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इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

लोक परलोक में शांतिपूर्ण और सुरक्षित स्थान प्राप्त करने के लिए इंसान को एक भरोसेमंद आदर्श और उदाहरण की ज़रूरत होती है। इंसान स्वाभाविक रूप से नैतिक गुणों की ओर आकर्षित होता है। इसी लिए लोग हमेशा ऐसे इंसानों की तलाश में रहते हैं जो ऊंचाई पर पहुंचे और वास्तव में नैतिक व आध्यात्मिक विशेषताओं से सुसज्जित हुए।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

लोक परलोक में शांतिपूर्ण और सुरक्षित स्थान प्राप्त करने के लिए इंसान को एक भरोसेमंद आदर्श और उदाहरण की ज़रूरत होती है। इंसान स्वाभाविक रूप से नैतिक गुणों की ओर आकर्षित होता है। इसी लिए लोग हमेशा ऐसे इंसानों की तलाश में रहते हैं जो ऊंचाई पर पहुंचे और वास्तव में नैतिक व आध्यात्मिक विशेषताओं से सुसज्जित हुए।

 
 
ईश्वरीय दूतों की सफलता का रहस्य यही है कि उन्होंने इसी पहलू की मदद से भले इंसानों को अपने मिशन की ओर आकर्षित किया। इसकी वजह यह थी कि रसूल, पैग़म्बर और इमाम अपने महान आचरण और नैतिक विशेषताओं के कारण अपने काल के सर्वमहान इंसान होते थे, अतः सत्य के खोजी इंसान ईश्वरीय दूतों की जीवनी का अध्ययन करके उन्हें अपना आदर्श बना लेते थे। इन्हीं महान दूतों और आदर्शों में से एक पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम थे। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पवित्रता और अध्यात्म का प्रतीक थी।
 
 
 
 
 
करुणा, दया, सच्चाई, ज्ञान, क्षमाशीलता, परित्याग और उदारता की दृष्टि से वह एक संपूर्ण उदाहरण थे। आज का दिन इसी महान हस्ती की शहादत का दिन है जो पैग़म्बरे इस्लाम के वंशज थे। वर्ष 220 हिजरी क़मरी के ज़ीक़ादा महीने के आख़िरी दिन हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पालनहार से जा मिले। उन्होंने अपनी छोटी सी आयु में ही इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार प्रसार में मूलभूत भूमिका निभाई। उनका पूरा जीवन युवा पीढ़ी के लिए बेहतरीन उदाहरण और आदर्श है। आज के इस युग में जब अनेक  प्रकार की नैतिक एवं मानसिक समस्याएं चारों ओर फैली हुई हैं और समाज उनमें जकड़ा हुआ है तो इस महान हस्ती के बर्ताव और शिष्टाचार का अनुसरण बहुत सी समस्याओं का समाधान बन सकता है। श्रोताओ हम हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर संवेदना व्यक्त करते हैं और इसी उपलक्ष्य में कुछ देर इस महान हस्ती के बारे में बात करेंगे ताकि शायद हम अपने जीवन में उनके शिष्टाचार और स्वभाव की एक हल्की सी झलक पैदा करने में सफल हो जाएं।
 
 
 
 
 
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ऐसे काम को महत्वहीन मानते थे जो ज्ञान की कसौटी पर परखा न गया हो। उनका कहना था कि कोई भी काम ज्ञान और पूरी पहिचान के साथ किया जाना चाहिए। इंसान यदि कोई ऐसा काम शुरू कर दे जिसके बारे में वह नहीं जानता, या उस काम को अंजाम देने का तरीक़ा उसे नहीं मालूम है तो निश्चित रूप से वह विफल होगा तथा उसे नुक़सान उठाना पड़ेगा। इसी लिए हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि यदि कोई इंसान किसी काम में दाख़िल होने का रास्ता नहीं जानता तो उस काम से बाहर निकलने का रास्ता खोजने में वह नाकाम रहेगा।
 
 
 
 
 
