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सूरे अहज़ाब की तफसीर



सूरे अहज़ाब मदीने में उतरा और इसमें 73 आयतें हैं। इस सूरे की कुछ आयतें अहज़ाब नामक जंग के बारे में हैं जिसमें मुसलमानों को नास्तिकों पर चमत्कारिक जीत और पाखंडियों की ओर से रुकावटें खड़ी किए जाने का उल्लेख है। इस सूरे में अहज़ाब शब्द तीन पर आया है इसलिए इस सूरे को अहज़ाब कहा जाता है। इसी प्रकार इस सूरे में तलाक़ और हेजाब जैसे पारिवारिक मामले तथा प्रलय जैसे विषय पर चर्चा की गयी है।

 

अहज़ाब सूरे की पहली से तीसरी आयत में ईश्वर कह रहा है, “हे पैग़म्बर सदैव ईश्वर से डरिए और नास्तिकों तथा पाखंडियों की बात पर ध्यान मत दीजिए। ईश्वर सर्वज्ञानी व तत्वदर्शी है। जो कुछ आपके ईश्वर की ओर से आपको संदेश दिया जाता है, उसका पालन कीजिए। वे जो कुछ अंजाम देते हैं ईश्वर उसे जानता है। ईश्वर पर भरोसा कीजिए और यही काफ़ी है कि ईश्वर इंसान की रक्षा करने वाला है।”

 

इतिहासकारों के अनुसार, ओहद नामक जंग के बाद नास्तिकता व अनेकेश्वरवादिता के प्रतीक अबू सुफ़यान और कुछ दूसरे लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से जान की अमान लेकर मदीना पहुंचे। वे पैग़म्बरे इस्लाम की ख़िदमत में पहुंचे और कहा, हे मुहम्मद! आप हमारे ख़ुदाओं को बुरा मत कहिए तो हम भी आपको परेशान नहीं करेंगे। इसी अवसर पर अहज़ाब नामक सूरे की एक से तीन आयतें उतरीं।

 

मक्के और मदीने के मिथ्याचारी लोगों ने विभिन्न प्रस्तावों से पैग़म्बरे इस्लाम को एकेश्वरवाद के रास्ते से हटाने की कोशिश की लेकिन अहज़ाब सूरे की शुरु की आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम से इन प्रस्तावों पर ध्यान न देने बल्कि एकेश्वरवाद के रास्ते पर पूरी दृढ़ता के साथ चलने के लिए कहा गया।

 

अहज़ाब नामक सूरे की आयत नंबर 9 से अहज़ाब नामक जंग का उल्लेख शुरु होता है। अहज़ाब जंग के बारे में इस सूरे में सत्रह आयतें हैं। अहज़ाब नामक जंग पांचवी हिजरी में घटी। अहज़ाब सूरे की आयत नंबर ग्यारह में ईश्वर कह रहा है, “हे ईमान लाने वालों अपने ऊपर ईश्वर की नेमतों को याद करों कि जिस वक़्त तुम्हारे ऊपर बड़ी फ़ौज के साथ चढ़ाई की गयी लेकिन हमने उनके ख़िलाफ़ तेज़ व तूफ़ानी हवा और ऐसा लश्कर भेजा जिसे तुम नहीं देख रहे थे। इस प्रकार दुश्मन को पराजय हुयी। जो कुछ तुम करते हो उसे ईश्वर देख रहा है। जिस वक़्त उन्होंने तुम्हारे शहर पर हर ओर से चढ़ाई की और मदीने को घेर लिया था और उस वक़्त आंखे फटी के फटी रह गयी थीं और जान हलक़ में फंस गयी थी, और ख़ुदा के बारे में तुम्हारे मन में बुरे ख़्याल आ रहे थे। उस वक़्त मोमिनों का इम्तेहान लिया गया।”

 

अरब के क़ुरैश कबीलों ने यहूदियों और दूसरे गुटों को इस लड़ाई में उनका साथ देने के लिए बुलाया था। इसलिए इस जंग को अहज़ाब कहते हैं। वे मुसलमानों को ख़त्म करने के लिए बड़ी सेना लेकर पहुंचे थे। उस वक़्त मुसलमानों ने आपस में विचार विमर्श किया और पैग़म्बरे इस्लाम ने सलमान फ़ारसी के सुझाव को क़ुबूल किया और उन्हीं के सुझाव के अनुसार मदीने के चारों ओर ख़न्दक़ अर्थात गड्ढा खोदा गया ताकि दुश्मन मदीने में दाख़िल न हो सके। अरब में इससे पहले कभी ख़न्दक़ नहीं खोदी गयी थी। मदीने के चारों ओर ख़न्दक ख़ुदना स्ट्रैटिजिक नज़र से बहुत अहम था दुश्मन के मनोबल को तोड़ने और मुसलमानों को मानसिक बढ़त देने के लिए।

