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ईश्वरीय वाणी-५४

एकेश्वरवाद और प्रलय उन विषयों में से है जिसका वर्णन पवित्र क़ुरआन के सूरे यासिन में आया है। एकेश्वरवाद के विषय का उल्लेख बहुत ही सुन्दर ढंग से इस सूरे की ३३ से ३६ तक की आयतों में किया गया है। महान ईश्वर कहता है” मुर्दा ज़मीन उनके लिए स्पष्ट निशानी है कि हमने उसे ज़िन्दा किया और हमने उससे दानों को बाहर निकाला और हम उससे उन्हें खिलाते हैं और हमने उससे अंगूर और ख़जूर के बाग़ निकाले और उसमें सोते जारी किये ताकि उससे पैदा होने वाले फलों को खायें जबकि ये सब उनके हाथ का बनाया हुआ नहीं है तो क्या वे आभा
ईश्वरीय वाणी-५४

एकेश्वरवाद और प्रलय उन विषयों में से है जिसका वर्णन पवित्र क़ुरआन के सूरे यासिन में आया है। एकेश्वरवाद के विषय का उल्लेख बहुत ही सुन्दर ढंग से इस सूरे की ३३ से ३६ तक की आयतों में किया गया है। महान ईश्वर कहता है” मुर्दा ज़मीन उनके लिए स्पष्ट निशानी है कि हमने उसे ज़िन्दा किया और हमने उससे दानों को बाहर निकाला और हम उससे उन्हें खिलाते हैं और हमने उससे अंगूर और ख़जूर के बाग़ निकाले और उसमें सोते जारी किये ताकि उससे पैदा होने वाले फलों को खायें जबकि ये सब उनके हाथ का बनाया हुआ नहीं है तो क्या वे आभार व्यक्त नहीं करेंगे? पवित्र है वह ईश्वर जिसने समस्त प्राणियों का जोड़ा पैदा किया धरती से जो चीज़ें उगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति में से और उन चीज़ों में से जिन्हें वे जानते भी नहीं।
 
 
 
 
 
ज़िन्दगी उन जटिल विषयों में से है जिसने विश्व के बुद्धिमान व विद्वान लोगों को हतप्रभ कर दिया है। आज दुनिया ने ज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर ली है फिर भी वह इस चीज़ का पता नहीं लगा पायी है कि इस बात का रहस्य क्या है कि बेजान चीज़ें जीवित सेल्स में परिवर्तित हो गयी हैं? अभी कोई इस बात को नहीं जानता कि वनस्पतियों के बीज व दाने किस प्रकार बनते हैं? कौन सा क़ानून है कि जब आवश्यक चीज़ें उपलब्ध हो जाती हैं तो उनके भीतर गति होने लगती और वे बढ़ने लगते हैं और इस तरीक़े से मुर्दा दाने जीवित कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाते हैं।
 
इस संसार में वनस्पतियों, जानवर और मुर्दा ज़मीन का ज़िन्दा हो जाना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस संसार के पैदा करने में भारी ज्ञान का प्रयोग किया गया है। सूरे यासिन की आयतें वसंत ऋतु और वनस्पतियों के उगने को प्रलय और मुर्दों के दोबारा जीवित होने का बेहतरीन प्रमाण बताती हैं। साथ ही इन आयतों में यह भी याद दिलाया गया है कि इंसानों के खाने का महत्वपूर्ण भाग यही वनस्पतियां हैं और इन चीज़ों में चिंतन- मनन महान ईश्वर को पहचानने का बेहतरीन तरीक़ा है।
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन फलों में से केवल अंगूर और खजूर का नाम लेता है क्योंकि ये दोनों पौष्टिक फलों के बेहतरीन उदाहरण हैं और इनमें से हर एक को परिपूर्ण खाना समझा जाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार इन दोनों फलों में इंसान के शरीर के लिए आवश्यक विटामिन पाये जाते हैं। सूरे यासिन में इसी प्रकार इन फलों के पेड़ों को पैदा करने के उद्देश्यों को बयान किया गया है। उद्देश्य यह है कि इंसान इनके फलों को खायें जो पूर्ण भोजन के रूप में इन पेड़ों पर प्रकट होते हैं और पेड़ों से तोड़ लेने के बाद उनका प्रयोग किया जा सकता है। यह महान ईश्वर की असीम कृपा का एक छोटा सा नमूना है।
 
