Hindi
Thursday 28th of March 2024
0
نفر 0

शहीद शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र की लिखित योजना, सम्मान व गरिमा की याचिका।

अबनाः 2007 में गर्मी के मौसम में सऊदी अरब के पूर्वी क्षेत्र के रहने वाले धर्मगुरू शहीद शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र ने एक राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया था जिसमें इस देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने और सरकार व जनता के बीच सम्बंधों को बेहतर बनाने के लिए एक अच्छी और शानदार रणनीति मौजूद थी। शेख निम्र ने इस योजना और घोषणापत्र को (अरबी भाषा में "ريضة العزة والكرامة") सम्मान व गौरव की याचिका के शीर्षक से सऊदी अरब की
शहीद शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र की लिखित योजना, सम्मान व गरिमा की याचिका।

अबनाः 2007 में गर्मी के मौसम में सऊदी अरब के पूर्वी क्षेत्र के रहने वाले धर्मगुरू शहीद शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र ने एक राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया था जिसमें इस देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने और सरकार व जनता के बीच सम्बंधों को बेहतर बनाने के लिए एक अच्छी और शानदार रणनीति मौजूद थी।

शेख निम्र ने इस योजना और घोषणापत्र को (अरबी भाषा में "ريضة العزة والكرامة") सम्मान व गौरव की याचिका के शीर्षक से सऊदी अरब की सरकार को पेश किया था और फिर अपने इस नवाचार घोषणापत्र और अपने दृष्टिकोण को जुमे की नमाज के ख़ुत्बे (उपदेश) में स्पष्ट रूप से बयान किया। उन्होंने कहा कि इस नवाचार घोषणापत्र पर आधारित याचिका के माध्यम से मांग की गई है कि न्याय, बराबरी, स्वतंत्रता और गरिमा के मौलिक नियमों पर आधारित जनता द्वारा चुनी गई सरकार की स्थापना की जाए और उसकी कानूनी सहायता, निष्पक्ष न्यायपालिका के माध्यम से की जाए।

यह याचिका सऊदी अरब की राजनीतिक सूझबूझ रखने वाली जनता की मांगों का खुलासा और जनता द्वारा चुनी गई सरकार के गठन को क्रियात्मक बनाने का एक धार्मिक घोषणापत्र था। ऐसी सरकार जिसमें न्याय व अदालत, स्वतंत्रता और उत्कृष्टता कानूनी और न्यायिक दायरे में बिना किसी भेदभाव के पाई जाए।

शेख निम्र की याचिका ने सऊदी अरब के अंदर और बाहर के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया, उनका यह लेख हर आदमी की वार्ता का विषय बन गया। यह वह चीज थी जिसने आले सऊद की नींद उड़ा दी। हालांकि अगर सऊदी सरकार इस घोषणापत्र को भला जानते हुए अपनी जनता के हनन हो रहे नागरिक अधिकारों को पूरा करती तो देश की स्थिति में सुधार आ सकता था।

उधर शेख निम्र का अपनी याचिका पर डटे रहना और उसे बार बार जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में दोहराना इस बात का कारण बना कि 8 जुलाई 2012 को सभ्य सरकारी मानकों के विपरीत बर्बर तरीके से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दुनिया ने सेटेलाईट चैनलों के माध्यम से देखा कि किस निर्दयता से आयतुल्लाह निम्र को गिरफ्तार किया गया। सुरक्षाकर्मियों ने उनकी कार का पीछा किया और गोली चलाई जिसके कारण उनके दोनों पैरों में गोलियां लगीं। और कोमा की हालत में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।

उसके बाद से शेख निम्र को अदालत के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया गया। और सऊदी न्यायालय ने 15 अक्टूबर 2014 को बिल्कुल स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों से असंगत 13 न्यायिक सुनवाईयों के बाद आयतुल्लाह निम्र को मौत की सजा दिए जाने का आदेश दे दिया। यह राजनीतिक और क्रूर फैसला आयतुल्लाह निम्र के उस सुधारात्मक घोषणापत्र के कारण था जो न केवल सऊदी सरकार के नुकसान में नहीं था बल्कि सरकार और जनता दोनों के हित में था। लेकिन ऑले सऊद ने धन, घमण्ड और अहंकार के नशे में 2 जनवरी 2016 को उन्हें फांसी दे दी।

जो कुछ यहा बयान किया जा रहा है वह शहीद शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र के उस घोषणापत्र का अनुवाद है जिसे जनता के सामने लाने से पहले सऊदी सदन में पेश किया गया था उसे हम बिना किसी परिवर्तन के यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि उदारवादी लोग इस ऐतिहासिक प्रमाणपत्र की सच्चाई और इसमें वर्णित राजनीतिक और कल्याणकारी मांगों से अवगत हों और फिर खुद फैसला करें कि क्या यह घोषणापत्र और योजना, समर्थन और प्रोत्साहन के योग्य है या जेल और मौत की सज़ा के?

