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Friday 29th of March 2024
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हज अमीरूल-मोमिनीन (अ.) की निगाह में

इलाही मैसेज वही के उतरने की ज़मीन मक्का पर आजकल इलाही प्यार, मुहब्बत में डूबे हुए लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हर साल इन दिनों विभिन्न मुल्कों और क़ौमों के मुसलमान इस आध्यात्मिक जगह का सफ़र करते हैं ताकि उनके विचार व ईमान पाक व साफ़ हो जाएं। हज का अर्थ मक़सद की ओर क़दम बढ़ाना है। ऐसा क़दम जो मन से सभी दुनियावी दिल-लगियों, भौतिक इच्छाओं को मन से निकाल कर अल्लाह तआला की ओर बढ़ाया जाता है।
 हज अमीरूल-मोमिनीन (अ.) की निगाह में

 इलाही मैसेज वही के उतरने की ज़मीन मक्का पर आजकल इलाही प्यार, मुहब्बत में डूबे हुए लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हर साल इन दिनों विभिन्न मुल्कों और क़ौमों के मुसलमान इस आध्यात्मिक जगह का सफ़र करते हैं ताकि उनके विचार व ईमान पाक व साफ़ हो जाएं। हज का अर्थ मक़सद की ओर क़दम बढ़ाना है। ऐसा क़दम जो मन से सभी दुनियावी दिल-लगियों, भौतिक इच्छाओं को मन से निकाल कर अल्लाह तआला की ओर बढ़ाया जाता है।
विलायत पोर्टलः इलाही मैसेज वही के उतरने की ज़मीन मक्का पर आजकल इलाही प्यार, मुहब्बत में डूबे हुए लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हर साल इन दिनों विभिन्न मुल्कों और क़ौमों के मुसलमान इस आध्यात्मिक जगह का सफ़र करते हैं ताकि उनके विचार व ईमान पाक व साफ़ हो जाएं। हज का अर्थ मक़सद की ओर क़दम बढ़ाना है। ऐसा क़दम जो मन से सभी दुनियावी दिल-लगियों, भौतिक इच्छाओं को मन से निकाल कर अल्लाह तआला की ओर बढ़ाया जाता है। इसलिए अल्लाह तआला की दावत पर जिस इंसान के लिए भी हज में मौजूद होना संभव है, वह अल्लाह तआला के शांति के घर की ओर जाता है ताकि ख़ास जगह पर ख़ास संस्कारों और रस्मों द्वारा अपने मन व रूह को पाक करे और इस्लामी इतिहास के एक ज़माने को नज़र में रखे। वास्तव में हज पर जाना, अल्लाह तआला के सामने आत्मसमर्पण (सरेंडर होना) व उसके आज्ञापालन की ओर क़दम बढ़ाना है जिससे एक आम मुसलमान भविष्य के बारे में सोचने वाला, जल्दी ख़त्म होने वाले आनंदों पर ध्यान न देने वाला, आत्मसंयमी (ज़ाहिद) और कुल मिलाकर एक ईमान वाला इंसान बन जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों पर आधारित नहजुल बलाग़ा नामी किताब में हज का मौज़ू भी उन क़ीमती इल्मों में शामिल है जिसको हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बड़े ही ख़ूबसूरत ढंग से बयान किया है। हज का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव इंसान की रूह व मन में तब्दीली है। जो लोग हज सच्चे मन से करते हैं वह पूरी आयु इसके आत्मिक प्रभाव का अपने अंदर महसूस करते हैं। शायद यही कारण है कि हज इंसान की पूरी आयु में केवल एक बार वाजिब है। हज के आश्चर्यचकित प्रभाव के मद्देनज़र हाजी बड़े ख़ुशी व जोश के साथ हज के सफ़र पर जाते हैं। हाजी अपने हर क़दम पर अल्लाह तआला से ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब होता जाता है और अपने सच्चे पालनहार की मौजूदगी को हर जगह पर महसूस करता है। इसलिए हज को एक नये जन्म से उपमा दी गयी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में एक ख़ुतबे में उत्साह भरे हाजियों की भीड़ का इस प्रकार चित्रण (अक्कासी) करते हैः अज़ीम अल्लाह तआला ने अपने घर का हज तुम पर वाजिब किया, वह घर जिसे लोगों के लिए क़िबला बनाया। हाजी प्यासों की तरह जो पानी तक पहुंचते हैं, अलग अलग ग्रुपों में वहां पहुंचते हैं और ख़ुशी व जोश से भरे कबूतरों के समान उसकी ओर बढ़ते हैं। हर ग़ल्ती से पाक अल्लाह तआला