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Friday 19th of April 2024
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अली(अ) का इल्म

अली(अ) का इल्म

अंबिया और आईम्मा अलैहिमुस सलाम के इल्म के बारे में लोगों के मुख़्तलिफ़ नज़रियात हैं, कुछ मोअतक़िद हैं कि उन का इल्म महदूद था और शरई मसायल के अलावा दूसरे उमूर उन के हीता ए इल्म से ख़ारिज हैं, क्यो कि इल्मे ग़ैब ख़ुदा के अलावा किसी के पास नही है। क़ुरआने करीम की कुछ आयते इस बात की ताकीद करती हैं जैसे

ग़ैब की चाभियाँ उस के पास हैं उस के अलावा कोई भी उन से मुत्तला नही है। (सूर ए अनआम आयत 59)

दूसरी आयत में इरशाद हुआ कि ख़ुदा वंद तुम्हे ग़ैब से मुत्तला नही करता। कुछ इस नज़रिये को रद्द करते हैं और मोअतक़िद हैं कि अंबिया और आईम्मा अलैहिमुस सलाम का इल्म हर चीज़ पर अहाता रखता है और कोई भी चीज़ चाहे उमूरे तकवीनिया में से हो या तशरीईया में से उन के इल्म से बाहर नही है। एक गिरोह ऐसा भी है जो इमाम की इस्मत का क़ायल नही है और अहले सुन्नत की तरह इमाम को एक आम रहबर और पेशवा की तरह मानता है। उस का कहना है कि मुम्किन है कि इमाम किसी चीज़ के बारे में मामूमीन से भी कम इल्म रखता हो और उस के इताअत गुज़ार कुछ चीज़ों में उस से आलम हों। जैसा कि मुसलमानों के दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर ने एक औरत के इस्तिदलाल के बाद अपने अज्ज़ का इज़हार करते हुए एक तारीख़ी जुमला कहा: तुम सब उमर से ज़ियादा साहिबे इल्म हो हत्ता कि ख़ाना नशीन ख़्वातीन भी। (शबहा ए पेशावर पेज 852)

फ़लसफ़े की नज़र से हमारा मौज़ू इंसान की मारेफ़त और उस के इल्म की नौईयत से मरबूत है और यह कि इल्म किस मक़ूले के तहत आता है। मुख़्तसर यह कि इल्म वाक़ईयत के मुनकशिफ़ होने का नाम है और यह दो तरह का होता है ज़ाती और कसबी। ज़ाती इल्म ख़ुदा वंदे आलम के लिये है और नौए बशर उस की हक़ीक़त और कैफ़ियत से मुत्तला नही हो सकती लेकिन कसबी इल्म को इंसान हासिल कर सकता है। इल्म की एक तीसरी क़िस्म भी है जिसे इल्मे लदुन्नी और इलहामी कहा जाता है। यह इल्म अंबिया और औलिया के पास होता है। यह इल्म न इंसानों की तरह कसबी और तहसीली होता है और ख़ुदा की ज़ाती बल्कि अरज़ी इल्म है जो ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से उन को अता होता है। इसी इल्म के ज़रिये अंबिया और औलिया अलैहिमुस सलाम लोगों को आईन्दा और ग़ुज़रे हुए ज़माने की ख़बरें देते थे और हर सवाल का जवाब सवाल करने वालों की अक़्ल की मुनासेबत से देते थे जैसा कि क़ुरआने मजीद ने हज़रते ख़िज़्र अलैहिस सलाम के लिये फ़रमाया: हम ने उन्हे अपनी तरफ़ से इल्मे लदुन्नी व ग़ैबी अता किया। (सूर ए कहफ़ आयत 65)

क़ुरआने करीम हज़रत ईसा अलैहिस सलाम की ज़बानी फ़रमाया है कि मैं तुम्हे ख़बर देता हूँ जो तुम खाते हो और जो घरों में ज़खीरा करते हो। (सूर ए आले इमरान आयत 94)