अर्थात अगर इंसान काम तथा उसे अंजाम देने का तरीक़ा नहीं जानता किंतु फिर भी उस में लग जाए तो इस प्रकार उलझ जाएगा कि उसके लिए मुक्ति पाना कठिन हो जाएगा। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने इसी बात को एक अलग अंदाज़ में भी बयान किया है। वह कहते हैं कि कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके बारे में सोच विचार और योजना इंसान को पछतावे से बचाती है। अतः अगर कोई इंसान पूरी योजनाबंदी और जानकारी के साथ काम शुरू करता है तो उसे सफलता मिलेगी। यदि इंसान ने पहले ही भलीभांति सोच-विचार कर लिया है तो कोई विपरीत स्थिति उत्पन्न होने पर वह उचित उपायों के माध्यम से उसकी भरपाई कर लेता है। ऐसा इंसान अपने किसी काम पर कभी पछताने पर मजबूर नहीं होता क्योंकि उसने सोच विचार और समीक्षा के बाद काम शुरू किया है।
 
 
 
 
 
इस्लाम में विनम्रता को शिष्टाचारिक गुणों में गिना जाता है और यह बुद्धि की परिपक्वता की निशानी है। इसके मुक़ाबले में घमंड और अकड़ को बहुत निंदनीय माना गया है। क्योंकि घमंड और अकड़ हो तो इंसान का मार्गदर्शन नहीं हो सकता। इंसान में घमंड जितना बढ़ता जाएगा कि गुमराही और पथभ्रष्टता पर इंसान का आग्रह भी उतना ही अधिक होता जाएगा। जबकि यदि इंसान के अंदर विनम्रता हो तो उसके मार्गदर्शन की संभावना बढ़ जाती है और एसा व्यक्ति ईश्वर का सामिप्य प्राप्त कर सकता है। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने भी विनम्र स्वभाव की अनेक ख़ूबियां गिनवाई हैं जिनमें सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि विनम्रता से ईश्वर प्रसन्न होता है। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम विनम्रता को अपना सबसे बड़ा गर्व मानते थे। लोगों को शिष्टाचार और नैतिकता अपनाने पर प्रेरित करने के लिए हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं कि विनम्रता वंश और ख़ानदान का श्रंगार और उसकी महानता की प्रतीक है।
 
 
 
 
 
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने भी दूसरे ईश्वरीय दूतों की भांति आम लोगों के साथ संयम और क्षमाशीलता को हमेशा बहुत अधिक महत्व दिया। वह कभी भी दूसरों के साथ कठोर बर्ताव नहीं करते थे। यदि किसी से कोई ऐसी ग़लती हो जाए जिसे क्षमा किया जा सकता हो तो वे क्षमा कर देते थे। उनकी इस विनम्रता के कारण भी बहुत से लोग पथप्रदर्शित हुए। क़ुरआन मजीद ने भी पैग़म्बरे इस्लाम की सफलता का रहस्य बयान करते हुए कहा है कि हे पैग़म्बर तुम ईश्वर की कृपा और दया से लोगों के लिए बहुत विनम्र स्वभाव और मेहरबान बन गए। यदि तुम कठोर हृदय के होते तो लोग आपके पास से चले जाते। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम भी हमेशा बहुत प्रेमभाव का बर्ताव करते थे। वह कहते हैं कि अपने भाई से सहनशीलता का बर्ताव करने की निशानी यह है कि दूसरों के सामने कभी उसकी मलामत न की जाए।
 
 
 
 
 
इस प्रकार कठोर बर्ताव उचित नहीं है चाहे कभी इसका कोई तर्क भी मौजूद क्यों न हो। इंसान को चाहिए कि दूसरों से प्रेम के साथ पेश आए और हमेशा लोगों का ख़याल रखे। क्योंकि यदि वह दूसरों के साथ कठोर बर्ताव करेगा तो लोग भी उससे कठोरता से पेश आएंगे तथा उसके लिए कठिनाइयां और प्रतिकूल परिस्थितियां बनी रहेंगी। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो व्यक्ति सहनशीलता को छोड़ दे प्रतिकूल परिस्थितियां उसे घेर लेती हैं।
 
 
 
 
 