यह लेख शेख निम्र बाक़िर अल-निम्र के साथ एकजुटता कमेटी के माध्यम से अहलेबैत अ. समाचार एजेंसी अपना को प्राप्त हुआ है।

بسم اللہ الرحمن الرحیم

बिस्मिल्लाहिर् रहमानिर्रहीम

हम आभारी हैं उस ख़ुदा के जिसने हक़ व सत्य को स्पष्ट और बाक़ी रहने वाला बनाया और असत्य को अव्यक्त व क्षणिक और सलाम हो मोहम्मद और उनकी पाक संतान पर जो सत्य पर दृढ़ रहे और हमेशा सत्य का समर्थन किया।

शुरु में,मांगों के विषय में प्रवेश करने से पहले कुछ बातें प्राक्कथन के रूप में बयान करता हूँ:

    मैं साफ़ और स्पष्ट,बिना किसी तक़य्या (किसी ख़ास कारण अपने विश्वास व इच्छा के विपरीत बोलना या अमल करना) और हिचकिचाहट के बातचीत करूंगा क्योंकि तक़य्या किसी बड़े नुकसान से बचने और ज़ुल्म व अत्याचार के डर से होता है और मुझे इन दोनों की परवाह नहीं है। इसलिए तक़य्या करने के लिए मजबूर नहीं हूँ।
    सही सुनने और सही समझने की कला बहुत सारे अवसरों पर सही कहने और भाषण देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है,इसलिए कि वह कारण जो शासक और प्रजा,पिता और पुत्र या इन जैसे अन्य रिश्तों में कड़वाहट और दूरी का कारण बनते हैं उनमें से एक कारक,प्रजा और बेटे के विचारों को शासक और पिता की ओर से सही से न सुना जाना है या अगर सुना जाता है तो ऐसा है जैसे कि पहाड़ की चोटी की ऊंचाई से सुना गया हो जो बिना ध्यान दिए सुना जाता है ।
    सरसरी अध्ययन, अस्पष्टता,जटिलताओं,उलझनों और गलतियों से बचने और समस्याओं की वास्तविकता को समझने के लिए पर्याप्त है,इस शर्त के साथ कि यह अध्ययन झूठी रिपोर्टों, ग़लतियों यानकली व गलत आंकड़ों एंवपक्षपातपूर्ण या संदिग्ध विश्लेषणों पर आधारित न हो।
    मुझे उम्मीद है कि सीने साफ़ व सच बोलने और स्पष्ट शब्दों में बिना किसी संदेह के बोलने वालों को सुनने की ताक़त रखते होंगे ताकि पाक दिल और साफ ज़बाने रखने वाले तक़य्या करने पर मजबूर न हों और बीमार दिल और चोट पहुंचाने वाली ज़बाने पाखंड,दोगलेपन,झूठ और विश्वासघात से दूर रहें।
    मज़हबों और समाजों के साथ सबसे अच्छा सहास्तित्व रखता है। इसलिए कि शिया सोच सुधार,सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव की ओर बुलाने वाली हैचाहे इसके परिणाम स्वरूप अपने अधिकारों से वंचित ही होना पड़े।

इसलिए कि यह सोच हिंसा, अराजकता, उग्रवाद और तनाव को पूरी तरह से नकार देती है। इस सोच के संस्थापक अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ. हैं। जो जंग के मैदान में हीरो और हैदरे कर्रार अर्थाथ बहादुर शेर थे लेकिन आपने फरमाया:ख़ुदा की सौगंध अमुक व्यक्ति ने खिलाफत की कमीज़ को खींच तान कर पहन लिया है हालांकि उसे पता है कि खिलाफत की चक्की के लिए मेरी स्थिति केंद्रीय कील की है। ज्ञान का सैलाब मेरी ज़ात से होकर नीचे जाता है और मेरी ऊंचाई तक किसी की सोच भी पहुंच नहीं सकती। फिर भी मैंने खिलाफत के आगे पर्दा डाल दिया और उससे मुंह मोड़ लिया और यह सोचना शुरू कर दिया कि कटे हुए हाथों से हमला कर दूँ या इसी अंधेपन के अंधेरे पर सब्र कर लूँ जो अधेड़ को पूरी तरह से थका देता है और जवान को बूढ़ा कर देता है और मोमिन को कष्ट देता है यहां तक कि वह अल्लाह की बारगाह में पहुँच जाए।

