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इस्लामी क्रांति की सफलता

ईरान की इस्लामी क्रांति 11 फरवरी वर्ष 1979 में सफल हुई थी। इस क्रांति की सफलता क्षेत्र और विश्व में बहुत से परिवर्तनों का स्रोत बनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसने भारी प्रभाव डाला। इस क्रांति ने ईमान और इस्लामी शिक्षाओं व आस्थाओं पर भरोसा करके और इसी प्रकार न पूरब, न पश्चिम के नारों के साथ शाह की अत्याचारी सरकार को उखाड़ फेंका और ईरान में इस्लामी व्यवस्था व्यवहारिक हो गयी। इस्लामी क्रांति वर्तमान शताब्दी की विश्व की एक बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण घटना थी जिसके ईरान और विश्व में बहुत ही रचनात्मक परिणाम
इस्लामी क्रांति की सफलता

ईरान की इस्लामी क्रांति 11 फरवरी वर्ष 1979 में सफल हुई थी। इस क्रांति की सफलता क्षेत्र और विश्व में बहुत से परिवर्तनों का स्रोत बनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसने भारी प्रभाव डाला। इस क्रांति ने ईमान और इस्लामी शिक्षाओं व आस्थाओं पर भरोसा करके और इसी प्रकार न पूरब, न पश्चिम के नारों के साथ शाह की अत्याचारी सरकार को उखाड़ फेंका और ईरान में इस्लामी व्यवस्था व्यवहारिक हो गयी। इस्लामी क्रांति वर्तमान शताब्दी की विश्व की एक बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण घटना थी जिसके ईरान और विश्व में बहुत ही रचनात्मक परिणाम थे।

 
 
फ्रांसीसी बुद्धिजीवी रोजे गैरोडी अपने एक लेख में ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में इस प्रकार लिखते हैं” वास्तव में जिस क्रांति का मार्गदर्शन व नेतृत्व स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने किया वह उन क्रांतियों से  नहीं मिलती है जो उससे पहले थीं। इतिहास में ऐसी क्रांतियां रही हैं जो राजनीतिक परिवर्तन के उद्देश्य से हुई हैं। विश्व में सामाजिक क्रांतियां भी हुई हैं जो धनाढ़्य लोगों के विरुद्ध निर्धनों के क्रोध की सूचक हैं। इसी प्रकार राष्ट्रीय क्रांतियों ने भी साम्राज्यवादियों और दूसरों के अधिकारों के छीन लेने वालों के विरुद्ध अपने क्रोध को दर्शा दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति में भी ये समस्त कारण मौजूद थे परंतु जो बातें कहीं गयीं इस क्रांति में उनके अलावा कुछ नये अर्थ व विषय भी थे जिसने न केवल राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से तानाशाही सरकार का अंत कर दिया बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण विश्व में धर्म के मुकाबले में जो बातें कही जाती थीं उसे परिवर्तित कर दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति का एक प्रभाव यह हुआ कि वह मुसलमानों के मध्य भाईचारे और एकता की मज़बूती का कारण बनी। इस क्रांति ने पवित्र कुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम की जीवनी के आधार पर मुसलमानों के मध्य एकता की आधारशिला रखी।
 
 
 
 
 
ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ही शत्रुओं के मुकाबले में मुसलमानों का एकता के लिए आह्वान करते थे। इसी प्रकार स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने मुसलमानों की इज़्ज़त व प्रतिष्ठा को एकता में नीहित बताया। इमाम ख़ुमैनी एक स्थान पर इस प्रकार फरमाते हैं” हे विश्व के मुसलमानों उठ खड़े हो और एकेश्वरवाद और इस्लाम की शिक्षाओं की छत्रछाया में एकत्रित हो जाओ और विश्वासघाती बड़ी शक्तियों को अपने देश और उनके समृद्ध स्रोतों से बाहर निकाल दो और इस्लाम के वैभव को जीवित करो और मतभेद तथा अपनी इच्छाओं का पालन करने से परहेज़ करो कि तुम्हारे पास हर चीज़ है।“
 
