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Wednesday 24th of April 2024
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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार ६

 

पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का परिपूर्ण व अंतिम संदेश और पैग़म्बरे इस्लाम का अमर व मूल्यवान चमत्कार तथा इस्लामी शिक्षाओं का फूटता सोता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने भाषणों में पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयामों से समीक्षा की है और इसको पढ़ने और इसकी आयतों में चिंतन मनन पर बहुत अधिक बल दिया है।

 

वे नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 198 में इस ईश्वरीय पुस्तक की इस प्रकार प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन एक ऐसा प्रकाश है जिसका प्रकाश कभी भी फीका नहीं पड़ेगा, ऐसा महासागर है जिसकी तह को कोई पा नहीं सकता, ऐसा मार्ग है जिसपर चलने वाला कभी पथभ्रष्ट नहीं होगा। ऐसी ज्वाला है जो कभी बुझेगी नहीं, यह सत्य और असत्य को अलग करने वाला है जिसके प्रकाशमयी तर्क कभी बुझेगा नहीं, ऐसी बुनियाद है जिसके आधार कभी धराशायी नहीं होंगे, ऐसी दवा है जिसके कुप्रभाव का कोई ख़तरा नहीं, ऐसी शक्ति है जिसके रखने वाले कभी पराजित नहीं होते और ऐसा सत्य है जिससे सहायता प्राप्त करने वाले कभी पराजित नहीं होते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनानुसार पवित्र क़ुरआन ऐसा मार्गदर्शक और नसीहत करने वाला है जो सत्य और वास्तविकता के अतिरिक्त कोई और बात नहीं करता और जो भी इस पर भरोसा करता है वह कभी भी विफल नहीं होगा।

 

इस पवित्र क़ुरआन की शिक्षाएं और वास्तविकताएं किसी विशेष समय और गुट से विशेष नहीं हैं बल्कि इसकी शिक्षाएं और आयतें प्रलय तक के लिए सभी लोगों के लिए हैं। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से बयान किया गया है कि यदि ऐसा होता कि इसकी आयत किसी विशेष जाति के लिए होती तो उस जाति के समाप्त होते ही वह आयत भी समाप्त हो जाती और पवित्र क़ुरआन में कोई भी चीज़ नहीं बचती किन्तु पवित्र क़ुरआन जब तक धरती और आकाश है, अमर और बाक़ी रहेगा।

 

पवित्र क़ुरआन में ज्ञान व तकनीक की जितनी प्रशंसा की गयी है किसी अन्य ईश्वरीय पुस्तक में इतनी प्रशंसा नहीं मिलती। पवित्र क़ुरआन की सैकड़ों आयतों में ज्ञान व तकनीक के बारे में बातें की गयी हैं जिसमें अधिकतर ज्ञान के स्थान की बहुत अधिक प्रशंसा हुई है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन की उच्च विशेषताओं के बारे में नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 198 में कहते हैं कि ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन को बुद्धिजीवियों की ज्ञान संबंधी प्यास को बुझाने का स्वच्छ और साफ़ जल, धर्मशास्त्रियों के लिए बसंत की वर्षा और सुकर्मियों के लिए स्पष्ट मार्ग बताया है। यह पुस्तक ऐसी दवा है जिसका कोई दर्द नहीं होता, ऐसा प्रकाश है जिसमें तनिक भी अंधकार नहीं है, ऐसी रस्सी है जिसको थाम लेना विश्वस्त है, मज़बूत शरणस्थल है और जो इसकी अभिभावकता को स्वीकार करता है, प्रतिष्ठा का पात्र बनता है।

 