तो मैंने देखा कि इन परिस्थितियों में धैर्य व सब्र ही समझदारी है तो मैंने इस हाल में सब्र कर लिया कि आँखों में दुख की खटक थी और गले में शोक के फंदे थे मैं अपनी विरासत को लुटते देख रहा था।(नहजुल बलाग़ा,ख़ुतबा-ए-शिक़शिक़ीया)।

فلان وإنه ليعلم أن محلي منها محل القطب من الرحى، ينحدر عني السيل ولا يرقى إلي الطير، فسدلتُ دونها ثوباً وطويتُ عنها كشحاً، وطفقتُ أرتأي بين أن أصول بيد جذاء أو أصبر على طخية عمياء يهرم فيها الكبير، ويشيب فيها الصغير، ويكدح فيها مؤمن حتى يلقى ربه، فرأيت أن الصبر على هاتا أحجى، فصبرت وفي العين قذى، وفي الحلق شجا أرى تراثي نهبا

उन्होंने यूं हमें सिखाया है कि हम सामाजिक और नगरीय शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अत्याचार को सहन करें जैसा कि आपने कहा: जब तक कि लोग अमन व शांति में जी रहे हों और मेरे अलावा किसी पर अत्याचार न हो तो मैं सहन करता रहूंगा।यह वह शब्द है जो आज भी उनके चाहने वालों और अनुयायियों के दिलों में मौजूद हैं।

इस प्राक्कथन के बाद अपनी बात को अल्लाह तआला के वचन से शुरू कर रहा हूँ जो उसने अपनी किताब में फ़रमाया है: ऐ दाऊद! हमने आपको ज़मीन पर ख़लीफ़ा बनाया है ताकि लोगों में इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करें और अपनी इच्छा का पालन न करें हैं,वह आपको अल्लाह के रास्ते से हटा देगी,जो अल्लाह के रास्ते से भटकते हैं उनके लिए हिसाब के दिन भूलने पर निसंदेह कड़ी सजा दी जाएगी।

يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُم بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَى فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ

हम बिल्कुल इस बात के इच्छुक नहीं हैं और न होंगे जो राष्ट्रीय या सार्वजनिक शांति व सुरक्षा को ख़तरे में डाले,या हुकूमत के सदस्यों को कमजोर या ध्वस्त करे या विभागों की कमज़ोरी का कारण बने।

हम जिन चीजों की मांग करते हैं,वह ऐसी बातें हैं जो देश में सुरक्षा और स्थिरता की गारंटी लेती हैं,सरकार के स्तंभों को मजबूत बनाती हैं और उसकी नींव को मजबूत करती हैं। इसलिए कि हम उस अधिकार के अलावा कुछ नहीं चाहते जो ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने बंदों के लिए निर्धारित किया है और नबियों ने शासकों को लोगों के बीच उसे लागू करने का आदेश दिया है। वह अधिकार जो उस सम्मानित जीवन की स्थिरता का कारण बनता है जिसे अल्लाह ने इंसानों से विशेष किया है"हमने आदम की संतान को सम्मानित पैदा किया।"

ولقد کرمنا بنی آدم

वह मानवीय सम्मान जिसे कोई चाहे कितनी ही बड़ी शक्ति का मालिक हो या कितने बड़े पद पर हो, इंसान से छीनने या उसे हनन करने का अधिकार नहीं रखता और यहां तक ख़ुद इंसान को भी उसकी अनदेखी करने और उसे त्याग देने की अनुमति नहीं है। इसलिए कि यह सम्मान उन अधिकारों में से है जिनकी सुरक्षा के अलावा अधिकार रखने वाले को भी उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है। जीवन के अधिकार से परे अधिकार जिसमें न किसी को हस्तक्षेप की अनुमति है और न इसके बिना जीवन की कोई कीमत है और वह है मानवीय सम्मान तथा आत्मसम्मान।

इस गरिमा और आत्मसम्मान की ऊंचाइयों को तय करना कि जिसकी हर समझदार और शरीफ इंसान को तमन्ना होती है, केवल सदाचार द्वारा संभव है और सदाचार ही है जो इंसान को शालीनता के उच्च स्तर तक पहुँचाता है।