द वल्र्ड फोरम फॉर प्राक्सि मिटी आफ इस्लामिक स्कूल्स आफ़ थाट का गठन भी इसी उद्देश्य से किया गया था। इसी तरह ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ में ही 12 से 17 रबीउल अव्वल के समय को एकता सप्ताह के रूप में मनाये जाने की घोषणा की गयी। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिन के बारे में शीया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य मतभेद है और सुन्नी मुसलमान 12 रबीउल अव्वल को जबकि शीया मुसलमान 17 रबीउल अव्वल को  पैग़म्बरे इस्लाम का शुभ जन्म दिवस मानते हैं। इसी बात को दृष्टि में रखकर 12 से 17 रबीउल के समय को ईरान में एकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसी संबंध में ईरान में प्रतिवर्ष विभिन्न कांफ्रेन्स व कार्यक्रम होते हैं जिसमें विभिन्न इस्लामी देशों के विद्वान, बुद्धिजीवी और विचारक आदि भाग लेते हैं।
 
 
 
 
 
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान ने भी पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस देश की सरकार को यह दायित्व सौंपा है कि वह इस्लामी राष्ट्रों के मध्य एकता व एकजुटता को व्यवहारिक बनाने की दिशा में अपनी व्यापक नीतियों को गठित करे। पवित्र कुरआन के अनुसार समस्त मुसलमान एक राष्ट्र व समुदाय हैं और ईरान की इस्लामी सरकार का दायित्व है कि वह अपनी व्यापक नीतियों की आधारशिला इस्लामी राष्ट्रों से एकता व एकजुटता के परिप्रेक्ष्य में रखे और इसके लिए वह प्रयास करे ताकि इस्लामी जगत के मध्य राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक एकता व्यवहारिक हो सके। ईरानी संविधान की 11वीं धारा के अनुसार स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी क्रांति के आरंभिक वर्षों से ही सदैव मुसलमानों के मध्य एकता पर बल देते थे और मुसलमानों का आह्वान करते थे कि वे हज के मौसम में इस महत्वपूर्ण कार्य पर विशेष ध्यान दें। स्वर्गीय इमाम खुमैनी हज के एक मौसम में इस संबंध में फरमाते हैं” विश्व के मुसलमानों के एकत्रित होने, बड़ी शक्तियों से अपने देशों को मुक्ति दिलाने के लिए समस्त इस्लामी धर्मों के मध्य समन्वय बनाने, ईरान से पूरब और पश्चिम की शक्तियों के हितों के समाप्त होने का अवसर निकट है और बड़े शैतान ने मुसलमानों के मध्य फूट डालने के लिए अपने चेलों को छोड़ दिया है ताकि वे हर संभव मार्ग से मुसलमानों के मध्य फूट के बीज बो सकें और उनके वर्चस्व के लिए रास्ता खोल सकें। साथ ही स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने इस बात पर बल दिया था कि पूरब और पश्चिम की अत्याचारी सरकारों के ईरान में हित समाप्त होने का रहस्य एकता है। स्वर्गीय इमाम खुमैनी के राजनीतिक और धार्मिक विचारों में इस्लामी राष्ट्रों के मध्य एकता को विशेष स्थान प्राप्त था।
 
 
 
 
 
इस्लामी आंदोलनों के मध्य गहरा धार्मिक और व्यापक संबंध इस बात का कारण बना कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने एक इस्लामी राष्ट्र की विचारधारा को प्रचलित किया और ईरान की इस्लामी क्रांति और इस्लामी जगत के दूसरे आंदोलनों के मध्य अटूट संबंध उत्पन्न कर दिया और उन्होंने अपने इसी दृष्टिकोण को विश्व के लुटेरों और इस्लामी क्रांति की सफलता की स्ट्रैटेजिक बनाया। स्वर्गीय इमाम खुमैनी एक स्थान पर फरमाते हैं हम इस्लाम और इस्लामी देशों की रक्षा और हर हाल में देशों की स्वतंत्रता व स्वाधीनता के लिए तैयार हैं। हमारा कार्यक्रम कि जो इस्लाम का कार्यक्रम है, मुसलमानों के मध्य एकता है इस्लामी देशों के मध्य एकता है, विश्व के समस्त क्षेत्रों के मुसलमानों के साथ भाईचारा है पूरे विश्व में इस्लामी सरकारों के साथ एकजुटता व समन्वय है।“
 
इसी विशेषता ने ईरान की इस्लामी क्रांति को व्यापक बना दिया है। ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी का इस्लामी एकता के महत्व और इस्लामी सरकार के गठन के संबंध में मानना था कि व्यवस्था और मुसलमानों के मध्य एकता की सुरक्षा के लिए सरकार का गठन आवश्यक है। इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक मूल घरेलू और विदेश नीति इस्लामी एकता पर बल देना है। विश्व के मुसलमानों के अधिकारी की वकालत इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक आधारभूति नीति है जिस पर इस देश के संविधान में बल दिया गया है।
 
