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ईश्वरीय वाणी-५८

क़ुरआने मजीद सूरए ज़ोमर की आयत क्रमांक 64 से 66 में अनेकेश्वरवाद और एकेश्वरवाद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है। कह दीजिए कि हे अज्ञानियो! क्या तुम मुझसे यह कहते हो कि मैं ईश्वर के अतिरिक्त किसी और की उपासना करूँ? एकेश्वरवाद एक अटल वास्तविकता है और कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति निर्जीव मूर्तियों के समक्ष नतमस्तक नहीं हो सकता। अतः इस बात के दृष्टिगत कि अनेकेश्वरवादी कभी कभी पैग़म्बरे इस्लाम से कहते थे कि वे उनके देवताओं का सम्मान व उनकी उपासना करें, वे स्पष्ट रूप से कहा करते थे
ईश्वरीय वाणी-५८

क़ुरआने मजीद सूरए ज़ोमर की आयत क्रमांक 64 से 66 में अनेकेश्वरवाद और एकेश्वरवाद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है। कह दीजिए कि हे अज्ञानियो! क्या तुम मुझसे यह कहते हो कि मैं ईश्वर के अतिरिक्त किसी और की उपासना करूँ? एकेश्वरवाद एक अटल वास्तविकता है और कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति निर्जीव मूर्तियों के समक्ष नतमस्तक नहीं हो सकता। अतः इस बात के दृष्टिगत कि अनेकेश्वरवादी कभी कभी पैग़म्बरे इस्लाम से कहते थे कि वे उनके देवताओं का सम्मान व उनकी उपासना करें, वे स्पष्ट रूप से कहा करते थे कि एकेश्वरवाद और अनेकश्वरवाद का इन्कार ऐसी बात नहीं है जिस पर समझौता किया जा सके। क्या यह अज्ञानता नहीं है कि मनुष्य सृष्टि में ईश्वर की इतनी अधिक निशानियों को देखने के बाद, जो उसके ज्ञान व तत्वदर्शिता की सूचक हैं, ऐसी चीज़ों की उपासना करे जो कोई लाभ नहीं पहुंचा सकतीं। इस आधार पर संसार से अनेकेश्वरवाद की ग़लत धारणाओं को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
 
 
 
 
 
सूरए ज़ुमर की 66वीं आयत सभी को ईश्वर की उपासना का निमंत्रण देते हुए कहती है केवल ईश्वर की उपासना करो और कृतज्ञों में से हो जाओ। अर्थात सभी का पूज्य केवल और केवल अनन्य ईश्वर होना चाहिए। इसके बाद आयत कृतज्ञता का आदेश देती है किंतु ईश्वर की ओर से प्रदान की जाने वाली असंख्य अनुकंपाओं पर कृतज्ञता, ईश्वर की पहचान की सीढ़ी है। 67वीं आयत में इस बात की ओर संकेत किया गया है कि प्रलय के दिन पूरी धरती ईश्वर के नियंत्रण में होगी और आकाशों पर भी उसी का प्रभुत्व होगा। इस प्रकार की बातें परलोक और सृष्टि पर ईश्वर के एकछत्र प्रभुत्व की सूचक हैं ताकि सभी को यह पता चल जाए कि प्रलय में भी सभी की समस्याओं के समाधान और उनकी मुक्ति ईश्वर के ही हाथ में है। अब प्रश्न यह है कि क्या इस संसार में धरती और आकाश ईश्वर के नियंत्रण में नहीं हैं? क्यों प्रलय की बात की जा रही है? इसका उत्तर यह है कि उस दिन ईश्वर की शक्ति हर समय से अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देगी और सभी के सामने खुल कर आएगी और सभी इस बात को स्पष्ट रूप से समझ जाएंगे कि सब कुछ उसी के हाथ में है।
 
 
 
 
 
एक अन्य विषय जिसके बारे में सूरए ज़ुमर में चर्चा की गई है, प्रलय है। इस सूरे में प्रलय आने और उस समय सभी लोगों के जीवित होने को एक अटल बात बताते हुए इसे ईश्वर का निश्चित वचन बताया गया है। मआद या प्रलय और लोगों का उस समय पुनः जीवित होना, इस्लाम की मूल आस्थाओं में से एक है। क़ुरआने मजीद ने विभिन्न आयतों में प्रलय के विषय पर बल दिया गया है और उस दिन की निशानियों का उल्लेख करते हुए लोगों को सचेत किया गया है कि वे अपने कर्मों का ध्यान रखें और ईमान, ईश्वरीय भय और सदकर्म को अपनाएं। अलबत्ता इस संसार की समाप्ति के समय घटने वाली सभी घटनाएं हमारे लिए स्पष्ट नहीं हैं और क़ुरआने मजीद और हदीसों में जो कुछ बयान किया गया है वह इन घटनाओं का केवल एक भाग है। प्रत्येक दशा में इस बात पर विश्वास रखना चाहिए कि इस संसार की समाप्ति पर महत्वपूर्ण घटनाएं होंगी। इस संसार की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और एक नया संसार स्थापित होगा और तभी से प्रलय का समय शुरू होगा।
 
