Hindi
Friday 19th of April 2024
0
نفر 0

हज़रत फ़ातेमा मासूमा का जन्म दिवस

पहली ज़ीक़ादा सन १७३ हिजरी क़मरी को हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटी और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन का जन्म हुआ। हज़रत फ़ातेमा मासूमा का मज़ार ईरान के पवित्र नगर क़ुम में स्थित है। हर रोज़ हज़रत फ़ातेमा मासूमा के मज़ार में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है परंतु आज उनके श्रृद्धालुओं की संख्या हर रोज़ से अधिक है। आज उनके रौज़े का दर्शन करने वालों का प्रयास है कि वे उनके मज़ार की आध्यात्मिक बरकत से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठायें। वास्तव में इंसान जब स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम और उनक
हज़रत फ़ातेमा मासूमा का जन्म दिवस

पहली ज़ीक़ादा सन १७३ हिजरी क़मरी को हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटी और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन का जन्म हुआ।
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा का मज़ार ईरान के पवित्र नगर क़ुम में स्थित है। हर रोज़ हज़रत फ़ातेमा मासूमा के मज़ार में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है परंतु आज उनके श्रृद्धालुओं की संख्या हर रोज़ से अधिक है। आज उनके रौज़े का दर्शन करने वालों का प्रयास है कि वे उनके मज़ार की आध्यात्मिक बरकत से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठायें। वास्तव में इंसान जब स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से जोड़ लेता है तो वह स्वयं को शांति, सुरक्षा और आशा के स्रोत से जोड़ लेता है और निराशा को स्वयं से दूर कर देता है।
 
 
 
 
 
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम हज़रत फ़ातेमा मासूमा के पिता थे जबकि हज़रत नज्मा ख़ातून उनकी माता थीं। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के बड़े भाई थे। वह अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा से मुलाक़ात के लिए पवित्र नगर मदीना से मर्व जा रही थीं और २३ रबीउल अव्वल २०१ हिजरी क़मरी को पवित्र नगर क़ुम पहुंची। जब हज़रत फ़ातेमा मासूमा क़ुम पहुंचीं तो इस नगर के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके परिजनों से श्रृद्धा रखने वाले उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े परंतु १७ दिनों तक वे इस नगर में बीमार रहीं और २७ साल की उम्र में इसी नगर में उनका स्वर्गवास हो गया और इसी नगर में उन्हें दफ्न भी कर दिया गया।
 
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बारे में फ़रमाते हैं” ईश्वर का हरम है जो मक्का है और उसके पैग़म्बर का हरम मदीना है और अमीरुल मोमिनीन यानी हज़रत अली का हरम कूफ़ा है और हम अहलेबैत का भी हरम है जो क़ुम है और हमारे परिवार की एक महिला वहां दफ्न होगी जिसका नाम फ़ातेमा है।“
 
 
 
 
 
 
 
     ईश्वरीय धर्म इस्लाम में महिला या पुरुष होना श्रेष्ठता का मापदंड नहीं है बल्कि इस्लाम में श्रेष्ठता का मापदंड तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय है। इसी प्रकार ज्ञान और ईमान भी श्रेष्ठता का मापदंड हैं। दूसरे शब्दों में ज्ञान और ईमान के कारण ही इंसान में ईश्वर के प्रति भय उत्पन्न होता है। जिस इंसान के पास न ज्ञान हो और न ईमान तो कभी भी उसके अंदर ईश्वरीय भय उत्पन्न नहीं होगा। पवित्र क़ुरआन एक इंसान की दूसरे इंसान पर हर प्रकार की श्रेष्ठता का इंकार करता है और कहता है कि किसी को किसी पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है सिवाए यह कि जिसका तक़वा अधिक हो। दूसरे शब्दों में महान ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रतिष्ठित यह है जिसका तक़वा सबसे अधिक हो।
 
तक़वा वह चीज़ है जो इंसान की आध्यात्मिक परिपूर्णता का कारण बनता है तक़वा ही इंसान को महान ईश्वर के समीप करता है, तक़वा ही इंसान को पापों से बचाता है तक़वा और ईमान ही वह चीज़ है जिसके कारण इंसान अच्छा कार्य अंजाम देता है।
 
 
 
 
 
 
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह वह महान महिला हैं जो अपनी निष्ठा, उपासना, पवित्रता और तक़वे के माध्यम से परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचीं और मुसलमान महिलाओं के मध्य एक आदर्श महिला बन गयीं। ज्ञान और ईमान के क्षेत्र में हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्ला अलैहा की सक्रिय उपस्थिति इस्लामी संस्कृति व इतिहास में महिला के मूल्यवान स्थान की सूचक है। इसी तरह इस बात की भी सूचक है कि इस्लाम महिलाओं को कितना महत्व देता है और इस्लाम ने महिलाओं को भी हर क्षेत्र में प्रगति करने का अवसर प्रदान किया है और इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ महिलाएं पुरुषों के लिए भी आदर्श बन गयी हैं।
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा की एक विशेषता इस्लामी ज्ञान व शिक्षा की जानकारी और दूसरों के लिए उसे बयान करना था। इस्लामी विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटियों में हज़रत फ़ातेमा मासूमा का एक विशेष स्थान है। जब इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम घर पर मौजूद नहीं होते थे तो हज़रत फ़ातेमा मासूमा लोगों के प्रश्नों का उत्तर देती थीं और उनकी भ्रांतियों को दूर करती थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा का जो ज़ियारतनामा है उसमें हम पढ़ते हैं” हे मूसा बिन जाफ़र की बेटी, उनकी अमीन व उत्तराधिकारी आप पर सलाम हो।“
 
 
 
 
 
