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Friday 29th of March 2024
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हज़रत रोक़य्या बिन्तुल हुसैन ऐतेहासिक दस्तावेज़ों में

 

आज हज़रत रोक़य्या के बारे में जो प्रसिद्ध है और जो लिखा जाता है वह यह है कि आप इमाम हुसैन (अ) की बेटी थी। और कर्बला के मैदान में आप हुसैनी क़ाफ़िले के साथ थी और इसी क़ाफ़िले के साथ साथ शाम गईं। एक दिन आपने शाम के एक क़ैद ख़ाने में अपने पिता के स्वप्न में देखा और रोने लगी, यज़ीद ने आदेश दिया कि इमाम हुसैन (अ) का सर ले जाया जाए, इस तीन साल की बच्ची ने जब तश्त से कपड़े को हटाया तो अपने पिता का कटा हुआ सर देखा, गोद में लेकर रोना शुरू कर दिया और धीरे धीरे आपका रोना बंद हो गया, और आप हमेशा के लिये ख़ामोश हो गईं।

लेकिन इस समय मौजूद स्रोतों (1) में आपके बारे में जो कुछ मिलता है हम आपके सामने उसको समय के अनुसार क्रम में पेश कर रहे हैः

 

1. लेबाबुल अनसाब

 

छटी शताब्दि के प्रसिद्ध नसब शेनास (वंश जानकार), इब्ने फ़ुनदुक़ बैहक़ी (565 क़मरी) लेबाबु अनसाब में इमाम हुसैन (अ) की औलाद के बारे में बयान करते हुए लिखते हैं

ولَم يَبقَ مِن أولادِهِ إلّا زَينُ العابِدينَ عليه السلام ، وفاطِمَةُ وسُكَينَةُ ورُقَيَّةُ(2)

 

इमाम हुसैन (अ) संतान में से इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) फ़ातेमा, सकीना और रुक़य्या के अतिरिक्त कोई और बाक़ी नहीं बचा

 2. अलमलहूफ़ (जो लहूफ़ के नाम से प्रसिद्ध है)

 

इस पुस्तक में हज़रत रुक़य्या के बारे में एक अलग चीज़ मिलती है वह यह है कि जब इमाम हुसैन (अ) अन्तिम विदा के लिये अपने परिवार वालों और अहले हरम के पास आए हैं तो आपने फ़रमायाः

يا اُختاه! يا اُمَّ كُلثوم! وأنتِ يا زَينَبُ! وأنتِ يا رُقَيَّةُ ! وأنتِ يا فاطِمَةُ ! وأنتِ يا رَبابُ! اُنظُرنَ إذا أنَا قُتِلتُ فَلا تَشقُقنَ عَلَىَّ جَيباً ، ولا تَخمِشنَ عَلَىَّ وَجهاً ، ولا تَقُلنَ عَلَىَّ هَجراً .(3)

 

 हे मेरी बहन, हे उम्मे कुलसूम, और हे तुम ज़ैनब, और तुम फ़ातेमा, और तुम हे रबाब, याद रखों जब में शहीद कर दिया जाऊं, तो मेरे लिये अपना गरेबान चाक न करना, और चेहरे को न नोचना, और हिज़यान मुंह से न निकालना।

इमाम हुसैन (अ) की एक तीन साल की बेटी थी इमाम हुसैन (अ) के सर को एक तश्त में रखा था और उसपर एक कपड़ा डाल रखा था, वह उनके सामने लाए और उस पर से कपड़ा हटा दिया। इमाम हुसैन (अ) की बेटी ने उस सर को देखा और पूछा यह किसका सर है? कहाः यह तुम्हारे पिता का सर है। उन्होंने उस सर को तश्त से निकाला और गोद में ले लिया और कहाः हे बाबा आपको किसने ख़ून से रंग दिया?....

उसके बाद अपने मुंह को इमाम हुसैन (अ) के मुंह पर रख दिया और बहुत रोईं और बेहोश हो गईं, जब आपको हिलाया गया तो क्या देखा कि आपनी रूह निकल चुकी है और आप इस संसार से जा चुकी हैं।

 

इस बात के बारे में कुछ बातें कही जा सकती हैः

 

1. अलमलहूफ़ किताब के बहुत सी प्रतियों में यह बात नहीं लिखी हुई है।

2. इस लेख में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि रोक़य्या इमाम हुसैन (अ) की बेटी थी।

3. यह भी संभव है कि इस कथन में जो रोक़य्या कहा गया है वह इमाम अली (अ) की बेटी और हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील (4) की पत्नी थी क्योंकि हज़रत मुस्लिम की संतान भी इमाम हुसैन (अ) के साथ कर्बला में थी, और बहुत संभावना है कि आपकी पत्नी भी कर्बला में थी। (5)