अलबत्ता इंसान कुछ फलों से दूसरी चीज़ें भी बनाता है जिनका प्रयोग विभिन्न कार्यो में होता है। महान ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी नेअमतों के उल्लेख का उद्देश्य, इंसान के अंदर आभार व्यक्त करने की भावना को जागृत करना है। क्योंकि नेअमत का आभार महान ईश्वर की पहचान का पहला क़दम है।
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन द्वारा इस बात को बयान करना कि महान ईश्वर ने हर चीज़ का जोड़ा पैदा किया है, अपने आप में वैज्ञानिक चमत्कार है। आज विज्ञान से यह सिद्ध हो गया है कि वनस्पतियों में जोड़े का विषय एक आम बात है, यानी महान ईश्वर ने वनस्पतियों का भी जोड़ा पैदा किया है।
 
आसमान और उसमें मौजूद वस्तुएं भी ईश्वर की महानता की सूचक हैं। पवित्र कुरआन की आयतें अपनी विशेष शैली में प्रकृति की कुछ निशानियों की ओर संकेत करती हैं। ईश्वर की महानता की एक निशानी रात- दिन का होना है और सूरज, चांद और तारों का अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा करना है।
 
 
 
 
 
हर स्थान को सूर्य ने प्रकाशमय बना रखा है परंतु शाम को हम देखते हैं कि अचानक चारों ओर रात का अंधेरा छा जाता है। जब चारों ओर अंधेरा छा जाता है तो इंसान प्रकाश और उसके लाभों को समझने लगता है। इसी तरह वह अंधकार और प्रकाश को पैदा करने वाले के बारे में भी सोचने लगता है। इसी तरह हर बुद्धिमान इंसान यह सोचने पर बाध्य हो जाता है कि सूरज ज़मीन से सैकड़ों गुना बड़ा है और वह अपनी नियत कक्षा में घूम रहा है और कौन सी शक्ति है जो इतने बड़े सूरज को घूमा रही है। इसी तरह ब्रह्मांड में मौजूद हर वस्तु अपनी नियत कक्षा में घूम रही है।
 
बहर हाल यह बात स्पष्ट है कि ब्रह्मांड में जो कुछ भी है वह घूम रहा है तो प्रश्न यह उठता है कि कौन सी चीज़ है जो इन सब चीज़ों को घुमा रही है? इसका उत्तर स्पष्ट है महान ईश्वर के अतिरिक्त कोई और नहीं है जो इन सब चीज़ों को घूमा सके। इन सब चीज़ों का घूमना इस बात स्पष्ट प्रमाण है कि जो इन सब चीज़ों को घुमा रहा है उसके अंदर घुमाने की शक्ति है तभी तो वह घुमा रहा है। यही नहीं हर चीज़ अपनी नियत कक्षा के साथ- साथ नियत समय के साथ घूम रही है इस प्रकार से कि खलोगशास्त्री सैकड़ों वर्ष पहले तक का हिसाब- किताब कर सकते हैं और बता सकते हैं कि किस साल सूर्य या चांद ग्रहण होगा।
 
 
 
 
 
हर महीने के आरंभ में चांद के दोनों सिर उपर की ओर होते हैं और धीरे- धीरे चांद का आकार मोटा होने लगता है यहां तक चौदहवीं तारीख को चांद पूरा हो जाता है। उसके बाद चांद धीरे- धीरे छोटा होने लगता है यहां तक कि महीने के अंत में वह बिल्कुल छोटा व पतला हो जाता है और उसके दोनों सिर खजूर की पत्ती की भांति नीचे की ओर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में पवित्र क़ुरआन की आयतों में जहां सूरज और चांद की परिक्रमा की बात कही गयी है वहीं यह भी कहा गया है कि वे सब नियत समय में घूम रहे हैं। महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है सूरज के लिए यह सही नहीं है कि वह चांद तक पहुंच जाये और रात दिन से आगे नहीं बढ़ सकती और उनमें से हर एक अपनी नियत कक्षा में घूम रहे हैं।“
 
 
 
 
 
सूरज, चांद और तारों का अपनी अपनी कक्षा में घूमना इतना सूक्ष्म है कि एक दूसरे से टकराते तक नहीं। अगर चलना नियत गति से न होता तो उनमें आपस में एक दूसरे से टक्कर ज़रूर होती और अगर किसी तारे की तारे से और तारे की चांद या सूरज से टक्कर होती तो सारी दुनिया जलकर राख हो जाती। सूरज, चांद, तारे और ज़मीन के नियत कक्षा के साथ- साथ नियत समय के साथ चलने के ही परिणाम में रात- दिन होते हैं और उसमें किसी प्रकार का कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता है। ये सब महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के असीम ज्ञान व शक्ति के मात्र कुछ नमूने हैं।
 