हज़रत अली के कथनानुसार पवित्र क़ुरआन में इस्लामी शिक्षाओं, शिष्टाचार और धर्म शास्त्र का अथाह सागर है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भाषण क्रमांक 176 में कहते हैं कि सचेत रहो, क़ुरआन रखने वाला कोई भी निर्धनता और असहायता का शिकार नहीं होता और कोई भी इसके बिना आवश्यकता मुक्त नहीं हो सकता। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के छोटे किन्तु अर्थपूर्ण बयान में पवित्र क़ुरआन संस्कृति से इतना समृद्ध है कि जो अपने अनुयाइयों को हर प्रकार की विचारधारा और पंथ से आवश्यकता मुक्त कर देता है जबकि अन्य विचारधाराएं और पुस्तकें मनुष्य की नैतिक व अध्यात्मिक आवश्यकताओं का उत्तर देने में समक्ष नहीं हैं।

 

पवित्र क़ुरआन एक मार्गदर्शक पुस्तक है जो मनुष्य को मज़बूत व सुदृढ़ क़ानून और सही धर्म की ओर मार्गदर्शन करती है। इस्लाम धर्म के क़ानून पवित्र क़ुरआन के माध्यम से लोगों तक पहुंचे हैं ताकि उनके कल्याणमयी जीवन की आपूर्ति करे। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं की मुख्य जड़ जो क़ानून, शिष्टाचार और आस्था का एक क्रम है, पवित्र क़ुरआन में मौजूद है। ईश्वर सूरए नह्ल की आयत संख्या 89 में अपने पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहता है कि और जिस दिन हम हर समुदाय में स्वयं उन्हीं में से एक व्यक्ति को उनके विरुद्ध गवाह बना कर उठाएंगे और (हे पैग़म्बर!) हम आपको उन लोगों पर गवाह बना कर लाए तथा आप पर (ऐसी) किताब उतारी जो हर वस्तु को स्पष्ट करके बयान करने वाली तथा मुसलमानों के लिए पथप्रदर्शक, दया व शुभसूचना है।

 

इसीलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन को मार्गदर्शन करने वाली पुस्तक बताते हैं और लोगों से इसका अनुसरण करने को कहते हैं। वे नहजुल बलाग़ा के भाषण संख्या 176 में कहते हैं कि सचेत रहो कि यह क़ुरआन ऐसा उपदेश देने वाला है जो कभी धोखा नहीं देता, ऐसा मार्गदर्शन करने वाला है जो कभी पथभ्रष्ट नहीं करता, ऐसा वक्ता है जो कभी झूठ नहीं बोलता। कोई भी व्यक्ति पवित्र क़ुरआन के साथ उठा बैठा नहीं किन्तु उसके मार्गदर्शन में वृद्धि हुई और उसकी पथभ्रष्टता और उसके दिल का अंधापन कम हुआ। सचेत रहो, जिसके पास क़ुरआन है वह आवश्यता मुक्त है और बिना क़ुरआन के उसे दूसरों की आवश्यकता होगी।

 

अपने दर्दों और कष्टों का उपचार क़ुरआन से प्राप्त करो और कठिनाइयों में क़ुरआन से सहायता मांगो। पवित्र क़ुरआन से मित्रता करके ईश्वर की ओर रुख़ करो और क़ुरआन के साथ रहकर लोगों से कुछ न मांगो क्योंकि ईश्वर से बंदों की निकटता के लिए क़ुरआन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है। जान लो कि पवित्र क़ुरआन की शिफ़ाअत स्वीकार है और उसकी बातों की पुष्टि होती है। प्रलय के दिन पवित्र क़ुरआन जिसकी शिफ़ाअत करेगा उसे क्षमा कर दिया जाएगा और जिसकी क़ुरआन शिकायत करेगा उसे सज़ा मिलेगी।

 

दूरदर्शी लोग सदैव परिचित व वास्तविकताओं की पहचान रखने वालों से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और उनकी बातों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं और यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह स्वयं को पथभ्रष्टता की ओर ले जाएगा। इस प्रकार से हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह कथन ध्यान योग्य है कि  पवित्र क़ुरआन ऐसा मार्गदर्शक और नसीहत करने वाला है जो सत्य और वास्तविकता के अतिरिक्त कोई और बात नहीं करता और जो भी इस पर भरोसा करता है वह कभी भी विफल नहीं होगा।

 