 

मुसलमान, दुश्मन के मदीने पर हमला करने से पहले ख़न्दक़ खोदने का काम पूरा कर चुके थे। दुश्मनों की बड़ी संख्या, मुसलमान फ़ौजियों की कमी और उनके पास पर्याप्त उपकरणों के अभाव के दृष्टिगत, मुसलमानों के लिए भविष्य बहुत कठिन होता। कुछ इतिहासकारों ने नास्तिकों के सैनिकों की संख्या 10 हज़ार से ज़्यादा बतायी है किन्तु मुसलमानों की संख्या मुश्किल से तीन हज़ार थी। मुसलमान सिपाहियों ने ख़न्दक़ के सामने अपने मोर्चे बनाए ताकि अगर कोई उसे पार करने की कोशिश करे तो उसका काम तमाम कर दें। नास्तिकों के लश्कर ने मदीने पहुंच कर उसे चारों ओर से घेर लिया।

 

इस जंग का सबसे संवेदनशील चरण दुश्मन के लश्कर के सबसे बड़े पहलवान अम्र बिन अब्दवुद से हज़रत अली की जंग थी। इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि अम्र बिन अब्दवुद अरब का सबसे बड़ा पहलवान था जो नास्तिकों की ओर से लड़ने आया था। उसे जंग में लड़ने का ज़्यादा अनुभव नहीं था। वह घोड़े पर सवार हुआ और एक स्थान से घोड़े के साथ ख़न्दक़ पार करके मुसलमानों के लश्कर के सामने जा पहुंचा और कहने लगा कि कोई है जो मुझसे लड़ सके। उस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने लश्कर वालों से कहा कि कोई जाए और अम्र बिन अब्दवुद का जवाब दे लेकिन हज़रत अली के इलावा कोई भी उससे लड़ने के लिए तय्यार न हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जंग के मैदान में गए। जिस वक़्त हज़रत अली अलैहिस्सलाम जंग के मैदान की ओर जाने लगे तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने कहा कि संपूर्ण ईमान संपूर्ण नास्तिकता के मुक़ाबले में जा रहा है। क्योंकि अहज़ाब नामक जंग का नतीजा ही इस्लाम और नास्तिकता का भविष्य तय करता।

 

हज़रत अली ने अम्र बिन अब्दवुद से कहा कि वह घोड़े से उतर आए ताकि दोनों एक ही स्थिति में जंग करें क्योंकि उस वक़्त हज़रत अली अलैहिस्सलाम घोड़े के बिना जंग के मैदान में गए थे। अम्र बिन अब्दवुद घोड़े से उतर आया और उसने अपनी तलवार से हज़रत अली पर एक वार किया जिसे हज़रत अली ने बड़ी तेज़ी से नाकाम बनाया और उसके बाद हज़रत अली ने अम्र बिन अब्दवुद की पिंडली पर हमला किया। अम्र बिन अब्दवुद ज़मीन पर गिर पड़ा। जंग के मैदान में धूल उड़ने लगी और मुसलमान सिपाही अल्लाहु अकबर का नारा लगाने लगे। कुछ क्षणों बाद लोगों ने देखा कि हज़रत अली धीरे धीरे मोर्चे की ओर लौट रहे हैं और अम्र बिन अब्दवुद का जिस्म मैदान में पड़ा हुआ है। अम्र बिन अब्दवुद के मारे जाने से दुश्मन के लश्कर का हौंसला टूट गया। एक और चीज़ ने मुसलमानों की मदद की। रात के वक़्त ईश्वर के हुक्म से बहुत ठंडी हवा चली और नास्तिकों के ख़ैमे उखड़ गए। नास्तिकों के मन में ख़ौफ़ बैठ गया। फ़रिश्तों पर आधारित फ़ौज ने भी मुसलमानों की मदद की। जिसके नतीजे में नास्तिक भागने पर मजबूर हुए। अहज़ाब नामक जंग इस्लामी इतिहास की सबसे अहम घटना थी जिससे ताक़त का पलड़ा मुसमलानों के हित में मुड़ गया। यह जीत बाद की जीतों की पृष्ठिभूमि बनी।