सिद्धांतिक रूप से जो लोग महान ईश्वर को नहीं मानते हैं उनके पास प्रलय को इंकार करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है किन्तु वे यह कह कर मज़ाक उड़ाते हैं कि प्रलय कब आयेगा। सूरे यासिन की ४८वीं आयत में इस बात की ओर संकेत किया गया है। उसके बाद की आयतों में महान ईश्वर इसका उत्तर देते हुए फरमाता वे तो बस एक प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में हैं जो उन्हें धेर दबोचेगी जबकि वे एक दूसरे से झगड़ रहे होंगे फिर वे कोई वसीयत नहीं कर पायेंगे और न ही अपने घर वालों की ओर लौट सकेंगे और जब सूर फूंकी जाएगी फिर वे क्या देखेंगे कि वे अपनी कब्रों से निकल कर अपने पालनहार की ओर चल पड़े हैं। वे कहेंगे यह अफ़सोस हम पर किसने हमें सोते से जगा दिया? यह वही चीज़ है जिसका रहमान ने वादा किया था और उसके दूतों ने सच कहा था बस एक ज़ोर की चिंघाड़ होगी फिर वे दखेंगे कि वे सबके सब हमारे पास हाज़िर कर दिये गये हैं। यह वह दिन होगा जिसमें किसी पर लेशमात्र अन्याय व अत्याचार नहीं होगा और इंसान जो कुछ कर्म किये होगा उसके सिवा उसे किसी चीज़ का प्रतिदान नहीं दिया जायेगा।
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन के सूरे यासिन की ५५ वीं और उसके बाद की कुछ आयतों में स्वर्ग और नरकवासियों का उल्लेख किया गया है।
 
 
 
वास्तव में सूरे यासिन की कुछ आयतों में प्रलय के संबंध में महत्वपूर्ण बिन्दु बयान किये गये हैं। इंसान का प्रलय पर विश्वास और उसके कार्यों के सदैव बाक़ी रहने की आस्था इंसान पर गहरा प्रभाव डालती है और वह इंसानों को अच्छे कार्यों को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित और साथ ही बुरे कार्यों से दूर रहने की सिफारिश करती हैं। पवित्र क़ुरआन के अनुसार मौत अंत नहीं है बल्कि एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत है और बड़े संसार में प्रवेश का पहला क़दम है।
 
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के काल में एक अनेकेश्वरवादी ने एक सड़ी- गली हड्डी को हाथ में लिया और कहने लगा। मैं इस हड्डी को लेकर मोहम्मद से बहस करूंगा और प्रलय के दिन के बारे में उनकी बात को ग़लत सिद्ध कर दूंगा। उस हड्डी को लेकर वह पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में आया और कहने लगा। इस सड़ी -गली हड्डी को कौन ज़िन्दा कर सकता है? सूरे यासिन की ७८वीं और उसके बाद की कुछ आयतों में इस संदेह का तार्किक व बौद्धिक उत्तर दिया गया है।
 
 
 
 
 
सबसे पहले आयत में इंसान का ध्यान उसके आरंभ की ओर दिलाया गया है और उसे चिंतन - मनन का आह्वान किया गया है और कहा गया है कि क्या इंसान ने नहीं देखा कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया है? यह कमज़ोर प्राणी इतना शक्तिशाली हो गया कि वह महान ईश्वर के निमंत्रण के मुकाबले में ही आ गया और अपने आपको भूल बैठा। महान ईश्वर ने पवित्र क़रआन में कहा है कि इस हड्डी को वही जीवित करेगा जिसने इंसान को उस समय पैदा किया जब वह कुछ भी नहीं था।
 
वास्तव में इंसान अगर अपने अस्तित्व के आरंभ पर ध्यान देता तो कभी भी इस प्रकार की आधारहीन बात को प्रमाण के रूप में पेश न करता। सूरे यासिन की ८१वीं आयत महान ईश्वर की असीम शक्ति की ओर संकेत करती और कहती है क्या जिसने ज़मीन और आसमान को पैदा किया है वह उसके जैसा पैदा करने पर सक्षम नहीं है? हां वह ऐसा कर सकता है। वह पैदा करने वाला सर्वज्ञानी है।“


source : irib
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