ने हज को अपनी महानता के सामने लोगों की दीनता तथा अपने वेक़ार व प्रतिष्ठा के सामने उनके आत्मसमर्पण को प्रकट करने के लिए वाजिब किया है। लगभग दुनिया में प्रचलित आधिकारिक, सामाजिक व सियासी वर्गीकरण (दर्जाबंदी) का मापदंड किसी ख़ास हिस्से की पब्लिक, जाति या संयुक्त भौतिक हित होते हैं। जबकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शब्दों में इस्लाम में इनमें से कोई भी मापदंड क़ुबूल नहीं है बल्कि इंसानों के वर्गीकरण का मापदंड कायनात व ख़िल्क़त (सृष्टि) के रचयिता पर यक़ीन व इंसानी मूल्य व अधिकार (अक़दार व हुक़ूक़) हैं। यह क़ीमती विचार किसी भी उपासना की तुलना में सबसे ज़्यादा हज में अपने अमली रंग में दिखता है कि जहां भौगोलिक सीमाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता और सफ़ेद, काले, पीले, और लाल रंग के लोग चाहे पढ़े लिखे हों या अनपढ़, ताक़तवर हों या कमज़ोर सबके सब एक सादे लिबास में मतभेदों से दूर हाजियों के रूप में अल्लाह तआला के मेहमान होते हैं। यह दुनिया के मुसलमानों की आस्था की एकता का सबसे आकर्षक व ख़ूबसूरत अध्याय है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इन एकमत व एकजुट इंसानों तवाफ़ (चक्कर) को इलाही अर्श के निवासियों से उपमा देते हुए कहते हैः वह उन फ़रिश्तों जैसे हो गए जो अल्लाह तआला के अर्श के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। अर्श सातवें आकाश पर इलाही गुणों के प्रतीक उस जगह को कहते हैं जिसके फ़रिश्ते चक्कर काटते रहते हैं। हज़रत अली की नज़र में जो हाजी सही ढंग से हज करने में कामयाब हो जाते हैं वह वास्तव में अल्लाह के नबियों के क़दमों की जगह पर क़दम रखते हैं और अल्लाह तआला की बंदगी व उसके प्रति आत्मसमर्पण की नज़र से अल्लाह के पैग़म्बरों की तरह पाबंदी करने वाले हो जाते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हाजियों की ओर इशारा करते हुए कहते हैः वह पैग़म्बरों के स्थानों पर ठहरे हुए हैं। इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर वह पहले इंसान जिन्होंने काबे की बुनियाद (आधारशिला) रखी वह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम थे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जब जन्नत से निकाला गया तो उन्होंने अपनी ग़ल्तियों की अल्लाह तआला से माफ़ी मांगने के लिए एक फ़रिश्ते के दिशा निर्देश पर हज के संस्कार अंजाम दिए। इसके बाद अल्लाह के नबी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उस समय हज किया जब उनकी नाव भयानक तूफ़ान से बच गयी। काबा, हज़रत इब्राहीम द्वारा दोबारा बनाए जाने से पहले भी लोगों की इबादत की जगह थी लेकिन समय बीतने के साथ इसकी दीवारें ख़राब होकर मिट रही थीं। इसलिए अल्लाह तआला के हुक्म पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्साम ने अपने बेटे हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की मदद से काबे के कम्भों को फिर से उठाया और फिर दोनों हस्तियों ने हज किये। इस्लामी शिक्षाओं में हज़रत मूसा, हज़रत यूनुस, हज़रत ईसा, हज़रत दाउद और हज़रत सुलैमान जैसे नबियों के भी हज करने का ज़िक्र (उल्लेख) मिलता है। वास्तव में सभी अल्लाह के नबी, हज की दुनियावी ज़िम्मेदारी से अवगत रहे और इस संस्कार की रक्षा पर नियुक्त रहे हैं। हज अपने सख़्त और कठिन संस्कारों और रस्मों के मद्देनज़र मन की साफ़ दिली व बंदगी को परखने के लिए बहुत बड़ा इम्तेहान है। इस सम्बंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः क्या इस सच्चाई को नहीं देखते कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम (अ.) के समय के लोगों से लेकर इस दुनिया के आख़री इंसान तक सारे इंसानों का इम्तेहान लिया, फिर