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Tuesday 23rd of April 2024
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हाजियों के नाम इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का संदेश

हाजियों के नाम इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का संदेश

 

بسم اللہ الرحمن الرحیم

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

उत्सुकता और सम्मान भरा सलाम हो आप भाग्यवानों पर जो क़ुरआनी निमंत्रण को स्वीकार करते हुए ईश्वरीय मेहमानी के लिए आगे बढ़े। पहली बात यह कि इस महान विभूति की क़द्र कीजिए और इस अनुदाहरणीय कर्तव्य के व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक और वैश्विक आयामों पर चिंतन के साथ, उसके लक्ष्यों से स्वयं को क़रीब करने का प्रयास कीजिए तथा कृपालु व सर्वसमर्थ मेज़बान से इस संदर्भ में मदद मागिए। मैं भी आपकी भावनाओं से अपनी भावनाओं तथा आपकी आवाज़ से अपनी आवाज़ मिलाकर क्षमाशील व उपकारी पालनहार की सेवा में विनती करता हूं कि अपनी विभूतियां आप पर संपूर्ण कर दे और जब हज की यात्रा का अवसर दिया है तो संपूर्ण हज अदा करने में भी सफलता प्रदान करे और फिर अपनी उदारता के साथ इसे स्वीकार करके आपको भरे हुए दामन के साथ सकुशल अपने अपने क्षेत्रों को लौटाए। इनशाअल्लाह

 

इन अर्थपूर्ण और बेमिसाल संस्कारों के अवसर पर आध्यात्मिक पवित्रता व आत्मनिर्माण के साथ ही जो हज का सर्वश्रेष्ठ और सब से बुनियादी फल है, इस्लामी जगत के मुद्दों पर ध्यान और इस्लामी राष्ट्र से संबंधित अत्याधिक महत्वपूर्ण और प्राथमिकता प्राप्त मामलों की गहरी दृष्टि और दीर्घकालिक विचारधारा के साथ समीक्षा, हाजियों के कर्तव्यों में सर्वोपरि है।

आज इन महत्वपूर्ण और प्राथमिकता प्राप्त मामलों में एक, मुसलमानों के मध्य एकता और इस्लामी समुदाय के विभिन्न भागों के बीच दूरी उत्पन्न करने वाली गुत्थियों को सुलझाना है।

 

हज, एकता व समरूपता का प्रतीक और बंधुत्व व आपसी सहयोग का केन्द्र है। हज में सबको संयुक्त बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित करने और मतभेदों को दूर करने का पाठ सीखना चाहिए। साम्राज्यवादी राजनीति के दूषित हाथों ने बहुत पहले से अपने घृणित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विवाद भड़काने को अपने एजेंडे में शामिल कर रखा है लेकिन आज जब इस्लामी जागरूकता की बरकत से, मुस्लिम राष्ट्र, साम्राज्यवादी मोर्चे तथा ज़ायोनिज़्म की शत्रुता को भलीभांति भांप चुके हैं और इसके मुक़ाबले में अपना रुख़ निर्धारित कर चुके हैं तो मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने की साज़िश और भी तेज़ हो गई है।

मक्कार शत्रु इस प्रयास में है कि मुसलमानों के बीच गृहयुद्ध की आग भड़काकर, संघर्ष और प्रतिरोध की उनकी भावना को ग़लत दिशा में मोड़ दे और ज़ायोनी सरकार तथा साम्राज्यवाद के पिट्ठुओं के लिए जो वास्तव में शत्रु हैं, सुरक्षित राहदारी उपलब्ध करा दे। पश्चिमी एशिया के देशों में आतंकी तकफ़ीरी संगठनों और इसी प्रकार के अन्य गुटों को अस्तित्व में लाना इसी धूर्त रणनीति का परिणाम है।

यह हम सबके लिए चेतावनी है कि हम मुसलमानों के मध्य एकता के विषय को आज अपने राष्ट्रीय व वैश्विक कर्तव्यों में सर्वोपरि रखें।

दूसरा महत्वपूर्ण मामला फ़िलिस्तीन का मुद्दा है। अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार के गठन की शुरूआत को 65 साल का समय बीत जाने, इस महत्वपूर्ण मामले में विभिन्न प्रकार के उतार-चढ़ाव आने और विशेष रूप से हालिया वर्षों में रक्तरंजित घटनाएं घटने के बाद दो तथ्य सबके सामने स्पष्ट हो गए।

 

एक तो यह कि ज़ायोनी शासन और उसके अपराधी समर्थक, निर्दयता, दरिंदगी और मानवीय व नैतिक नियमों तथा सिद्धांतों को कुचलने और उनकी अवहेलना करने में किसी सीमा पर ठहर जाने के पक्ष में नहीं हैं। अपराध, नस्ली सफ़ाया, विध्वंस, बच्चों, महिलाओं और बेसहारा लोगों के जनंसहार और हर अत्याचार व अतिक्रमण को, जो वह कर सकते हैं, अपने लिए वैध और जायज़ समझते हैं तथा इस पर गर्व भी करते हैं। हालिया 50 दिवसीय ग़ज़्ज़ा युद्ध के हृदय विदारक दृष्य, इतिहास में याद रखे जाने वाले इन अपराधों के नवीन उदाहरण हैं जो बीती अर्ध शताब्दी के दौरान बार बार दोहराए जाते रहे हैं।

