Hindi
Thursday 28th of March 2024
0
نفر 0

क़ुरआन ख़ैरख्वाह और नसीहत करने वाला है

क़ुरआन ख़ैरख्वाह और नसीहत करने वाला है



ईमाम अली (अ.स.) फ़रमाते हैं :

लोगों! क़ुरआन के जमा करने वालों और पैरोकारों में से हो जाओ और उस को अपने परवरदिगार के लिये दलील क़रार दो।

अल्लाह को उस के कलाम के पहचानों। परवरदिगार के औसाफ़ को क़ुरआन के ज़रिए पहचानों क़ुरआन ऐसा राहनुमा है जो तुम्हें अल्लाह की तरफ़ राहनुमाई करता है। उस राहनुमाई के ज़रिए उस के भेजे हुए रसूल की मअरिफ़त हासिल करो और उस अल्लाह पर ईमान ले आओ जिस का तआरुफ़ क़ुरआन करता है। “वस्तन्साहू अला अन्फ़ोसेकुम”

क़ुरआन को अपना नासेह क़रार दो और उस की ख़ैरख्वाहना नसीहतों पर अमल करो क्योंकि तुम इन्सान एक दिल सोज़, ख़ैरख्वाह के मोहताज हो जो तुम्हें ज़रूरी मक़ामात पर नसीहत करे।

तर्जुमा : बेशक यह क़ुरआन तुम्हें इन्तेहाई मुस्तहकम व पाएदार रास्ते की तरफ़ राहनुमाई करता है और जो मोमिनीन अअमाले सालेह बजा लाते हैं उन को बशारत देदो कि उन के लिये यक़ीनन बहुत बड़ा अज्र है।

यहाँ सब से अहम नुक्ता इस आयते मुबारका पर क़ल्बी ऐतेक़ाद है क्योंकि इन्सान जब तक यह अक़ीदा न रखता हो, अपने आप को ख़ुदा के हवाले न कर दे और ख़ुद को ख़्वाहिशाते नफ़सानी से पाक न करे तो हर वक़्त यह ख़तरा मौजूद है कि शैतानी वस्वसे का शिकार हो जाए। क़ुरआने करीम का कोई भी हुक्म इन्सानी हैवानी व नफ़्सानी ख़्वाहिशात से साज़गार नहीं है जो शख़्स अपनी ही ख़्वाहिशात को मद्दे नज़र रखता है उस की ख़्वाहिश होती है कि क़ुरआन भी उस के रुजहानात, ख़्वाहिशात के मुताबिक कलाम करे और जैसे ही कोई आयत उस की ख़्वाहिशात व तरग़ीबात के मुताबिक़ नज़र आए तो उस का भर पूर इस्तिक़बाल करता है पस अक़्ल का तक़ाज़ा है कि इन्सान ख़ाली ज़हन और ख़ाली दामन हो कर फ़क़्त इश्क़े इलाही का जज़्बा लेकर क़ुरआन की बारगाह में हाज़िरी दें।

(ज) क़ुरआने करीम की शिनाख़्त उस के मुख़ालिफ़ीन की शिनाख़्त में मुज़मर है।

गुज़श्ता गुफ़तगू की रौशनी में यह सवाल उठता है कि क्या क़ुरआने करीम से इस्तेफ़ादे का तरीक़ा ए कार यही है कि हम फ़क़्त मज़कूरा बाला फ़रामीन पर अमल करें ?

इस सवाल के जवाब में अगर हम कुरआने मजीद को वसीअ नज़र से देखें तो उस के मुक़ाबिले में मुन्हरिफ़ अफ़्कार नज़र आएंगे। इस मुन्हरिफ़ अफ़्कार ने हमेशा से इन्सान को गुमराही और बातिल की तरफ़ धकेला है। पस क़ुरआनी तमद्दुन को नाफ़िज़ करने और मआशिरे में दीनी अक़ाइद को राइज करने के लिये ज़रूरी है कि मुख़ालेफ़ीन क़ुरआन के अफ़्कार और उन की साज़िशों से मअरिफ़त हासिल की जाए जबकि यह नुक्ता ग़ालेबन ग़फ़लत का बाइस हो जाता है हक़ और बातिल क्योंकि हमेशा एक दूसरे के बिल मुक़ाबिल रहे हैं लिहाज़ा हमे हक़ की शिनाख़्त व मआरिफ़ के साथ साथ बातिल की भी पहचान करनी चाहिये इस चीज़ के पेशे नज़र ईमाम अली (अ.स.) फ़रमाते हैं।