मअलूम हुआ कि इस इल्मे गै़ब में जो ख़ुदा वंदे आलम अपने लिये मख़सूस करता है और उस इल्म में जो अपने नबियों और वलियों को अता करता है, फ़र्क़ है और वह फ़र्क़ वही है जो ज़ाती और अरज़ी इल्म में है जो दूसरों के लिये ना मुम्किन है वह इल्में ज़ाती है लेकिन अरज़ी इल्म ख़ुदा वंदे आलम अपने ख़ास बंदों को अता करता है जिस के ज़रिये वह ग़ैब की ख़बरें देते हैं।

ख़ुदा ग़ैब का जानने वाला है किसी पर भी ग़ैब को ज़ाहिर नही करता सिवाए इस के कि जिसे रिसालत के लिये मुन्तख़ब कर ले। गुज़श्ता आयात से यह नतीजा निकलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) जो जंजीरे आलमे इमकान की पहली कड़ी हैं और क़ाबा क़ौसेने और अदना की मंज़िल पर फ़ायज़ हैं ख़ुदा के बाद सब से ज़ियादा इल्म उन के पास है जैसा कि क़ुरआने मजीद में इरशाद हुआ:

इसी लिये वह कायनात के असरार व रुमूज़ का इल्म पर मख़लूक़ से ज़्यादा रखते हैं और हज़रत अली अलैहिस सलाम का इल्म भी उन्ही की तरह इसी उसी अजली व अबदी सर चश्मे से वाबस्ता है। इस लिये कि हज़रत अली अलैहिस सलाम बाबे मदीनतुल इल्म हैं जैसा कि आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं शहरे इल्म हूँ और अली उस का दरवाज़ा। (मनाक़िबे इब्ने मग़ाज़ेली पेज 80)

और फ़रमाया कि मैं दारे हिकमत हूँ और अली उस का दरवाज़ा। (ज़ख़ायरुल उक़बा पेज 77)

ख़ुद हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम ने फ़रमाया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुझे इल्म के हज़ार बाब तालीम किये। जिन में हर बाब में हज़ार हज़ार बाब थे। (ख़ेसाले सदूक़ जिल्द2 पेज 176)

शेख सुलैमान बल्ख़ी ने अपनी किताब यनाबीउल मवद्दत में अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम से नक़्ल किया है कि आप ने फ़रमाया कि मुझ से असरारे ग़ैब के बारे में सवाल करो कि बेशक मैं उलूमे अंबिया का वारिस हूँ। (यनाबीउल मवद्दा बाब 14 पेज 69)

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया कि इल्म व हिकमत दस हिस्सों में तक़सीम हुई है जिस में से नौ हिस्से अली से मख़सूस हैं और एक हिस्सा दूसरे तमाम इंसानों के लिये है और उस एक हिस्से में भी अली आलमुन नास (लोगों में सबसे ज़ियादा जानने वाले हैं।)

यनाबीउल मवद्दत बाब 14 पेज 70

ख़ुद अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम ने फ़रमाया कि मुझ से जो चाहो पूछ लो इस से पहले कि मैं तुम्हारे दरमियान में न रहूँ। (इरशादे शेख़ मुफ़ीद जिल्द 1 बाब 2 फ़स्ल 1 हदीस 4)

मुख़्तसर यह कि बहुत सी हदीसें अली अलैहिस सलाम के बे कराँ इल्म की तरफ़ इशारा करती हैं कि जिन से मअलूम होता है कि अली ग़ैब के जानने वाले और आलिमे इल्मे लदुन्नी थे।

इख़्तेसार के पेश नज़र इस बहस को यहीं पर ख़त्म करते हैं इस उम्मीद पर के साथ कि इंशा अल्लाह अनक़रीब ही किसी दूसरे इशाअती सिलसिले में इस मौज़ू पर सैरे हासिल बहस क़ारेईन की ख़िदमत में पेश करेगें।

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