 

दूसरा तथ्य यह है कि यह निर्दयता और यह मानव त्रासदी, ज़ायोनी शासन के नेताओं और उनके समर्थकों के स्वार्थों को पूरी न कर सकी। दुष्ट राजनेता, ज़ायोनी शासन के लिए शक्ति और स्थाइत्व की जो मूर्खतापूर्ण मनोकामना अपने दिल में पाल रहे हैं, उसके विपरीत यह सरकार दिन प्रतिदिन कमज़ोरी और विनाश के क़रीब होती जा रही है। ज़ायोनी सरकार की ओर से मैदान में झोंक दी जाने वाली सारी शक्ति के मुक़ाबले में नाकाबंदी में घिरे हुए बेसहारा ग़ज़्ज़ा का 50 दिवसीय प्रतिरोध और अंततः इस शासन की विफलता और प्रतिरोधक मोर्चे के सामने उसका झुक जाना, इस कमज़ोरी, असमर्थता और आधारहीनता का स्पष्ट चिन्ह है।

इसका यह अर्थ है कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को हमेशा से ज़्यादा आशावान हो जाना चाहिए, जेहादे इस्लामी और हमास के संघर्षकर्ताओं को चाहिए कि अपने संकल्प और हौसले तथा संघर्ष और लगन में और भी तेज़ी लाएं, पश्चिमी तट का क्षेत्र अपनी पुरानी गौरवपूर्ण शैली को और भी शक्ति व मज़बूती के साथ जारी रखे, मुसलमान राष्ट्र, अपनी सरकारों से फ़िलिस्तीन की सही अर्थों में पूरी गंभीरता के साथ सहयता करने की मांग करें और मुसलमान सरकारें पूरी निष्ठा के साथ इस रास्ते में क़दम रखें।

 

तीसरा महत्वपूर्ण और प्राथमिकता प्राप्त मुद्दा विवेकपूर्ण दृष्टि का है जिसे इस्लामी जगत के निष्ठावान कार्यकर्ता, विशुद्ध मोहम्मदी इस्लाम और अमरीकी इस्लाम के अंतर को समझने के लिए प्रयोग करें और इन दोनों को गडमड न करने के संबंध में स्वयं भी सतर्क रहें और दूसरों को भी सावधान करें। सबसे पहले हमारे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इन दोनों के अंतर को स्पष्ट करने पर ध्यान दिया और इसे इस्लामी जगत की राजनैतिक बहस में शामिल किया। विशुद्ध इस्लाम, पवित्रता और अध्यात्म का इस्लाम, सदाचारिता और जन प्रभुत्व का इस्लाम, मुसलमानों को नास्तिकों के विरुद्ध कठोर और आपस में दयावान रहने का पाठ देने वाला इस्लाम है। अमरीकी इस्लाम, दूसरों की ग़ुलामी को इस्लामी लिबादा पहना देने वाला और मुस्लिम समुदाय से शत्रुता बरतने वाला इस्लाम है। जो इस्लाम मुसलमानों के बीच मतभेद की आग भड़काए, ईश्वर के वादों पर भरोसा करने के बजाए शत्रुओं के वादों पर भरोसा करे, ज़ायोनिज़्म और साम्राज्यवाद का मुक़ाबला करने के बजाए मुसलमान भाइयों से संघर्षरत हो, अपने ही राष्ट्र या अन्य राष्ट्रों के विरुद्ध अमरीका के साम्राज्यवादी मोर्चे से हाथ मिला ले, वह इस्लाम नहीं, ऐसी ख़तरनाक और घातक मुनाफ़ेक़त है जिसका हर सच्चे मुसलमान को मुक़ाबला करना चाहिए।

 

सूझबूझ और गहरे चिंतन के साथ लिया जाने वाला जायज़ा, इस्लामी जगत के इन तथ्यों और मामलों को सत्य के हर खोजी के लिए स्पष्ट कर देता है और किसी भी संदेह और असमंजस की गुंजाइश न रखते हुए कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण कर देता है।

हज, उसके संस्कार तथा उसकी उपासनाएं, यह सूझबूझ प्राप्त करने का स्वर्णिम अवसर हैं। आशा है कि आप भाग्यशाली हाजी इस ईश्वरीय उपकार से भरपूर ढंग से लाभान्वित होंगे।

आप सबको ईश्वर के हवाले करता हूं और अल्लाह की सेवा में आपके प्रयासों के क़ुबूल कर लिए जाने की दुआ करता हूं।

वस्सलामो अलैकुल व रहमतुल्लाही व बरकातोहू

सैयद अली ख़ामेनई

5 ज़िलहिज्जा 1435 हिजरी क़मरी, 8 मेहर 1393 हिजरी शम्सी (30 सितम्बर 2014 ईसवी)          

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