों को कठिन क्षणों में अकेले नहीं छोड़ता बल्कि विभिन्न मार्गों से उनकी सहायता करता है।


हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम पाप में पड़ने से बचने के लिए बड़ी तेज़ी के साथ महल के द्वार की ओर दौड़े ताकि उसे खोल कर बाहर निकल जाएं। ज़ुलैख़ा भी, जिसकी बुद्धि, भावनाओं से मात खा चुकी थी, उनके पीछे दौड़ी ताकि उन्हें बाहर न जाने दे। सूरए यूसुफ़ की 25वीं आयत में इसके बाद के दृश्य का चित्रण इस प्रकार किया गया है। और (यूसुफ़ तथा अज़ीज़े मिस्र की पत्नी) दोनों दरवाज़े की ओर दौड़े। उस महिला ने यूसुफ़ के कुर्ते को पीछे से फाड़ दिया, उसी समय उन दोनों ने उसके पति को द्वार पर पाया। वह बोल पड़ी जो तुम्हारी पत्नी के संबंध में बुरी नीयत रखे उसका बदला इसके अतिरिक्त क्या है कि उसे कारावास में डाल दिया जाए या कड़ी यातना दी जाए?


साक्ष्यों और तर्कों पर विचार करने के बाद अज़ीज़े मिस्र को समझ में आ गया कि उसकी पत्नी ने उसका विश्वास तोड़ा है और वह झूठ बोल रही है किंतु इस भय से कि यदि यह बात खुल गई तो उसकी बेइज़्ज़ती हो जाएगी, उसने मामले को दबाने का निर्णय किया। उसने यूसुफ़ से कहा कि तुम इस बात को छोड़ दो और इस बारे में किसी से कुछ मत कहना। उसने अपनी पत्नी से कहा कि तू भी अपने पाप का प्रायश्चित कर कि तू पापियों में से थी। किंतु महल वालों की अपेक्षा के विपरीत, यह बात महल के बाहर तक पहुंच गई और जैसा कि आयतों में कहा गया है कि नगर की कुछ महिलाओं ने कहा कि अज़ीज़े मिस्र की पत्नी ने अपने दास को अपनी ओर बुलाया और दास का प्रेम उस पर इतना हावी हो गया कि उसके दिल की गहराइयों तक पहुंच गया। उन्होंने कहा कि हम ज़ुलैख़ा को खुली हुई पथभ्रष्टता में देखते हैं।


ज़ुलैख़ा को जब मिस्र की महिलाओं की इन बातों का पता चला तो उसने एक सभा का आयोजन किया और उन महिलाओं को उसमें आमंत्रित किया। उसने उन सभी को फल खाने के लिए एक एक चाक़ू दिया और फिर यूसुफ़ से कहा कि वे उन महिलाओं के सामने से गुज़र जाएं। मिस्र की उन प्रतिष्ठित महिलाओं ने जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के तेज व आभा को देखा तो इस प्रकार हतप्रभ रह गईं मानो उन पर किसी ने जादू कर दिया हो और उन्होंने फल के बजाए चाक़ू से अपने-2 हाथ काट लिए। उन महिलाओं ने कहा कि पवित्र है ईश्वर, यह कोई मनुष्य नहीं बल्कि ईश्वर का कोई महान फ़रिश्ता है।


इस प्रकार ज़ुलैख़ा ने उन महिलाओं को, यूसुफ़ पर अपने मोहित होने का कारण समझा दिया। उस सभा में उसने खुल कर अपने पाप को स्वीकार किया और कहा कि हाँ मैंने यूसुफ़ से अपना कामेच्छा पूरी करवानी चाही थी किंतु उसने इन्कार कर दिया। इसके बाद उसने कहा कि जो कुछ मैं कह रही हूं, यदि उसे यूसुफ़ ने पूरा न किया तो निश्चित रूप से उसे कारावास में डाल दिया जाएगा जहां वह अपमानित होगा।


सूरए यूसुफ़ की तैंतीसवीं आयत के अनुसार ऐसी परिस्थितियों में जब समस्याओं और कठिनाइयों की आंधियों ने चारों ओर से हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को घेर रखा था, उन्होंने बड़े साहस के साथ निर्णय किया और उन कामुक महिलाओं को संबोधित करने के बजाए अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहाः प्रभुवर! मेरी दृष्टि में कारावास उस काम से अधिक प्रिय है जिसकी ओर मुझे ये बुला रही हैं। और यदि तूने मुझे इनकी चालों से न बचाया तो मैं इनकी ओर झुक सकता हूं और ऐसी स्थिति में मैं अज्ञानियों में से हो जाऊंगा।


ईश्वर ने भी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अकेला नहीं छोड़ा और उन महिलाओं के षड्यंत्रों को विफल बना दिया। अंततः यूसुफ़ का निर्दोष और ज़ुलैख़ा का दोषी होना सिद्ध हो गया। अज़ीज़े मिस्र ने ज़ुलैख़ा के अनैतिक कर्म के कारण अपनी बेइज़्ज़ती को रोकने के लिए यूसुफ़ को जेल में डलवा दिया ताकि लोग उन्हें भूल जाएं। उसने सोचा कि उनके जेल में जाने से लोग यह सोचेंगे कि दोषी यूसुफ़ ही थे। इस प्रकार एक पवित्र, निर्दोष एवं आदर्श व्यक्ति को कारावास में डाल दिया गया।

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