Hindi
Thursday 25th of April 2024
0
نفر 0

अद्वितीय आदर्श

अद्वितीय आदर्श


पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने कहा है कि ईश्वर के निकट दो बूंदों से अधिक किसी अन्य वस्तु का महत्व नहीं हैः



आंसू की वह बूंद जो ईश्वर से भय के कारण आंख से टपकती है और रक्त की वह बूंद जो ईश्वर की राह में शरीर से टपकती है और फ़ातेमा इन दोनों प्रिय बूंदों की स्वामी हैं।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन की अंतिम घड़ियां हैं।



हज़रत अली अलैहिस्सलाम यद्यपि समस्याओं और चुनौतियों के सामने मज़बूत दीवार और प्रतिरोध के पर्वत हैं किंतु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की दशा देख कर रो रहे हैं।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को होश आता है और एक दूसरे से अगाध प्रेम व श्रद्धा रखने वाले इस दंपति के मध्य कुछ बातें होती हैं



जिसके अंत में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस प्रकार से वसीयत करती हैं।



मुझे रात में नहलाइगा, रात में कफ़न दीजिएगा , रात में दफ़्न कीजिएगा।



हज़रत अली अलैहिस्सलाम क़ुरआन मजीद के सूरए यासीन की तिलावत कर रहे हैं।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा आंख खोल कर कहती हैं, सलाम हो आप पर हे जिबरईल! सलाम हो आप हे मेरे पालनहार के फ़रिश्तो!



तेरी ओर आ रही हूं हे मेरे पालनहार न कि आग की ओर , और फिर आंखें मूंद लेती हैं।



हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को दफ़्न करते समय इस प्रकार से पैगम्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहते हैं।



आह यह कितनी जल्दी आप के पास चली गयीं हे पैग़म्बर! इस ह्दयविदारक दुख में मेरे संयम का बांध टूट रहा है, अब मैं आप की अमानत आपके हवाले कर रहा हूं।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अपनी अल्पायु विशेषकर अंतिम तीन महीने अद्वितीय व प्रभावशाली संघर्ष में व्यतीत किये जिसका मानव समाज के



महिला इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता और इतिहास ने इन क्षणों को एक आदर्श के रूप में अपने आंचल में सुरक्षित रख लिया है।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने यह दर्शा दिया कि संघर्ष व प्रतिरोध की शैली, सदैव तलवार भांजना और तीर मारना नहीं है कभी संघर्ष, हिसां व टकराव द्वारा होता है



और कभी शांतिपूर्ण रूप से चुपचाप किया जाता है।



उन्हें ज्ञान था कि संघर्ष सदैव ही तत्कालिक प्रभाव नहीं दिखाते बल्कि कभी कभी संघर्ष से एक ऐसे आंदोलन का बीज बो दिया जाता है



जिसका वृक्ष व फल वर्षों बल्कि दशकों व शताब्दियों बाद दिखाई देता और प्राप्त होता है।



उन्होंने एक समय में शत्रु के सामने भाषण दिया, उससे बहस की उसके सामने तर्क पेश किया , उसे अपमानित किया और एक समय में मौन द्वारा अपने आक्रोश व घृणा का प्रदर्शन किया।



जी हां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इमामत और ईश्वरीय मार्गदर्शकों के प्रति किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक श्रद्धा रखती थीं और प्रेम करती थीं।



इमामत की ऐसी वह प्रेमी थीं जिन्होंने अपने बलिदान द्वारा सब को यह सिखा दिया कि सही इमाम काबे की भांति होता है। उस काबे की भांति जिसकी लोगों को परिक्रमा करना होती है।



हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ईश्वरीय मार्गदर्शन व्यवस्था का समर्थन करने वाली अद्वितीय हस्ती थीं,



वहीँ जिनकी पसलियाँ टूट गयीं, ख़ून में डूब गयीं किंतु अपने इमाम की सहायता में एक क्षण के लिए भी संकोच नहीं किया ।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हदीसे किसा
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ...
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके ...
अरफ़ा, दुआ और इबादत का दिन
आख़री नबी हज़रत मुहम्मद स. का ...
ग़ैबत
इमाम हसन(अ)की संधि की शर्तें
बिस्मिल्लाह के प्रभाव 4
ख़ून की विजय
इस्लाम का मक़सद अल्लामा इक़बाल के ...

 
user comment