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सफ़र के महीने की बीस तारीख़

अरबईन के बारे में जो हमारी धार्मिक स्रोतों में आया है वह हज़रत सैय्यदुश शोहदा अलैहिस्सलाम की शहादत का चेहलुम है, जो इस्लामी कैलेन्डर के दूसरे महीने यानी सफ़र की बीसवीं तारीख़ को होता है। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने एक हदीस में मोमिन की पाँच निशानियों को बयान फ़रमाया हैः 1. 51 रकअत नमाज़ पढ़ना।
सफ़र के महीने की बीस तारीख़



अरबईन के बारे में जो हमारी धार्मिक स्रोतों में आया है वह हज़रत सैय्यदुश शोहदा अलैहिस्सलाम की शहादत का चेहलुम है, जो इस्लामी कैलेन्डर के दूसरे महीने यानी सफ़र की बीसवीं तारीख़ को होता है।


इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने एक हदीस में मोमिन की पाँच निशानियों को बयान फ़रमाया हैः


1. 51 रकअत नमाज़ पढ़ना।


2. ज़ेयारते अरबईन (चेलहुम के दिन की ज़ियारत)


3. दाहिने हाथ में अंगूठी का पहनना।


4. नमाज़ में माथे को मिट्टी पर रखना।


5.नमाज़ में बिस्मिल्लाह को तेज़ आवाज़ में पढ़ना। (1)


इसके अतिरिक्त इतिहास लिखने वालों ने लिखा है कि हज़रत जाबिर बिन अबदुल्ला अंसारी, अतिया ऊफ़ी के साथ आशूरा के दिन इमाम हुसैन के पहले चेहलुम पर इमाम की ज़ियारत के लिए आए। (2)


सैय्यद इबने ताऊस बयान करते हैं किः जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अहलेबैत (अ) क़ैद से छुटने के बाद शाम से वापस पलटे तो वह इराक़ पहुँचे, उन्होंने अपने रास्ता दिखाने वाले से कहाः हमें कर्बला के रास्ते से ले चलो, जब वह कर्बला में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की क़ल्तगाह में पहुँचे, तो जाबिर बिन अबदुल्लाह अंसारी को बनी हाशिम को कुछ लोगों के साथ और आले रसूल (स) के एक मर्द को देखा हो इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए आए थे, वह सब एक ही समय पर पहुँचे और सब एक दूसरे को देख कर रोए और दुख प्रकट किया और सरों एवं चेहरे को पीटना शुरू कर दिया और एक ऐसी मजलिस की जो दिल जला देने वाली और ग़म से भरी हुई थी


उस क्षेत्र की औरतें भी उनके साथ मिल गई और कई दिनों तक इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी चलती रही। (3)
(1) मजलिसी, बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 329, बैरूत, अलामते मोमिन ख़मस......
(2) तबरी, मोहम्मद बिन अली, बशारतुल मुस्तफ़ा, पेज 126, क़ुम मोअस्सतुल नशरुल इस्लामी, पहला प्रकाशन 1420 हि0
(3) बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 146


source : alhassanain
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