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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार ७

 

पवित्र क़ुरआन एक अमर चमत्कार है।  ईश्वर ने इसे पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम को प्रदान किया है।  इसने हृदयों को आकर्षित एवं परिवर्तित कर दिया है।  जिस प्रकार से पैग़म्बरे इस्लाम का कोई गुरू नहीं था उसी प्रकार से हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी पैग़म्बरे इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य से ज्ञान प्राप्त नहीं किया।  यही कारण है कि उनके कथनों को ईश्वरीय कथन के बाद और अन्य समस्त कथनों से सर्वोपरि कहा जाता है।

 

पवित्र क़ुरआन वास्तव में ईश्वरीय संविधान है।  यह एसा संग्रह है जिसमें लेशमात्र भी झूठ नहीं है।  ईश्वर ने इस पवित्र पुस्तक को हर प्रकार के हेरफेर से सुरक्षित रखा है।  पवित्र क़ुरआन में इस बात की पुष्टि भी की गई है।  अपने जीवनकाल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) लोगों को पवित्र क़ुरआन पढ़ने, उसे सीखने और याद करने का निमंत्रण देते थे।  यही कारण है कि उनके जीवनकाल में ही बहुत से मुसलमानों ने पवित्र क़ुरआन याद कर लिया था।  वे लोग पवित्र क़ुरआन की आयतों को याद करते और उन्हें लिख लिया करते थे उसके बाद वे उसे लोगों को बताते थे।  तौरेत और इंजील जैसी अन्य आसमानी किताबों के विपरीत पवित्र क़ुरआन आरंभ से आम लोगों के बीच रहा है।  उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में बनी इस्राईल या यहूदियों के बीच आसमानी पुस्तक तौरेत नहीं थी बल्कि इसकी मात्र कुछ प्रतियां ही यहूदी धर्मगुरूओ के पास थीं।  आम लोगों को तौरेत से लाभान्वित होने का अधिकार ही नहीं था।  इंजील के बारे में भी यही कहा जाता है कि वर्तमान काल में जो इंजील इसाइयों के पास है वह वास्तव वह इंजील नहीं है जो हज़रत ईसा के पास थी।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पाचीनकाल में आम लोगों की अपने काल की आसमानी किताबों तक पहुंच नहीं थी।  ईश्वर की ओर से पवित्र क़ुरआन भेजे जाने के समय सामाजिक स्थितियां बहुत परिवर्तित हो गईं और आम लोगों की पहुंच अपने काल की आसमानी किताब तक सरल हो गई।  ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम को पवित्र क़ुरआन भेजे जाने की शैली और बाद में उसको सुरक्षित रखने जैसे कार्यों ने उसे सुरक्षित बनाने के साथ ही आम लोगों तक पहुंचाया।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के दायित्वों में से एक दायित्व, पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या करना है।  सूरए नहल की आयत संख्या 44 में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए ईश्वर कहता हैः ” (हमने उन पैग़म्बरों को स्पष्ट चमत्कारों तथा किताब के साथ तथा आपके पास भी किताब भेजी है ताकि आप लोगों को वे सब बातें स्पष्ट रूप से बता दें जो उनके लिए भेजी गई हैं, शायद वे चिंतन करनें।  पवित्र क़ुरआन ईश्वरीय ज्ञान का महासागर है।  इसमें केवल वही तैर सकता है जो पैग़म्बरे इस्लाम की विचारधारा से भलिभांति अवगत हो।  ईश्वर ने लोगों से कहा है कि वे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके वास्तविक वैध उत्तराधिकारियों से पवित्र क़ुरआन का ज्ञान अर्जित करें।  इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद पवित्र क़ुरआन का ज्ञान इसी माध्यम से होना चाहिए।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में पवित्र क़ुरआन की प्रशंसा करते हुए इसके 158वें व्याख्यान में कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संसार में आकर प्राचीन आसमानी किताबों की पुष्टि की।  उन्होंने लोगों का मार्गदर्शन किया।  सब लोगों को उनका अनुसरण करना चाहिए।  जान लो कि क़ुरआन में आने वाले समय का ज्ञान और विगत की सूचनाए हैं।  यह तुम्हारे दर्दो का निवारणकर्ता और तुम्हारे व्यक्तिगत और सामाजिक कार्यों को समन्वित करने वाला है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों में से एक कथन, हदीसे सक़लैन के नाम से प्रसिद्ध कथन है।  उनकी यह हदीस या कथन समस्त मुसलमानों की पुस्तकों में मौजूद है।  पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन में मिलता है कि मैं तुम्हारे बीच दो मूल्यवान वस्तुएं छोड़े जा रहा हूं।  इनमें से एक ईश्वर की किताब क़ुरआन और दूसरे मेरे परिजन हैं।  तुम लोग जबतक इन दोनों से संपर्क रखोगे कभी पथभ्रष्ट नहीं होगे।  यह दोनों कभी भी एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे।  इस आधार पर ईश्वर की इच्छा यही है कि पैग़म्बरे इस्लाम के बाद लोग उनके पवित्र परिजनों के माध्यम से क़ुरआन को प्राप्त करें।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम, नहजुल बलाग़ा के भाषण 147 में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं: कामयाबी या सफलता को, उसके जानने वालों से प्राप्त करो।  पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन, ज्ञान के जीवन का रहस्य हैं और साथ ही मृत्यु और अज्ञानता के जानकार हैं।  वे एसे लोग हैं जिनका मौन उनके ज्ञान का परिचायक है, उनका विदित रूप उनके निहित रूप का बयान करने वाला है।  न तो वे ईश्वर के धर्म के विरोधी हैं और न ही उसमे मतभेद उत्पन्न करते हैं।  उनके बीच क़ुरआन, सच्चा गवाह है।