सच्चाई बहुत प्रशंसनीय और इंसान का नैतिक गुण है जिसे हर धर्म और हर मत में विशेष महत्व दिया गया है। इंसान की पवित्र प्रवृत्ति उसे संतुलित बनाती है और उसकी ज़बान तथा उसकी सोच में समन्वय उत्पन्न करती है। यह प्रवृत्ति कहती है कि इंसान का ज़ाहिरी और भीतर रूप एक हो और हमेशा वही बात करे जिस पर वह दिल से विश्वास करता है। ईश्वर के प्रति इस सत्यता को सबसे अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। अर्थात जब इंसान नमाज़ पढ़ता है और यह वाक्य दोहराता है कि हे ईश्वर मैं तेरी ही उपासना करता हूं और केवल तुझ से ही मदद चाहता हूं, तो उसे चाहिए कि अपनी इस बात में सच्चा हो। लेकिन खेद की बात यह है कि कुछ लोग दूसरों के सामने गुनाह करने से डरते हैं, हराम काम करने से बचते हैं, लेकिन अकेले में लोगों की आंखों से बचकर गुनाह करते हैं। यह एक प्रकार से ईश्वर के समक्ष सत्यता से भागने के समान है जो बहुत ही बुरी बात है। इस प्रकार के अमल के बारे में हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम चेतावनी देते हुए कहते हैं कि ज़ाहिरी तौर पर ईश्वर का प्रेमी और निहित रूप से ईश्वर के शत्रु न बनो।
 
 
 
 
 
लोगों की सेवा करना उनका दिल जीतने का बड़ा अच्छा प्रशैक्षिक मार्ग है। क्योंकि इंसान स्वाभाविक रूप से एसे व्यक्ति से जुड़ाव महसूस करता है जो उसके साथ भलाई कर रहा है या उसकी कोई समस्या कल कर रहा है। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का यह भी स्वभाव था कि लोगों की ज़रूरतों पर बड़ा ध्यान देते थे और लोगों की आश्यकताएं पूरी करने को अपना दायित्व समझते थे। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों की ज़रूरतें पूरी करने को इतना अधिक महत्व देते थे कि उन्हें जवाद अर्थात बहुत अधिक दानी कहा जाने लगा। उनका कहना था कि ईश्वर की कृपा और नेमत का हक़दार बनने की शर्त यह है कि इंसान दूसरों की ज़रूरतें पूरी करे। वह अपने इस कर्म से केवल ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने पर ध्यान देते थे। वह कहते थे कि कभी कभी बड़ा सामान्य और आसान सा काम भी इंसान को ईश्वर का सामिप्य दिला सकता है। इसी लिए वह एक स्थान पर कहते हैं कि विनम्र स्वभाव और बहुत अधिक दान देना, इंसान को ईश्वर के क़रीब करता है।
 
 
 
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ज़रूरतमंदों की मदद और उनके साथ नेकी को ईश्वर की अत्यंत पसंदीदा अमल कहते थे। वे इस बारे में कहते थे कि केवल उस व्यक्ति पर ईश्वर की नेमतों की बरसात होती है जिससे लोगों की ज़रूरतें ज़्यादा पूरी होती हैं। अतः यदि कोई इस बोझ को उठाने से भागता है तो उसको मिलने वाली नेमतें कम होने लगती हैं।
 
 
 
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का कहना था कि ज़रूरतमंदो की मदद करना उन पर उपकार नहीं है बल्कि सक्षम और समर्थ व्यक्ति को एसा कर्म करने की ज़्यादा ज़रूरत है। वह कहते हैं कि भले कर्म करने वालों को ज़रूरतमंदों से ज़्यादा इस बात की आवश्यकता होती है कि वह भले काम करें। क्योंकि इस भले काम का पारितोषिक और प्रसिद्धि उन्हें मिलती है।
 
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों की आवश्यकताएं पूरी करने और समस्याएं दूर करने पर बहुत ज़्यादा ध्यान देते थे। यहां हम इसका एक उदाहरण पेश करेंगे।
 
 
 
 
 
अहमद बिन हदीद कहते हैं कि मैं कुछ लोगों के साथ हज के लिए रवाना हुआ। रास्ते में लुटेरों ने हमारा रास्ता रोक लिया और जो कुछ हमारे पास था सब छीन लिया। जब मैं मदीना पहुंचा तो हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को मैंने देखा और उनके साथ उनके घर चला गया। मैंने अपनी समस्या के बारे में उन्हें बताया। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने निर्देश दिया कि मुझे पैसे और कपड़े दिए जाएं और मुझ से कहा कि यह पैसे साथियों में बांट दो और जिसका जितना पैसा गया है उसे उतना पैसा दे दो। जब मैंने वह पैसे बांटे तो मैने देखा कि उतने ही पैसे थे जितने हमसे लुटेरों ने छीन लिए थे।


source : irib.ir
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