 
 
 
 
क़ुरआने मजीद ने इस सूरे सहित विभिन्न स्थानों पर प्रलय की कुछ निशानियों की ओर संकेत किया है। सूरए ज़ुमर की 68वीं आयत में कहा गया है। और सूर में फूँका जाएगा तो जो कोई आकाशों और जो कोई धरती में होगा वह मर जाएगा सिवाय उसके जिसे ईश्वर चाहेगा (कि वह जीवित रहे)। फिर उस सूर में पुनः फूँका जाएगा तो सहसा ही वे (जीवित होकर) खड़े हो जाएंगे और (हर ओर) देखने लगेंगे। सूर में फूंका जाना प्रलय आने की निशानियों में से एक है। सूर, शंख जैसी एक वस्तु को कहते हैं जिसे प्राचीन काल में कारवां या सेना को आगे बढ़ाने या रोकने के लिए फूंक कर बजाया जाता था। क़ुरआने मजीद, सूर में फूंके जाने को प्रलय में अचानक घटने वाली घटनाओं के लिए सांकेतिक रूप से प्रयोग करता है। प्रलय आने से पहले सभी को चिंघाड़ जैसी एक ख़तरनाक आवाज़ सुनाई देगी और उसे सुनकर सभी जीवित प्राणी मर जाएंगे, सांसारिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी, धरती और आकाश उलट-पलट जाएंगे और सूर्य, चंद्रमा और सितारे बुझ कर ठंड हो जाएंगे। इस आयत और दूसरी आयतों से समझा जा सकता है कि इस संसार की समाप्ति और प्रलय के आरंभ पर दो महत्वपूर्ण और आकस्मिक घटनाएं होंगी। पहली घटना में एक भयंकर चिंघाड़ से सभी जीव मर जाएंगे। दूसरे शब्दों में यह मौत की चिंघाड़ होगी। दूसरी घटना जो थोड़े अंतराल से होगी, वह भी एक भयंकर आवाज़ ही होगी जिससे सभी मरे हुए लोग जीवित हो कर खड़े हो जाएंगे और यह प्रलय का आरंभ होगा।
 
 
 
 
 
पहली बार जब सूर में फूंका जाएगा तो वह आकस्मिक होगा और उस समय बड़ी संख्या में लोग काम-काज, लेन-देन, क्रय-विक्रय या फिर लड़ाई-झगड़े में व्यस्त होंगे और सूर की आवाज़ सुनते ही वे सब मर जाएंगे। दूसरी बार भी सूर की चिंघाड़ आकस्मिक होगी। 69वीं आयत में कहा गया है और (उस दिन) धरती अपने पालनहार के प्रकाश से जगमगा उठेगी, और (कर्मपत्रों की) किताब (सामने) रखी जाएगी और पैग़म्बरों व गवाहों को लाया जाएगा और लोगों के बीच सत्य के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा तथा उन पर कोई अत्याचार नहीं होगा। प्रख्यात मुस्लिम विद्वान अल्लामा तबातबाई क़ुरआने मजीद की अपनी विख्यात तफ़सीर अर्थात व्याख्या अलमीज़ान में लिखते हैं। अपने पालनहार के प्रकाश से धरती के जगमगाने का तात्पर्य, पर्दों का हट जाना और वस्तुओं की वास्तविकता एवं लोगों के अच्छे-बुरे कर्मों, ईश्वर के आज्ञा पालन और उद्दंडता तथा सत्य व असत्य का प्रकट हो जाना है।
 
 
 
 
 
इसके बाद सभी के कर्मपत्र सामने लाए जाएंगे और उन्हें देखा जाएगा। उन कर्मपत्रों में लोगों के छोटे से छोटे कर्म भी लिखे हुए होंगे। फिर पैग़म्बरों और गवाहों को लाया जाएगा। पैग़म्बरों को इस लिए लाया जाएगा कि वे अपराधियों के समक्ष, पैग़म्बरी के अपने दायित्वों को पूरा करने की बात कर सकें और गवाहों को इस लिए लाया जाएगा कि वे उस सच्चे न्यायालय में गवाही दे सकें। इन आयतों में जिस बिंदु पर बल दिया गया है वह यह है कि उस दिन लोगों के बीच सत्य के साथ फ़ैसला किया जाएगा और किसी पर भी अत्याचार नहीं होगा। स्पष्ट है कि जिस न्यायालय का न्यायाधीश ईश्वर हो और उसमें पैग़म्बर तथा गवाह मौजूद हों, पूरी तरह सत्य के साथ फ़ैसला किया जाएगा और जिसने जो कुछ भी किया है उसके अनुसार उसे सही सही प्रतिफल दे दिया जाएगा।
 