 

मानव की हार्दिक इच्छा सदैव ही कल्याण प्राप्त करना रही है।  हम जिस प्रकार से जीवन व्यतीत करते हैं वह शैली हमारे भविष्य और परलोक को प्रभावित करती है।  मनुष्य की आस्था, उसके विचार और उसका व्यवहार, उन बीजों की भांति है जो उसके द्वारा इस संसार में बोए जाते हैं और जिनकी फसल, प्रलय में देखने को मिलेगी।  यदि लोग पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम एवं उनके परिजनों द्वारा बताए गए मार्गदर्शनों के आधार पर अपने कार्यक्रमों को निर्धारित कर लें तो वे इस संसार में तो सफल रहेंगे ही, प्रलय में भी वे अपने कर्मों का अच्छा परिणाम देखेंगे।  इस संदर्भ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के व्याख्यान संख्या 178 में कहते हैं कि क़ुरआन का अनुसरण करते हुए उससे ही अपने दर्दों की दवा चाहो और उसपर कार्यबद्ध रहकर ईश्वर की ओर बढ़ो।  तुमको क़ुरआन पर कार्यबद्ध रहने वाला होना चाहिए।  इसके माध्यम से ईश्वर को पहचानो, स्वयं क़ुरआन के उपदेशों से लाभ उठाओ।  इसके माध्यम से अपनी कमियों और बुराइयों को पहचानो।

 

इसी व्याख्यान में तत्वदर्शी बातें कहने के बाद हज़रत अली लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम सबको किसी हितैषी और शुभचिंतक की आवश्यकता है ताकि उचित समय वह तुम्हें उपदेश दे और तुम्हारी भलाई चाहे।  क़ुरआन को अपना उपदेशक समझो।  उसके उपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनकर और उन्हें व्यवहारिक बनाओ।  इसका कारण यह है कि पवित्र क़ुरआन, तुम्हारा हितैषी मार्गदर्शक है।  यह कभी तुमसे विश्वासघात नहीं करेगा।  यह सबसे अच्छे ढंग से सीधे रास्ते की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करता है।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम, लोक-परलोक में कल्याण पाने वाले के ध्यान को इस ओर आकर्षित करते हैं कि वे क़ुरआन को अपना मार्गदर्शन निर्धारित करें और उसकी शिक्षाओं को व्यवहारिक बनाएं।  जैसाकि ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए इसरा में कहता है कि यह कुरआन सबसे अच्छे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है।  यह उन मोमिनों को यह शुभसूचना देता है कि एसे लोगों के लिए अच्छा बदला या पुरस्कार है जो अच्छे कार्य करते हैं।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम, पवित्र क़ुरआन को पहचानने और उसकी शिक्षाओं को व्यवहारिक बनाने के साथ ही लोगों से क़ुरआन के शत्रुओं को पहचानने की भी सिफ़ारिश करते हैं।  इसका कारण यह है कि यदि सच को पहचान लिया जाए तो झूठ को सरलता से पहचाना जा सकता है या यदि झूठ को पहचान लिया जाए तो वह सच को पहचनवाने में वह हमारी सहायता करता है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के ख़ुत्बा संख्या 147 में कहते हैं कि जान लो कि तुम लोग किसी भी स्थिति में सच को नही समझ पाओगे मगर यह कि वे लोग, जिन्होंने सच को छोड़ दिया है उनको पहचानो।  वे कहते हैं कि तुम लोग कभी भी ईश्वरीय संदेशों और क़ुरआन के प्रति वफ़ादार नहीं रह सकते जबतक कि उनको न पहचानो जिन्होंने वचनों को तोड़ दिया।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के यह वक्तव्य वास्तव में शत्रु की पहचान पर बल देते हैं।  इसका मुख्य कारण यह है कि यदि कोई समाज, समाज के भीतर व्याप्त बुराइयों की जड़ को न पहचाने और उससे मुक़ाबला न करे तो वह उचित मार्गदर्शन से वंचित रह जाएगा।  इस प्रकार वह पथभ्रष्टता के मार्ग पर बाक़ी रहेगा।  इन सब बातों के अतिरिक्त विरोधियों और बुरी विचारधाराओं की पहचान के बिना उनके षडयंत्रों से मुक़ाबला संभव नहीं है और इसी प्रकार इस मुक़ाबले के बिना पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं को समाज में व्यवहारिक नहीं बनाया जा सकता।

 

इमाम अली अलैहिस्सलाम नजहुल बलाग़ा में बहुत ही स्पष्ट ढंग से उस समाज की स्थिति का वर्णन करते हैं जो मुख्य मार्ग से हटकर दिगभ्रमित हो गया है।  वे लोगों को इस प्रकार की स्थिति से बचने का आह्वान करते हैं।  इस संदर्भ में वे कहते हैं कि इन परिस्थिति में लोग इस प्रकार के हो जाते हैं कि यदि पवित्र क़ुरआन की सही व्याख्या की जाए तो वह उनके निकट मूल्यहीन बात है किंतु यदि उनकी आंतरिक इच्छाओं के अनुरूप उसकी व्याख्या कर दी जाए तो वहीं सबसे अच्छी चीज़ है।

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