अपने घर को पथरीली, सबसे तंग घाटियों व सबसे कम हरे भरे हिस्से पर बेडौल पहाड़ों, गर्म रेतों व कम पानी वाले चश्मों के बीच ऐसी बस्ती में स्थापित किया जहां ऊंट, गाय और भेड़ बकरी के अलावा किसी और तरह का पशु-पालन संभव नहीं है। यदि अल्लाह तआला चाहता तो अपने बड़ी इबादतगाहों और काबे को बाग़ों व नदियों के बीच तथा घने व फलदार पेड़ों से मालामाल मैदानी एरिये में एक दूसरे से क़रीब आबादी व एक दूसरे से जुड़े घरों के पास, या सुनहरे रंग के गेहूं के खेतों के पास या हरे भरे बागों में, पानी से मालामाल हिस्सों और आवाजाही वाले रास्ते पर स्थापित करता लेकिन इस स्थिति में इम्तेहान की आसानी के मद्देनज़र हाजियों का इनाम भी कम हो जाता और अगर काबे के पत्थरों के स्तंभ कि जिस पर अल्लाह तआला का घर टिका हुआ है और काबे की दीवारों के पत्थर सबके सब पन्ने व चमकते हुए लाल हीरे के होते तो मनों से संदेह कम हो जाता और इबलीस के कोशिशों का दायरा सीमित हो जाता और लोगों के मन से चिंताएं व असमंजस ख़त्म हो जाता लेकिन अल्लाह तआला अपने बंदों का हर प्रकार से इम्तेहान लेता है ताकि इस प्रकार उनके मन से अहंकार व अनापसंदी को निकाल दे और उनकी आत्माओं की गहराई में विनम्रता को रचा बसा दे ताकि यह सब उसके लिए अल्लाह तआला की रहमत के खुलने व आसानी से उसके माफ़ किये जाने का कारण बने। अल्लाह तआला सूरए हज की आयत नंबर 27 में हज को ऐसी इबादत कहता है जिसके अनेक फ़ायदे व विभूतियां हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इसके कुछ फ़ायदों को बयान किया है। हज़रत अली (अ.) की नज़र में समाजी व सियासी नज़र से हज का व्यापक प्रभाव मुसलमानों के सम्मान, दीन के सुतूनों (स्तंभों) के मज़बूत होने और दुश्मन के मुक़ाबले में उनकी ताक़त व धूम-धाम और शान व शौकत का कारण बनेगा। अल्लाह तआला के घर के पास हर साल होने वाली यह इबादत मुसलमानों के लिए एक अवसर है कि वह अपनी क्षमताओं व ताक़त को संगठित व भाईचारे को मज़बूत करें तथा दुश्मनों के साज़िशों को नाकारा करने के लिए स्कीम व प्रोग्राम बनाएं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः अल्लाह तआला ने दीन को ताक़तवर करने के लिए हज को वाजिब किया। इस्लामी शिक्षाओं में इस प्वाइंट की ओर इशारा किया गया है कि हज मुसलमानों की आर्थिक ताक़त को बढ़ा कर उन्हें वित्तीय कठिनाइयों से निकाल सकता है। आज के मुसलमान की सबसे बड़ी समस्या विदेशों पर उनकी आर्थिक निर्भरता (डिपेंडिंग) है। अगर हज के संस्कारों और रस्मों के साथ साथ इस्लामी जगत के अर्थशास्त्रियोंम (Economist) के सेमिनार व सम्मेलन आयोजित हों और स्पेशलिस्ट मुसलमानों की ग़रीबी व विदेशों पर निर्भरता के चंगुल से बाहर निकलने के बारे में सोचें व उचित स्कीम बनाएं तो इस्लामी दुनिया अपने अपार संसाधनों से इस्लामी दुनिया की ग़रीबी व अभाव को ख़त्म कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज को ग़रीबी व समाजी गुनाहों के ख़ात्मे का कारण बताते हुए कहते हैः हज व उमरे से ग़रीबी दूर होती है और गुनाह धुल जाते हैं। इसलिए मुसलमान हज का सम्मान करते हैं और इलाही मैसेज (वही) के उतरने से मख़सूस इस हिस्से पर जगह जगह पर अल्लाह तआला की याद को ताज़ा करते हैं। इस नज़र से हज इंसान के लिए एक ख़ूबसूरत आध्यात्मिक सैर है जिससे अल्लाह तआला की महानता का ज़बरदस्त प्रदर्शन होता है। यही कारण है कि हज़रत अली ने हज की अहमियत के बारे में कहाः अल्लाह तआला ने काबे को इस्लाम की निशानी बनाया है। जो लोग सही इस्लाम को समझने में ग़लती करते या गुमराह हो जाते हैं उन्हें चाहिए कि ग़ौर व फ़िक्र (मनन चिंतन) द्वारा वास्तविक इस्लाम को हज में देखें।


source : wilayat.in
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