 

अहज़ाब जंग सबके लिए बड़ा इम्तेहान थी। अहज़ाब सूरे की आयतें इस जंग में विभिन्न गुटों के दृष्टिकोणों को पेश करती हैं। जैसे सच्चे मोमिन, कमज़ोर ईमान वाले, और मिथ्याचारी।  जिस वक़्त अहज़ाब जंग के हालात बने उस वक़्त सच्चे मोमिन पैग़म्बरे इस्लाम के साथ थे जबकि पाखंडियों की स्थिति दूसरी थी। पाखंडियों की हालत को अहज़ाब सूरे की बारहवीं आयत यूं बयान करती है, “जिनके दिलों में रोग था वे कहते थे कि ईश्वर और उसके दूत ने हमसे सिर्फ़ धोखा देने वाले वादे किए।” पाखंडी मदीने के लोगों से कहते थे शत्रुओं की संख्या इतनी अधिक है कि अब कुछ होने वाला नहीं है। ख़ुद को जंग से अलग करके अपने आप और अपने बीवी बच्चों को बचा लो। पाखंडियों का एक गिरोह पैग़म्बरे इस्लाम से पलटने की इजाज़त मांगता था और इसके लिए बहाने पेश करता था। वे कहते थे कि हमारे घर के दरवाज़े और दीवारें ठीक नहीं हैं इसलिए हम रणक्षेत्र को छोड़ कर जाना चाहते हैं। उस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए आयत कहती है, “उनसे कहिए कि अगर मौत या क़त्ल होने के डर से फ़रार करना चाहते हो तो इससे तुम्हें कोई फ़ायदा नहीं पहुंचेगा और तुम दुनिया में कुछ दिनों से ज़्यादा मज़ा नहीं ले पाओगे। अगर मौत का वक़्त आ पहुंचा तो जहां कहीं भी होगे मौत से बच नहीं पाओगे और अगर तुम्हारी मौत नहीं लिखी है तो दुनिया में कुछ दिन अपमान के साथ बिताओगे।”

 

अहज़ाब सूरे में पाखंडियों के एक और गिरोह का उल्लेख है जो जंग में भाग लेने से दूर रहे और कमज़ोर ईमान वाले लोगों को भी जंग से दूर रहने के लिए कहते थे। वे कहते थे कि हमारे साथ आ जाओ और ख़ुद को जंग में कूदने से बचा लो। पाखंडियों के बारे में आयतें कहती हैं कि जब पाखंडियों पर मुसीबत पड़ती है तो इस तरह डरते हैं जैसे तुम्हें देख रहे हों हालांकि डर के मारे उनकी आंखे इस तरह पथराई लगती हैं मानो मौत आ पड़ी हो किन्तु जैसे ही हालत बेहतर होती है और डर का माहौल ख़त्म होता है, वे जंग में मिलने वाले माल के बंटवारे के लिए आगे आगे रहते हैं।

 

अहज़ाब सूरे की आयत नंबर 21 में ईश्वर कह रहा है, “तुम्हारे लिए पैग़म्बर का आचरण आदर्श है। उन लोगों के लिए जो ईश्वर और प्रलय के दिन पर विश्वास रखते हैं और ईश्वर को बहुत याद करते हैं।”

 

अहज़ाब जंग में पैग़म्बरे इस्लाम के नेतृत्व को दूसरों के लिए आदर्श बताया गया है। जैसे सेना को तैयार करने , सैनिकों का हौसला बढ़ाने, मामलों में सहयोग देने और दृढ़ता दिखाने। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण का आदर्श होना सिर्फ़ जंग से विशेष नहीं है बल्कि ज़िन्दगी के हर पहलू से उनका आचरण मोमिनों के लिए आदर्श है।

 

अहज़ाब सूरे की बाइसवीं आयत में सच्चे मोमिनों की विशेषता यूं बयान की गयी है कि वे दुश्मन का लश्कर देख कर ज़रा भी नहीं घबराते बल्कि इससे उनका ईमान मज़बूत होता है। वे पैग़म्बर के आदेश के पालन में सबसे आगे आगे रहे। कुछ ने अपने वचन पर अमल किया और वे शहीद हो गए और कुछ शहादत का इंतेज़ार कर रहे हैं और अपने वचन पर पाबंद रहे। इस आयत के अनुसार सच्चा मोमिन ईश्वर से किये हुए अपने अपने वचन का पालन करता है।

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