 

3. कामिल बहाई

कामिल बहाई फ़ारसी भाषा की पुस्तक है जिसके लेखक एमादुद्दीन तबरी (6) हैं, इस पुस्तक में इस प्रकार लिखा हैः

हाविया (7) में आया है कि पैग़म्बर के परिवार की महिलाएं, क़ैद की हालत में, मर्दों की हालत जो कर्बला में शहीद हुए थे, उनके बेटों और बेटियों से छिपाई रखी जाती थी, और हर बच्चे को कहा जाता था किः तुम्हारे पिता फ़लां यात्रा पर गये हैं (और) वापस आएंगे, यहां तक कि इन सभी को यज़ीद के घर लाया गया, एक बच्ची थी चार साल की।

एक रात वह सोते से उठी और कहने लगी मेरे पिता हुसैन कहा हैं? मैंने उनको सपने में देखा हैसारी महिलाएं और बच्चे रोने लगे औऱ उनके रोने की आवाज़ें ऊँची हो गईं, यज़ीद जो कि सो रहा था, उठा और पूछा कि क्या हो रहा है उसको बताया गया कि यह हुआ है, उस मलऊन ने कहा कि जाओ और उसके पिता का सर उसके सामने रख दो, सर लाया गया और उस चार साल की बच्ची के सामने रख दिया गया। उसने पूछा यह क्या है?” उन मलऊनों ने कहाः यह तुम्हारे पिता का सर है, वह बच्ची डर गई और रोना शुरू कर दिया, और कुछ दिन इसी ग़म में रही और मर गई। (8)

 

4. रौज़तुश शोहदा

 

एमादुद्दीन के बाद मुल्लाह हुसैन वाएज़ काशेफ़ी सबज़वारी अपनी किताब रौज़तुश शोहदा में तबरी की बातों को कुछ विस्तार के साथ लिखते हैं लेकिन उसके बावजूद वह भी उस बच्ची का नाम नहीं लिखते हैं और केवल यही लिखते हैं कि वह बच्ची चार साल की थी और आप यह भी लिखते हैं कि यह घटना यज़ीद के दरबार में हुआ और लिखते हैं:

जब रुमाल हटाया गया (9), उस तश्त में एक सर देखा, उस सर को उठाया और ग़ौर से देखा। अपने पिता के सर को पहचान लिया, एक आह ख़ीचीं और अपने चेहरे को पिता के चेहरे पर मला और अपने होंटों को पिता के होंटों पर रखा दिया और इसी हालत में मर गई। (10)

 

5. अलमुनतख़ब तोरैही

 

फ़ख़्रुद्दीन तोरैही अपनी पुस्तक अलमुनतख़ब में कुछ अलग शब्दों में इस कहानी को बयान करते हैं आप अपनी पुस्तक में कुछ इस प्रकार लिखते हैं:

रिवायत है कि पैग़म्बरे के परिवार वाले शाम में यज़ीद के पास लाए गए, तो उसने उनके लिये एक घर निश्चित किया और यह लोग इस घर में मजलिस मातम किया करते थे। हमारे मौला इमाम हुसैन (अ) की एक तीन साल की बेटी थी, इमाम हुसैन (अ) के पवित्र सर को एक रुमाल (11) से छिपा रखा था, लाए और उसके पास रखा और उस पर से कपड़ा हटा दिया। इमाम की बेटी ने पूछा: यह किसका सर है? उन्होंने कहाः तुम्हारे पिता का सर है।

 

उस सर को तश्त से उठाया और अपने गोद में ले लिया और कहाः हे बाबा! किसने आप को ख़ून से रंग दिया? हे बाबा किसने आपकी रगों को काट दिया? हे बाबा किसने बचपन में ही मुझे यतीम कर दिया? हे बाबा आपके बाद हम किससे दिल लगाएं? हे बाबा कौन यतीम की देखभाल करेगा ताकि वह बड़े हों? हे बाबा दुखों की मारी महिलाओं की देखभाल कौन करेगा? हे बाबा क़ैदी बेवाओ की देखभाल कौन करेगा? हे बाबा रोती आखों पर कौन प्यार करेगा? हे बाबा, बिछड़ों को पनाह देने वाला कौन है? हे बाबा बिखरे बालों को सुलझाने वाला कौन है? हे बाबा हमारी नाकामी में आपके बाद कौन है? हे बाबा हमारी ग़रीबी में आपके बाद कौन है? हे बाबा काश में आप पर फ़िदा हो जाती। हे बाबा इससे पहले मैं अंधी हो जाती। हे बाबा काश मैं मर जाती और आपकी दाढ़ी को ख़ून से रंगी न देखती।