तर्जुमा : यक़ीन के साथ जान लो कि तुम राहे हिदायत को हरगिज़ नहीं पहचान सकते जब तक उस को ना पहचानों जिस ने हिदायत को तर्क कर दिया है और तुम हर गिज़ पैमाने इलाही (क़ुरआन) पर अमल पैरा नहीं हो सकते जब तक तुम पैमान शिकन अहद शिकन को ना पहचान लो।

यानी यह कि तुम क़ुरआन के हक़ीक़ी पैरोकार उस वक़्त तक नहीं बन सकते जब तक तुम क़ुरआन की तरफ़ पुश्त करने वालों की मअरिफ़त हासिल ना कर लो, हज़रत अली (अ.स.) के इस फ़रमान में बड़े वाज़ेह तौर पर दुश्मन शिनासी पर ज़ोर दिया गया है। उस से उलामा ए इल्मे दीन का फ़रीज़ा बहुत ज़्यादा सन्जीदा हो जाता है बिल ख़ुसूस ऐसे हालात में जब कि इन्हेराफ़ी अफ़्कार और मुल्हदीन के शुब्हात अवाम खुसूसन नौजवानों को इन्हेराफ़ात का शिकार कर रहे है।

हज़रत इमामे अली (अ.स.) की पेंशनगोई और तन्बीह।

अगरचे हज़रत का मौरिदे ख़िताब आम्मातुन नास हैं लेकिन बहुत सारे मवारिद में मुआशिरे के ख़ास अफ़राद या खास गिरोहों को मौरिदे ख़िताब क़रार देते हैं क्योंकि यही लोग हैं जो मुआशिरे की तहज़ीब व सक़ाफ़त पर असर अन्दाज़ होते हैं। वह लोग हैं जो अपने दुनियावी अहदाफ़ व अग़राज़ की ख़ातिर ख़ुदा व उस के रसूल की तरफ़ झूठ व दुरूग़ गोई की निस्बत देते हैं, क़ुरआन और दीन की तफ़सीर बिर राय करते हैं और लोगों को गुमराही की तरफ़ ख़ींचते हैं।

अवाम के बारे में फ़रमाते हैं : इस ज़माने के लोग भी ऐसे ही हैं अगर क़ुरआने करीम की सहीह व हक़ीक़ी तफ़्सीर व तशरीह हो तो उन के नज़दीक सब से ज़्यादा बेक़ीमत चीज़ है लेकिन अगर उन की नफ़्सानी ख़्वाहिशात के मुताबिक़ हो तो ऐसी तफ़्सीर के दिल दादाह हैं। ऐसे ज़माने में शहरों में दीनी व इलाही और ग़ैरे दीनी इक़दारान के लिये महबूब होंगी इस ख़ुत्बे के आख़िर में इर्शाद फ़रमाते हैं।

तर्जुमा : इस ज़माने के लोगों ने इफ़्तेराक़ व इख़्तेलाफ़ पर इज्तेमाअ कर लिया है इन्होंने जमाअत से अलाहिदगी इख़्तियार कर ली है यह लोग ऐसे हैं जैसे क़ुरआन के के इमाम व रहबर हों जब कि क़ुरआन उन का इमाम नहीं है।

गोया इमाम अली (अ.स.) की मुराद यह है कि उन्हों ने इज्तेमाअ कर लिया है कि क़ुरआने करीम का हक़ीक़ी मुफ़स्सीर पैदा ही ना हों यह लोग आलम नुमा जाहिलों की पैरवी करते हैं जो ख़ुद को क़ुरआन का रहबर जानते हैं और क़ुरआन की अपनी ख़्वाहिशाते नफ़्सानी के मुताबिक़ तफ़सीर करते हैं इन्हों ने हक़ीक़ी मुसलमानों, उलामा और मुफ़स्सेरीन से जुदाई इख़्तियार कर ली है। यह लोग अमलन क़ुरआन को अपना रहबर नहीं मानते बल्कि ख़ुद उस के रहबर हैं।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article


 
user comment