ان اکرمکم عند الله اتقاکم

और यह इसलिए है कि सदाचार ऐसा अच्छा गुण है जिस पर सभी नबियों और इमामों को बनाया गया और उनके सभी अनुयायियों और चाहने वालों को ताकीद की गई है कि वह अपने अंदर इस विशेषता को बनाए रखें,इसलिए कि सदाचार ऐसा मज़बूत किला है जो हुकूमत की शांति और स्थिरता की रक्षा करता है और उसको बिखरने से बचाता है।

भला जिसने अपनी इमारत की नींव अल्लाह के डर और उसकी इच्छा पर रखी हो वह बेहतर है? या वह जिसने अपनी इमारत की नींव गिरने वाली खाई के किनारे पर रखी हो,तो वह (निर्माण) उसे लेकर जहन्नम की आग में जा गिरे?और अल्लाह अत्याचारियों का मार्गदर्शन नहीं करता।

أَفَمَنْ أَسَّسَ بُنْيَانَهُ عَلَى تَقْوَى مِنَ اللّهِ وَرِضْوَانٍ خَيْرٌ أَم مَّنْ أَسَّسَ بُنْيَانَهُ عَلَىَ شَفَا جُرُفٍ هَارٍ فَانْهَارَ بِهِ فِي نَارِ جَهَنَّمَ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ

इसलिए कि हुकूमत सदाचार का रंग और रूप ले,जो अच्छाई और स्थिरता की पृष्ठभूमि और पतन की राह में बाधा है,उसे चाहिए कि सभी नियम सदाचार से सुसज्जित हों और सभी छोटी-बड़ी सरकारी संस्थाएं,सभी मंत्रालय अदालत के आधार पर हों जो सदाचार तक पहुंचने का सबसे निकट मार्ग है।

ऐ ईमान वालो! अल्लाह के लिए पूरी तरह से उठ खड़े होने वाले और न्याय के साथ गवाही देने वाले बन जाओ और लोगों की दुश्मनी तुम्हारे अन्याय का कारण न बने,(हर हाल में) न्याय करो! यही सदाचार के सबसे निकट है और अल्लाह से डरो,वास्तव में अल्लाह तुम्हारें कामों को अच्छी तरह जानता है।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُونُواْ قَوَّامِينَ لِلّهِ شُهَدَاء بِالْقِسْطِ وَلاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَى أَلاَّ تَعْدِلُواْ اعْدِلُواْ هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ

लोगों पर न्याय व इंसाफ़ के साथ हुकूमत करना वह अधिकार है जिसका अल्लाह ने अपने नबी दावूद को आदेश दिया और वह आदेश है जो अल्लाह तआला ने अपने सबसे प्रिय व सर्वक्षेष्ठ बंदे हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ पर अवतरित किया: "इसलिए आप उसकी ओर आमंत्रित करें और जैसे आपको आदेश मिला है दृढ़ संकल्प रहें और उनकी इच्छाओं का पालन न करें और कह दें: अल्लाह ने जो किताब भेजी है मैं उस पर ईमान लाया और मुझे आदेश मिला है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूं।"

فَلِذَلِكَ فَادْعُ وَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ وَقُلْ آمَنتُ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِن كِتَابٍ وَأُمِرْتُ لِأَعْدِلَ بَيْنَكُمُ

यह बात उन सभी लोगों के लिए है जो हुकूमत की गद्दी पर बैठते हैं,"निसंदेह अल्लाह तुम लोगों को आदेश देता है कि न्यास व अमानतों को उनके परिवार को सौंप दो और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो तो न्याय के साथ करो,अल्लाह तुम्हें सबसे उपयुक्त उपदेश देता है,निश्चित रूप से अल्लाह तो हर बात को अच्छी तरह सुनने और देखने वाला है"और अदालत की पूर्ति के लिए सिवाय इसके कोई रास्ता नहीं कि लोगों के बीच न्याय व इंसाफ़ से फ़ैसला किया जाए।"और जब फ़ैसला करते हो तो उनके बीच न्याय के साथ से फ़ैसला करो कि अल्लाह न्याय करने वालों को दोस्त रखता है।

وَإِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُم بَيْنَهُمْ بِالْقِسْطِ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ

अल्लाह ने न्याय व इंसाफ़ को लागू करने के लिए अपने नबियों व दूतों को स्पष्ट व खुले तर्कों के साथ भेजाऔर उनके साथ किताबें और व्यापक रूप से आदेश व नियम जो हमें अत्याचार से सुरक्षित रखते हैं तथा न्याय और इंसाफ़ के पैमाने बताए ताकि लोग न्याय और इंसाफ़ से काम लें और कोई किसी पर अत्याचार व उत्पीड़न न करे।