 
 
 
 
सूरए ज़ुमर की 71वीं और बाद की आयतों में प्रलय में लोगों के दो गुटों के अंजाम का चित्रण किया गया है। आरंभ में नरकवासियों के अंजाम की ओर संकेत करते हुए कहा गया है और जिन लोगों ने कुफ़्र अपनाया, वे गुट-गुट करके नरक की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेगे तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके प्रहरी उनसे कहेंगे, क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से पैग़म्बर नहीं आए थे जो तुम्हें तुम्हारे पालनहार की आयतें सुनाएं और तुम्हें इस दिन की मुलाक़ात से डराएं? वे कहेंगे, क्यों नहीं (वे तो आए थे मगर हमने ही उनकी बात न सुनी)। किन्तु (इसका कोई लाभ नहीं होगा और) काफ़िरों के लिए दंड का आदेश निश्चित हो चुका है। इसके बाद उनसे कहा जाएगा, नरक के द्वारों से प्रवेश करो, उसमें सदैव रहने के लिए। और अहंकारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है।
 
 
 
 
 
दंड के फ़रिश्ते नरकवासियों को नरक के दरवाज़ों तक लेकर जाएंगे। जब वे वहां पहुंचेंगे तो नरक के द्वार खुल जाएंगे। इससे पता चलता है कि उनके वहां पहुंचने से पहले तक नरक के दरवाज़े बंद होंगे। ठीक जेल के दरवाज़ों की भांति कि जब क़ैदी वहां पहुंचता है तो अचानक ही दरवाज़े खुल जाते हैं। नरकवासियों को सबसे पहले नरक के प्रहरियों की लताड़ का सामना करना पड़ेगा जो उनसे कहेंगे कि क्या तुम्हारे बीच तुम्हीं में से पैग़म्बर नहीं आए थे जो तुम्हें तुम्हारे पालनहार की आयतें सुनाते और तुम्हें इस दिन की भेंट से डराते? अगर ऐसा था तो फिर तुम्हारा यह हाल क्यों हुआ? नरकवासी इस बात को स्वीकार करेंगे कि उन्होंने पैग़म्बरों को झुठलाया और ईश्वरीय आयतों का इन्कार किया अतः उनका अंजाम इसके अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता।
 
 
 
 
 
अगली आयत में ईश्वर से डरने वालों के स्वर्ग में प्रवेश के दृश्य का चित्रण करती है। सबसे पहले कहा गया है कि जिन लोगों ने अपने जीवन में ईश्वर का आज्ञा पालन किया और उससे डरते रहे वे गुट-गुट करके स्वर्ग में ले जाए जाएंगे। उनके स्वर्ग में पहुंचने से पहले ही उसके द्वार खुले होंगे। वहां के प्रहरी उनसे कहेंगे। सलाम हो तुम पर, तुम पवित्र हो गए, (स्वर्ग में तुम्हारा स्वागत है) स्वर्ग में प्रविष्ट हो जाओ और इसमें सदैव रहो। रोचक बात यह कि आयत स्वर्गवासियों के बारे में कहती है कि उनके लिए स्वर्ग के दरवाज़े पहले से खुले होंगे और यह बात उनके विशेष सम्मान की सूचक है। ठीक उस मेज़बान के प्रेम के समान जो अतिथि के आने से पहले अपने घर का दरवाज़ा खोल देता है।
 
 
 
 
 
ध्यान योग्य बिंदु यह है कि नरकवासियों और स्वर्गवासियों दोनों के बारे में उसमें सदैव रहने की बात कही गई है ताकि पहला गुट यह जान ले कि कि उसके पास मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है और दूसरा गुट भी ईश्वरीय अनुकंपाओं की समाप्ति के बारे में तनिक भी चिंतित न हो। स्वर्ग में प्रवेश के समय सदकर्मी ऐसे वाक्य कहेंगे जो ईश्वर से उनकी अपार प्रसन्नता के सूचक होंगे। वे कहेंगे। सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए विशेष है जिसने हमसे जो वादा किया था उसे सच कर दिखाया और हमें स्वर्ग की इस भूमि का उत्तराधिकारी बनाया कि हम स्वर्ग में जहाँ चाहें वहाँ रहें। तो क्या ही अच्छा प्रतिफल है (अच्छे) कर्म करने वालों का। सूरए ज़ुमर की अंतिम आयत में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को संबोधित करते हुए कहा गया है। उस दिन आप फ़रिश्तों को देखेंगे जो अर्श को अपने घेरे में लिए होंगे और अपने पालनहार का गुणगान कर रहे होंगे। उनके बीच सत्य के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और कहा जाएगा कि सारी प्रशंसा उस ईश्वर से विशेष है जो ब्रह्मांड का पालनहार है।


source : irib
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