 
 
 
 
स्वर्गीय इमाम खुमैनी के उत्तराधिकारी, इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के काल में भी इस्लामी एकता की स्ट्रैटेजी जारी है। वरिष्ठ नेता ने ईरान के किरमानशाह नगर  में शीया और सुन्नी धर्मगुरूओं के मध्य भाषण देते हुए कहा” एकता का यह तात्पर्य नहीं है कि समस्त इस्लामी धर्म अपने विश्वासों को छोड़ दें और एक दूसरे धर्म को स्वीकार कर लें क्योंकि इस प्रकार का कार्य न तो संभव था और न है बल्कि एकता से तात्पर्य यह है कि हर इस्लामी धर्म अपने निश्चित विश्वासों को माने और उस पर अमल करे परंतु दूसरे धर्मों के मुक़ाबले में वह बड़प्पन से काम ले और किसी प्रकार का पक्षपाती बयान न दे क्योंकि भेदभाव विवाद का कारण बनता है। पवित्र कुरआन मुसलमानों को विवाद से मना करता है और कहता है कि अगर विवाद करोगे तो तुम्हारी हवा उखड़ जायेगी और तुम कमज़ोर हो जाओगे और धैर्य से काम लो निःसंदेह ईश्वर धैर्य करने वालों के साथ है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता समय की ज़रूरत और पश्चिमी सरकारों उनमें सर्वोपरि अमेरिका की नीति को समझते हुए मुसलमानों के मध्य वार्ता और एकता को आवश्यक मानते हैं क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों का प्रयास इस्लामी धर्मों और मुसलमानों के मध्य फूट डालना तथा इस्लाम की छवि को बिगाड़ कर पेश करना है। वर्चस्ववादी शक्तियों के षडयंत्रों से मुकाबले का बेहतरीन मार्ग मुसलमानों के मध्य वार्ता और एकता है।
 
 
 
 
 
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की 37वीं वर्षगांठ ऐसी स्थिति में मनाई जा रही है जब इस्लाम के शत्रु नयी शैलियों से इस्लामी देशों में संकट उत्पन्न करने की चेष्टा में हैं। तकफीरी आतंकवादी गुट इस समय इस्लामी जगत के लिए मुसीबत बन गये हैं। ये आतंकवादी सऊदी अरब और पश्चिमी सरकारों की संयुक्त नीतियों की पैदावार हैं। यह ऐसी स्थिति में है जब आतंकवादी गुटों का इस्लाम की शिक्षाओं से कोई संबंध नहीं है और वे इस्लामी संस्कृति से अनभिज्ञ हैं और इस्लामी इतिहास में न केवल इसका कोई चिन्ह दिखाई नहीं पड़ता बल्कि इस्लामी संस्कृति ने इससे दूरी की है और इससे उसने मुक़ाबला किया है। पैग़म्बरे इस्लाम के काल में यह समस्या ही नहीं थी और ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने किसी भी व्यक्ति या गुट को काफिर नहीं कहा है। इस्लामी धर्मों की आम शिक्षाओं में धार्मिक विवाद और मुसलमानों को काफिर कहने से दूर रहने के लिए कहा गया है यही नहीं बल्कि मुसलमानों का एकता के लिए आह्वान किया गया है। इसी प्रकार इस्लामी शिक्षाओं में मुसलमानों के मध्य मतभेदों के समाधान पर बल दिया गया है। इस्लामी धर्मों के अनुयाइयों को इस बात का अधिकार है कि वे स्वतंत्र रूप से अपनी धार्मिक शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार करें। इस्लाम धर्म, इस्लामी जगत के हित और इस्लामी बंधुत्व किसी को भी दूसरे धर्मों के विरुद्ध नकारात्मक प्रचार करने की अनुमति नहीं देता है। इस प्रकार के व्यवहार की रोकथाम इस्लामी जगत के विद्वानों और धर्मगुरूओं की ज़िम्मेदारी है और वह एकता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य है। आशा है कि 22 बहमन बराबर 11 फरवरी और ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की 37वीं वर्षगांठ के अवसर पर समस्त इस्लामी देश व समाज इस्लामी क्रांति की आकांक्षाओं का अनुसरण करके और ईश्वरीय आदेशों एवं पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण का अनुपालन करके पहले से अधिक इस्लामी एकता को व्यवहारिक बनाने की भूमि प्रशस्त करेंगे।


source : irib
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