उसके बाद अपने मुंह को इमाम के मुंह पर रखा दिया और देर तक रोई, यहां तक की बेहोश हो गई, जब हिलाया गया तो बता चला की बच्ची वह इस दुनिया से जा चुकी थीं। (12)

 

6. शअशआतुल हुसैनी

चौदहवी शताब्दी के आरम्भ में शेख़ मोहम्मद जवाद यज़दी ने अपनी किताब शअशआतुल हुसैन (13) में लिखाः

रिवायत है कि इमाम हुसैन (अ) की संतान में एक बच्ची शाम के खंडहरों में अपने पिता के सर को देखकर इस दुनिया से चली गई, लेकिन उसके नाम के बारे में मतभेद है कि वह बच्ची ज़ोबैदा है या रोक़य्या या ज़ैनब या सकीना। (14)

आप बाद के पेजों पर किताबे रियाज़ुल अहज़ान से लिखते हैं कि इस बच्ची का नाम फ़ातेमा था।

ध्यान देने वाली बात यह है कि इस किताबम  इस बच्ची के बारे में कई नामों को बयान किया गया है जिसमें से शाम में मरने वाली एक बच्ची के नाम के तौर पर रोक़य्या का नाम भी लिया गया है। (15)

हमने ऊपर आपके सामने जो कुछ भी बताया वह ऐतिहासिक किताबों में लिखी हुई बातें थी जिसमें इमाम हुसैन (अ) की एक बेटी की शाम में मौत के बारे में विभिन्न प्रकार की बातें कहीं गईं थी, इन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और इस बात को देखते हुए कि इस घटना की सूक्षम्ताओं के बारे में किसी भी विश्वस्नीय पुस्तक में कुछ भी बयान नहीं किया गया है, या अगर किसी विश्वस्नीय पुस्तक में ऐसा कुछ था भी तो अब वह हमारे हाथों में नहीं है इस आधार पर इस बारे में कुछ भी विश्वस्नीयता के साथ बयान करना बहुत ही कठिन है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह कि हमारे हिन्दुस्तान में हज़रत इन्ही घटनाओं के बारे में हज़रत रोक़य्या के स्थान पर हज़रत सकीना का नाम बयान किया जाता है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि शायद यह वास्तविक्ता के नज़दीक हो।

इस सबके बावजूद शाम में हज़रत सकीना या हज़रत रोक़य्या की वफ़ात के बारे में जो कुछ कहा गया वह ऐतेहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर था लेकिन शाम में स्थित आपके रौज़े से होने वाले चमत्का और मोजिज़े और इसी प्रकार की घटनाएं हमको इत्मीनान दिलाती हैं कि शाम में हुसैन की एक बेटी अपनी सारी पवित्रताओं और महानताओं के साथ दफ़्न है उसका नाम जो कुछ भी हो लेकिन हम सब पर उसका सम्मान वाजिब है।

**********

स्रोत

1. हमारा तात्पर्य वह पुस्तकें है जो इस समय मौजूद हैं और जिन तक हम पहुंच सकते हैं, क्योंकि यह संभावना है कि इस बारे में कुछ पुराने स्रोत रहे हो या मौजूद हो लेकिन हम उन तक न पहुंच सकते हों।

2. लेबाबुल अनसाब, जिल्द 1, पेज 355

3. अलमलहूफ़, पेज 141

4. संभव है कि रोक़य्या, इमाम अली (अ) की एक बेटी हो (तारीख़ तबरी, जिल्द 5, पेज 154, तहज़ीबुल कमाल जिल्द 2, पेज 479) जो हज़रत मुस्लिम की पत्नी भी थी, और कर्बला में भी थीं।

5. दानिश नाम ए इमाम हुसैन (अ) जिल्द 1 , पेज 384

6. हुसन बिन अली तबरी तोहफ़तुल अबरारा और कामिल बहाई नामक पुस्तकों के लेखक हैं जो कि 701 क़मरी तक जीवित थे।

7. शायद अलहाविया किताब का तात्पर्य यही है जो कि क़ासिम बिन मोहम्मद बिन अहमद सुन्नी की लिखी है।

8. कामिल बहाई, जिल्द 2, पेज 179

9. रुमाल को हटाया

10. रौज़तुश शोहदा, पेज 389

11. हरीर

12. अलमुनतख़ब पेज 136

13. आपने इस पुस्तक का लेखन 1319 क़मरी में आरम्भ किया।

14. शअसआतुल हुसैनी, जिल्द 2, पेज 171,

15. घटना की सच्चाई और किखने वालों की सत्तयता को स्वीकार करते हुए।

 

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

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