उसने एक ऐसी रोकने वाली शक्ति को भी उतारा जो अगर कोई किसी के अधिकारों का हनन करे तो उसे सजा देती है और यह सजा कभी कभी सबसे कठिन चरण यानी युद्ध और हत्या के रूप में भी होती है। यह सभी बातें इंसानों की ज़िंदगी,पदोन्नति और शालीनता को सुरक्षित रखने,उनके सभी अधिकारों का पालन करने और दूसरों पर अत्याचार रोकने के लिए है वासना या क्रोध को दबाने के लिए नहीं। "निसंदेह हमने अपने रसूलों को स्पष्ट तर्क के साथ भेजा है और हम उनके साथ किताब और तराज़ू (मापदंड) भेजा है ताकि लोग न्याय स्थापित करें और हमने लोहा उतारा जिसमे ज़बरदस्त शक्ति है और उसमें लोगों के लिए लाभ हैं और ताकि अल्लाह मालूम करे कि कौन बिन देखे अल्लाह और उसके दूतों की मदद करता है,अल्लाह वास्तव में बड़ी ताक़त वाला और हावी होने वाला है।

لَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنَاتِ وَأَنزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ وَأَنزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ وَرُسُلَهُ بِالْغَيْبِ إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ

इसलिए शासक की दो मुख्य जिम्मेदारियां जिनको अंजाम देने के लिए उसे तैयार हो जाना चाहिए एक न्याय और दूसरी क़िस्त (इंसाफ़) है। न्याय अर्थात शासक की ओर से प्रजा पर अत्याचार न हो और किस्त अर्थात प्रजा एक दूसरे पर अत्याचार न करे। न्याय और किस्त की स्थापना से इंसान सारे अधिकारों का पालन कर सकता है और वित्तीय, राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक आदि में सम्मानजनक जीवन बिता सकता है।

इसलिएशासक के लिए दो चीज़ें अनिवार्य हैं:

    न्याय पर चलने वाली हुकूमत की स्थापना यानी खुद अत्याचार न करे।
    क़िस्त पर चलने वाली हुकूमत की स्थापना यानी उसकी सरकार में कोई किसी पर अत्याचार न करे।

शासक और प्रजा की ओर से न्याय और किस्त की स्थापना,एक हुकूमत की स्थिरता और उसके बाक़ी रहने के दो मुख्य स्तंभ हैं और उन मांगों का सारांश जिनकी समाज को ज़रूरत है और जिनके होने की प्रजा इच्छा करती है,वह शासन जिसमें सामाजिक सहमति हो,रचनात्मक टिप्पणी हो,विवेकपूर्ण नवाचार हो और अमन व शांति हो। अगर शासक न्याय और किस्त के आधार पर हुकूमतों के गठन के पाबंद हो जाएं तो अत्याचार व उत्पीड़न समाप्त हो जाएगा,शसान प्रणाली की नाव भयावह और थपेड़े मारते हुए समुद्र की अशांत मौजों से सही व संरक्षित निकलकर किनारे पहुंच जाएगी और ज़िदगी के सभी क्षेत्रों में शातिं ही शांति होगी।

अगर अमन व शांति हो तो आर्थिक विकास भी होगा,धन दौलत में भी वृद्धि होगी,सभी लोग बेनियाज़ हो जाएंगे और हर इंसान बिना किसी कमी के अपने अधिकार हासिल कर लेगा "जब इमाम महदी अ. उपस्थिति होंगे तो न्याय की हुकूमत होगी,ज़ुल्म का नामोनिशान मिट जाएगा,रास्तों में अमन व शांति हो जाइगी, जमीनें अपनी बरकतें उडेंल देंगी और सभी अधिकार अपने असली हक़दारों को मिल जाएंगे।"

اذا قام القائم حكم بالعدل وارتفع في أيامه الجور وأمِنت به السُبل وأخرجت الأرض بركاتها ورُدَ كل حق إلى أهله

उक्त बातों से हमारी मांगें स्पष्ट हो जाती हैं,वह मांगें जिनका सारांश यह है:

    विश्वास व अक़ीदे के चयन में,उस पर अमल करने में,उसके विचारों और सिद्धांतों का पालन करने और उसके बारे में बातचीत करने में न्याय और स्वतंत्रता। (विचारधारात्मक और बौद्धिक न्याय एंव स्वतंत्रता)।
    व्यापार के चयन और सभी सरकारी और गैर सरकारी केन्द्रों में और उसके विकास में अदालत,किस्त और स्वतंत्रता (व्यापार की स्वतंत्रता)
    भौतिक भंडारों से लाभ उठाने में जिसे अल्लाह तआला ने इस धरती में रखा हैं न्याय एंव स्वतंत्रता। (आर्थिक स्वतंत्रता और न्याय)
    राजनीतिक विचारधारा और दृष्टिकोण पेश करने में न्याय एंव स्वतंत्रता। (राजनीतिक स्वतंत्रता और न्याय)।
    सामूहिक और व्यक्तिगत समस्याओं में न्याय एंव स्वतंत्रता। (सामूहिक स्वतंत्रता और न्याय)
    न्यायपालिका और दंड के प्रावधानों में न्याय एंव स्वतंत्रता (न्यायिक न्याय)

इसलिए कि यह मांगें भ्रमित न रह जाएं और सामान्य तौर पर बयान करने के नतीजे में उस पर ध्यान न दिया जाए उनमें से कुछ मुद्दों को जिनका अंजाम पाना समाज की उम्मीद है और स्पष्ट रूप से बयान करता हूँ और अस्पष्टता को दूर करने की कोशिश करता हूँ:

1)    शिया धर्म को आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया जाए उसे मान्यता दी जाए और सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं व केंद्रों में शिया धर्म के मानने वालो को सम्मान की निगाह से देखा जाए और उनके साथ न्याय से पेश आया जाए।

2)    हर इंसान,मुस्लिम या गैर मुस्लिम सबको अधिकार है कि वह जिस धर्म को पसंद करता है उसका अनुसरण करे। इसलिए इंसान को अधिकार है कि अहलेबैत अ. के मज़हब को अपने धर्म के रूप में चयन करे और उसके सिद्धांतों व नियमों पर विश्वास रखे और उसके अनुसार इबादत करे और किसी को अधिकार नहीं है कि वह उसकी निंदा करे,उसे धर्म छोड़ने मजबूर करे या उसे आतंकवाद का निशाना बनाए या उसे धार्मिक संस्कारों के अनुसरण से रोके या उसे यातनाएं दे।

3)    उन सभी नियमों, आदेशों और नीतियों को रद्द किया जाए जो शिया धर्म और उसके मानने वालों के अधिकारों का हनन करती हैं या उन्हें महत्वहीन दर्शाती हैं।

4)    मदरसों और विश्वविद्यालयों के सभी पाठ्यक्रमों को बदला जाए और उसकी जगह निम्नलिखित विकल्पों में से कोई एक विकल्प चुना जाएगा:

अ)    धार्मिक पाठ्यक्रम में केवल ऐसी बातों को लाया जाए जो इस्लाम के संयुक्त बिंदुओं पर आधारित हैं और उनमें किसी प्रकार के मतभेद को इशारे में भी बयान न किया जाए। यह वह अच्छा विकल्प है,जिससे सभी ख़ुश होंगे,मगर वह लोग जिनकी विचारधारा मतभेद और लड़ाई झगड़े पर आधारित है और दूसरों को अपनी ताकत या हथियारों के बल पर दबा कर रखना चाहते हैं,तर्क के मुक़ाबले में तर्क और प्रमाण के मुकाबले में प्रमाण लाने में असमर्थ हैं। (वह धार्मिक समानताओं पर आधारित पाठ्यक्रम को लागू करने पर राजी नहीं होंगे)।

आ)  हर धर्म के मानने वालों के लिए अलग अलग पाठ्यक्रम निश्चित किया जाए इस तरह से है कि प्रत्येक छात्र इस मामले में वह खुद धार्मिक पाठ्यक्रम का चयन करे अगर समझदार हो और छोटा होने की स्थिति में उसका अभिभावक व वारिस उसके लिए पाठ्यक्रम का चयन करे।

इ)     क्षेत्र में धार्मिक बहुमत के मद्देनजर पाठ्यक्रम को चुना जाए उदाहरण स्वरूप क़तीफ़ और उस जैसे क्षेत्रों में शिया मूल्यों पर आधारित पाठ्यक्रम लागू किया जाए।

ई)     स्कूलों या विश्वविद्यालयों में धार्मिक बहुमत के मद्देनजर पाठ्यक्रम निश्चित किया जाए यानी जिन स्कूलों में शिया छात्र अधिक हैं वहां उनके धर्म के अनुसार पाठ्यक्रम चलाया जाए।