 
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा अपने पिता की अमीन थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा की गणना हदीस अर्थात कथन बयान करने वालों में होती है। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने बहुत सी हदीसें बयान की हैं। जो हदीसें हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने बयान की हैं उनमें अधिकांश का आधार इमामत है और उनका यह कार्य इस बात का सूचक है कि हज़रत फ़ातेमा मासूमा समय को बहुत अच्छी तरह पहचानती थीं और वह अपने पिता की इमामत के कठिन समय को भलिभांति समझती थीं इसलिए उनकी अधिकांश हदीसें इमामत के संबंध में हैं। इसी तरह जब उनके बड़े भाई हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विवश करके मदीना से खुरासान लाया जाता है तो उस कठिन समय में भी उन्होंने इमाम और इमामत के स्थान को बयान करने की आवश्यकता को समझा इसीलिए उन्होंने इमामत के आधारों को मज़बूत किया और इस संबंध में बहुत सी हदीसों को बयान किया जिसे सुन्नी और शीया दोनों लेखकों ने लिखा है।
 
 
 
 
 
एक हदीस में है कि एक बार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लाम ने  हज़रत अली से फ़रमाया हे अली तुम्हारा संबंध मुझसे वैसा ही है जैसे हारून का मूसा से। यानी जिस तरह हज़रत हारून अपने बड़े भाई मूसा के उत्तराधिकारी थे उसी तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी थे। हज़रत फ़ातेमा मासूमा के हवाले से एक दूसरी हदीस आई है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को वसी और उत्तराधिकारी के रूप में याद किया गया है। इस आधार पर हज़रत फातेमा मासूमा, अत्याचारी शासक मामून की ओर से हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को उत्तराधिकारी का पद दिये जाने को अर्थहीन कार्य समझती हैं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने एक बार फिर यह हदीस बयान करके समझा दिया कि इमाम, पैग़म्बरे इस्लाम का उत्तराधिकारी होता है और इस पद को मामून जैसे किसी भी व्यक्ति की ओर से दिये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर हदीसे ग़दीर के बारे में भी फरमाती हैं” क्या तुम लोग ग़दीर के दिन के पैग़म्बरे इस्लाम के कथन को भूल गये हो जिसमें उन्होंने  फ़रमाया था जिसका मैं मौला व स्वामी हूं उसके अली भी मौला व स्वामी हैं।“
 
मासूमा, मोहद्देसा, ताहिरा और हमीदा हज़रत फ़ातेमा की कुछ प्रसिद्ध उपाधियां हैं। इनमें से हर उपाधि हज़रत फ़ातेमा मासूमा के सदगुणों के एक भाग की ओर संकेत करती है और इस बात की सूचक है कि हज़रत मासूमा विद्वान, वक्ता, दक्ष शिक्षक और दूसरे समस्त सदगुणों की प्रतिमूर्ति हैं। आध्यात्मिक पवित्रता के कारण ही हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन को मासूमा की उपाधि दी थी और फरमाया जो क़ुम में मासूमा की ज़ियारत करेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने हमारी ज़ियारत की है।“
 
 
 
 
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा की एक उपाधि करीमये अहले बैत है जो महान ईश्वर के निकट उनके व्यक्तिव्व को बयान करने वाली है। करीमा का अर्थ दान देने वाली महिला है। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन की छत्रछाया में अपने जीवन को महान ईश्वर की याद बिताया और इस प्रकार उन्होंने ज्ञान और तक़वा के शिखर को प्राप्त किया। उपासना, निष्ठा और ज्ञान आदि के कारण महान ईश्वर ने हज़रत फ़ातेमा मासूमा को जीवन में और जीवन के बाद विशेष चीज़ें प्रदान की।
 
 
 
 
 
हज़रत फ़ातेमा मासूमा को विशेषकर मुसलमानों के मध्य विशेष लोकप्रियता प्राप्त थी। इस लोक प्रियता की जड़ धार्मिक आस्था में है। ईरान के पवित्र नगर क़ुम में  हज़रत फ़ातेमा मासूमा का रौज़ा लाखों श्रृद्धाओं की आध्यात्मिक शांति का केन्द्र बना हुआ है। ईरान  और विश्व के विभिन्न क्षेत्रों व नगरों के श्रृद्धालु वहां जाते हैं और यह बात समय बीतने के साथ साथ पवित्र नगर क़ुम की आबादी और पूंजी निवेश को आकर्षित करने का कारण बना है। पवित्र नगर क़ुम बड़े बड़े शिक्षा केन्द्र, पुस्तकालय और धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन केन्द्र हज़रत मासूमा की पावन समाधि की बरकत के मात्र कुछ नमूने हैं। इस्लाम धर्म की वास्तविकताओं को पहचनवाने, धार्मिक छात्रों एवं विद्वानों की प्रशिक्षा में पवित्र नगर क़ुम की भूमिका का एक इतिहास रहा है। बहरहाल पवित्र नगर क़ुम में हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह का रौज़ा है और रौज़े का दर्शन करने के लिए विश्व के कोने २ से लाखों श्रृद्धाल आते हैं। हम उनके जन्म दिवस के शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्थिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।  


source : irib.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
बिना अनुमति के हज करने की कोशिश ...
शिया समुदाय की उत्पत्ति व इतिहास (2)
बक़रीद के महीने के मुख्तसर आमाल
सबसे पहला ज़ाएर
কুরআন ও ইমামত সম্পর্কে ইমাম জাফর ...
दुआ ऐ सहर
आज यह आवश्यक है की आदरनीय पैगम्बर ...
रूहानी लज़्ज़ते
रोज़े की फज़ीलत और अहमियत के बारे ...

 
user comment