नहजुल बलाग़ा के भाषण संख्या 133 में हम पढ़ते हैं कि ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन, आप लोगों के मध्य ऐसा वक्ता है जो जिसकी ज़बान सत्य बोलने से कभी धीमी नहीं पड़ती और नहीं थकती और सदैव बोलता  रहता है, ऐसा घर है जिसके स्तंभ कभी नहीं गिरते और ऐसा मित्र है जिसके साथी कभी पराजित नहीं होते। इस भाषण के एक अन्य भाग में आया है कि यह पवित्र क़ुरआन है जिससे सत्य के मार्ग की खोज कर सकते हो और उससे बातें कर सकते हो और इसको माध्यम बना सकते हो, इसकी आयतों में ईश्वर को पहचानने में कोई मतभेद नहीं है और जो भी इसके साथ हो लिया, वह ईश्वर से कभी अलग नहीं हो सकता।

ईश्वर ने अपने अंतिम दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ललाहो अलैह व आलेही व सल्लम को एक ऐसे काल में भेजा जिसका समाज पूरी तक पथभ्रष्टता में डूबा हुआ था। इस प्रकार से पैग़म्बरे इस्लाम के भेजे जाने और पवित्र क़ुरआन के उतरने से लोगों का जीवन सदैव के लिए प्रकाशमयी हो गया ताकि मनुष्य अपने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में इससे सहायता ले। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम को उस समय भेजा जब पैग़म्बर मौजूद नहीं थे और लोग निश्चेतना की निंद्रा में ग्रस्त थे और मित्रता व मानवता के संबंध कमज़ोर हो गये थे।

पैग़म्बरे इस्लाम लोगों के मध्य आये और उन्होंने अपने पहले के पैग़म्बरों की पुस्तकों की पुष्टि की और लोगों के लिए प्रकाशमयी मार्गदर्शक बन गये ताकि सभी लोग उसका अनुसरण करें और यह पवित्र क़ुरआन का प्रकाश है। जान लो कि पवित्र क़ुरआन में भविष्य का ज्ञान और अतीत की बातें वर्णित हैं। क़ुरआन तुम्हारे दर्दों का निवारक और तुम्हारे सामाजिक व व्यक्तिगत मामलों को सुव्यवस्थित करने वाला है।

एक ऐसे समाज में जहां नैतिक बुराईयां विभिन्न रूपों में फैली हों, झूठ, ईर्ष्या, आरोप, दूसरों की बुराई करने जैसी बीमारियां लोगों में दिखाई पड़ती हैं। इस आधार पर इन बीमारियों के उपचार के लिए किसी दक्ष चिकित्सक के पास जाने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है और यह चिकित्सक पवित्र क़ुरआन और उसके उच्च शिष्टाचार के अतिरिक्त कोई और नहीं है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में भाषण संख्या 110 में कहते हैं कि क़ुरआन को सीखो कि बेहतरीन कथन है और उसे अच्छे ढंग से समझो के दिलों की बसंत है। उसके प्रकाश से बेहतरी चाहो कि बीमार दिलों का उपचार है और अच्छे ढंग से क़ुरआन की तिलावत करो कि उसकी कहानियां बहुत लाभप्रद हैं। पवित्र क़ुरआन ऐसी पुस्तक है जिसने सभी लोगों को संबोधित किया है और ईश्वरीय गंतव्य की ओर उनका मार्गदर्शन किया है।

पवित्र क़ुरआन स्वयं को हर वस्तु का बयान करता और प्रकाश बताता है, ऐसी पुस्तक जिसमें किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं है और इसकी एक आयत दूसरी आयतों की व्याख्या करती है, क्योंकि यह ईश्वरीय पुस्तक जो हर मामले की व्याख्याकर्ता है, स्वयं की भी व्याख्याकर्ता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भाषण संख्या 133 में कहते हैं कि यह ईश्वरीय पुस्तक है जिससे दूरदर्शिता प्राप्त होती है और सुनना और बोलना सिखाती है, ऐसी पुस्तक जिसका हर भाग दूसरे भाग को बयान करता है और हर भाग दूसरे भाग का गवाह है।

 

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