5)    मदीने में इमामों अ. की क़ब्रों पर रौज़े बनाने तथा अन्य देशों (ईरान और इराक़) में मौजूद रौज़ों की ज़ियारतों की अनुमति दी जाए। वह हुकूमत जो इससे पहले एक मामूली और छोटे टोले के सामने झुक गई और उसे जन्नतुल बक़ीअ के रौज़ों को गिराने की अनुमति दे दी और न केवल शियों बल्कि अहलेबैत अ. के चाहने वालों के दिलों को दुखी करने का कारण बनी,इसलिए वह हुकूमत अपने पिछले अपराधों और गल्तियों की क्षतिपूर्ति के लिए उनके रौज़ों का पुनः निर्माण किए जाने का सारा खर्च उठाए। यह घाव दिन,वर्ष या शताब्दियां बीतने के बाद भी नहीं भरेंगे जब तक कि उन रौज़ों का पहले से बेहतर तरीके से निर्माण न किया जाए। रौज़ों को ध्वस्त करने वाला मुट्ठी भर टोला न किसी इस्लामी धर्म का प्रतिनिधि है और न उसके विचार और विश्वास किसी इस्लामी गुट से मेल खाते हैं। इस्लामी सम्प्रदायों से उसका कोई रिश्ता न होने का स्पष्ट तर्क एक यह है कि वह रसूले इस्लाम स.अ के रौज़े को भी गिराना चाहता है जबकि कोई इस्लामी संप्रदाय इस काम की अनुमति नहीं देता है।

6)    कुरान करीम,पैग़म्बरे अकरम स. और अहलेबैत अ. की शिक्षाओं पर आधारित धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मदरसों, युनीवर्सिटीयों और धार्मिक संस्थान बनाने की अनुमति दी जाए जैसा कि इराक़,ईरान,सीरिया, लेबनान और अन्य इस्लामी देशों में अनुमति हासिल है।

7)    जाफ़री मज़हब के अनुसार स्थायी शरई अदालतें स्थापित करने की अनुमति दी जाए और अन्य अदालतों में भी जरूरत के अनुसार शिया जजों को रखा जाए ताकि वह अपने धर्म के मानने वालों के सभी मामलों के प्रति उनके धर्म के अनुसार फ़ैसला कर सकें।

8)    शिया उलेमा काउंसिल की"अहलेबैत अ. फ़ुक़हा काउंसिल" के शीर्षक से गठन की अनुमति प्रदान की जाए जिसमें उन लोगों को सदस्यता मिले जो मुज्तहिद (धर्मशास्त्र के विशेषज्ञ) हों और उनकी जिम्मेदारी शिया समुदाय के धार्मिक और भौतिक मामलों की देखभाल,उनकी शरई जरूरतों को पूरा करना और अन्य समस्याओं में सही सलाह-मशविरा देना और सामान्य रूप से उनका निर्देशन करना हो। यह परिषद स्थायी और आतंरिक या बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित हो।

9)    मस्जिदों,इमामबाड़ों और धार्मिक केन्द्रों के निर्माण की अनुमति दी जाए और उन कठिनाइयों और समस्याओं को समाप्त किया जाए जो इसमें बाधा बन रही हैं।

10) सभी धार्मिक मूल्यों में लोगों को आज़ाद छोड़ा जाए।

11)सरकारी मीडिया में शिया उल्मा को भी धार्मिक मसले बयान करने की अनुमति दी जाए।

12)मस्जिदुल हराम और मस्जिदुन नबी में नमाज़ की इमामत में शिया धर्म के मानने वालों को भी उचित हिस्सा दिया जाए।

13)विदेश से शिया किताबों को लाने या देश के अंदर छपवाने की अनुमति दी जाए।

14)सरकार के अधीन संगठनों जैसे मुस्लिम वर्ल्ड लीग या उस जैसे संगठनों में शियों को भी इंसाफ़ के साथ शामिल किया जाए।

15)सरकारी पदों में विकास तथा मंत्रालयों,सलाहकार समितियों और सदन में शियों की संख्या के अनुसार उन्हें भी शामिल किया जाए।

16)लड़कियों की शिक्षा प्रणाली में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक शियों को भी उनकी संख्या के अनुसार प्रबंधन का अधिकारदिया जाए।

17)आरामको कंपनी और अन्य सरकारी कंपनियों में शियों को भी उनकी क्षमताओं के अनुसार मैनेजमेंट में शामिल होने की अनुमति दी जाए।

18)शिया जवानों को सरकारी नौकरियां और सरकारी या सरकार से जुड़े संस्थानों में प्रबंधन की अनुमति दी जाए।

19)क़तीफ़ में एक ऐसे विश्वविद्यालय के निर्माण की अनुमति दी जाए जिसमें सभी ज्ञानात्मक और विशिष्ट विभाग उपलब्ध हों, हाई स्कैंड्री के बाद छात्र और छात्राएं उसमें उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें।

20)वह सभी कर्मचारी जिन्हें 1979 या उसके बाद विभिन्न कारणों के आधार पर जेलों में बंद किए जाने की वजह से नौकरियों से हटा दिया गया था फिर से बहाल किया जाए और इस बीच जितनी भी उनकी सेलरी बर्बाद हुई है उसका भुगतान किया जाए और उनके लिए भविष्य में बेहतर ज़िंदगी बिताने को सम्भव किया जाए।

21)सभी राजनीतिक कैदियों खासकर वह कैदी जो वर्षों से कॉल कोठरियों में पड़े हुए हैं उनके बीवी-बच्चे,माता-पिता और अन्य परिवार वाले उनका इंतजार कर रहे है, तुरंत रिहा किया जाए ताकि वह एक बार फिर से अपना नया और सम्मानजमक जीवन शुरू कर सकें।

22)बेरोजगारी की मुश्किल को हल किया जाए और पढ़े लिखे लोगों को स्कूलों,कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अच्छे वेतनों के साथ जिससे वह सम्मानजनक जीवन जी सकें (शादी ब्याह की समस्याओं को निपटा सकें, घर बना सकें और अपनी रोज़ाना की ज़रूरतों और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कर सकें) नौकरियां दी जाएं।

23)समस्याओं को आपस में उलझाने से परहेज किया जाए और हमेशा उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से न देखा जाए इसलिए कि बहुत सारी समस्याओं का देश की सुरक्षा से कोई सम्बंध नहीं होता है लेकिन उन्हें राजनीतिक मुद्दा बनाकर सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाता है जो बहुत सारी कठिनाइयों बल्कि कभी-कभी संकट के वुजूद में आने का कारण बन जाता है।

24)सरकार सभी समूहों और समुदायों से समान रूप से दूरी बनाए रखे और किसी एक समुदाय या समूह पर अधिक ध्यान न दे ताकि अन्य समूहों और समुदायों को बुरा न लगे,इसलिए कि सरकार का ऐसा व्यवहार उसे सख्त मुश्किलों का सामना करा सकता है।

25) ऐसे सार्वजनिक और सरकारी केन्द्र बनाए जाएं जिसमें जनता सरकारी अधिकारियों की शिकायत कर सके और मज़लूमों एंव पीड़ितों के अधिकार उन्हें दिलाने और अपराधियों को सज़ा दिलानें की कोशिश करे। बेहतर है कि यह केंद्र डीएम हाउस में बनाए जाएं और सरकार अपने विश्वसनीय लोगों को उनके लिए चुने और लोग भी अपने प्रतिनिधियों को चुनकर उसमें शामिल करें, इसी तरह यह केन्द्र हर शहर में एक कमेटी बनाए जिसके सदस्यों का चयन खुद जनता करे ताकि मज़लूम और पीड़ित वर्ग इन कमेटियों तक अपनी बातें पहुंचा सकें। और वह कमेटियां उनकी मांगों को सेंट्रल ऑफ़िस तक पहुंचाएं और वह उनकी शिकायतों को सम्बंदित केन्द्रों तक पहुंचाएं और आखिर तक उन शिकायतों पर ध्यान दें।

अंत में अल्लाह से दुआ करते हैं कि हमारे दिलों को शुद्ध और पवित्र बनाए हमारी ज़बानों को पवित्र रखे हमारे बीच प्यार और मोहब्बत पैदा हो, हमें एक दूसरे के करीब करे,हमारे दुश्मनों को हार का सामना करना पड़े और हमारे नारे (कलमा-ए-तौहीद) को तरक़्क़ी दे।

سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ، وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ، وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ} وصلى الله على محمد وآله الطاهرين.

                                                                 निम्र बाक़िर अल-निम्र

                                                               3 रजब 1428 हिजरी

                                                                          18 जुलाई 2007


source : abna24
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

ईरान के विरुद्ध अमरीका की जासूसी ...
वरिष्ठ कमांडर मुस्तफ़ा ...
क़ुरआन तथा पश्चाताप जैसी महान ...
दावत नमाज़ की
सीरियाई सेना की कामयाबियों का ...
मुसाफ़िर के रोज़ों के अहकाम
चिकित्सक 2
इस्लाम में पड़ोसी अधिकार
यमन के राजनीतिक दलों की ओर से ...
अमरीका द्वारा आतंकवाद की पैदावार ...

 
user comment