Hindi
Wednesday 24th of April 2024
0
نفر 0

बक़रा-3 आयत नं 7 से आयत नं 9 तक

अल्लाह ने उनके हृदय तथा कानों पर मुहर लगा दी है, उनकी आंखों पर पर्दा डाल दिया है तथा उनके लिए एक बड़ा दण्ड निर्धारित किया है। .....

बक़रा-3 आयत नं 7 से आयत नं 9 तक

सूरए बक़रह की 7वीं आयत इस प्रकार हैः
خَتَمَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَعَلَى سَمْعِهِمْ وَعَلَى أَبْصَارِهِمْ غِشَاوَةٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ (7)
अल्लाह ने उनके हृदय तथा कानों पर मुहर लगा दी है, उनकी आंखों पर पर्दा डाल दिया है तथा उनके लिए एक बड़ा दण्ड निर्धारित किया है। (2:7)
यद्यपि काफ़िरों के पास बुद्धि, आंख तथा कान आदि होते हैं परन्तु उनके घृणित कार्यों और उनके हठ ने उनके सामने पर्दा डाल दिया है और वे वास्तविकता को समझने, देखने तथा सुनने की योग्यता खो चुके हैं। यह तो उनके लिए सांसारिक जीवन का दण्ड है परन्तु परलोक में बहुत ही बड़ा दण्ड उनकी प्रतीक्षा में है।
यहां पर यह प्रश्न उठता है कि यदि ईश्वर ने काफ़िरों के हृदय, आंख व कान पर ताला डाल दिया है तो उनका अपराध क्या है? क्योंकि वे अपने कुफ़्र के संबन्ध में विवश थे। इस प्रश्न का उत्तर स्वयं क़ुरआन ने दिया है। सूरए मोमिन की ३५वीं आयत में आया हैः
अल्लाह घमण्डी तथा अत्याचारी लोगों के हृदय पर मुहर लगा देता है।
इसके अतिरिक्त सूरए निसा की १५५वीं आयत में हम पढ़ते हैं- अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उनके दिलों पर ताले लगा दिये हैं।
वास्तव में यह आयत मनुष्य के संबन्ध में अल्लाह की प्रथा व परंपरा को दर्शाती है कि यदि वह सत्य के मुक़ाबले में घमण्ड या हठ से काम लेगा तो उसकी पहचान की शक्ति समाप्त हो जाएगी और उसे हर वस्तु उल्टी ही दिखाई देगी तथा वह लोक-परलोक में घाटा उठाएगा।
इस आयत से हमने जो बातें सीखीं वे इस प्रकार हैं।
जो सत्य को समझने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं करेगा, ईश्वर उसके हृदय, कान और आंख पर ताला लगा देगा जो कि ईश्वर का दण्ड है।
पशुओं और मनुष्यों के बीच केवल बुद्धि का ही अंतर है और कुफ़्र के कारण यह अन्तर भी समाप्त हो जाएगा।
सूरए ब़क़रह की 8वीं आयत इस प्रकार हैः
وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ آَمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الْآَخِرِ وَمَا هُمْ بِمُؤْمِنِينَ (8)
लोगों का एक गुट कहता है कि हम ईश्वर तथा प्रलय पर ईमान ले आए हैं जबकि वे ईमान नहीं लाए हैं। (2:8)
क़ुरआन जो कि ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन की किताब है हमें ईमान वालों, काफ़िरों तथा मुनाफ़िक़ों अर्थात मिथ्याचारियों की विशेषताएं बताती है ताकि हम स्वयं को पहचानें कि हम किस गुट में हैं और अन्य लोगों को भी पहचान सकें तथा उनके साथ उचित व्यवहार कर सकें।
सूरए बक़रह के आरंभ से यहां तक चार आयतों में ईमान वालों का और दो आयतों में काफ़िरों का परिचय कराया गया है। इस आयत में और इसके बाद वाली पांच आयतों में तीसरे गुट अर्थात मिथ्याचारियों का परिचय कराया जा रहा है। इस गुट में न तो पहले गुट की सी पवित्रता तथा उज्जवलता है और न ही दूसरे गुट की भांति खुल्लम-खुल्ला इन्कार व उपेक्षा। इस प्रकार के लोगों के मन में न तो ईमान है और न ही ज़बान पर कुफ़्र है। यह लोग डरपोक मुनाफ़िक़ या मिथ्याचारी हैं जो अपने आंतरिक कुफ़्र को छिपा कर दिखावे के लिए इस्लाम की घोषणा करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वे आलेही वसल्लम ने मक्के से मदीने हिजरत अर्थात पलायन किया और अनेकेश्वरवादियों को मुसलमानों के मुक़ाबले में भारी पराजय हुई तो मक्के और मदीने के कुछ लोगों ने दिल से इस्लाम पर विश्वास न होने के बावजूद अपनी जान या संपत्ति की सुरक्षा या किसी पद की प्राप्ति के लिए दिखावे के तौर पर इस्लाम लाने की घोषणा की और वे मुसलमानों में घुलमिल गए। स्पष्ट सी बात है कि यह लोग डरपोक थे और इनमें इतना साहस नहीं था कि वे अन्य काफ़िरों की भांति अपने कुफ़्र पर खुल्लम-खुल्ला डटे रहते।
बहरहाल मिथ्याचार और रंग बदलना ऐसी समस्या है जिसका सभी क्रांतियों एवं सामाजिक परिवर्तनों को सामना करना पड़ता है इसीलिए हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि जो कोई अपने आप को ईमान वाला बताए उसके दिल में ईमान अवश्य होगा। ऐसे लोग बहुत हैं जो ऊपर से इस्लाम पर विश्वास दिखाते हैं परन्तु भीतर से उसकी जड़ें काटते हैं।
इस आयत से हमनें जो बातें सीखीं वे यह हैं।
ईमान एक आंतरिक वस्तु है न कि ज़बानी अतः हमें केवल लोगों की बातों से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए।
सूरए बक़रह की 9वीं आयत इस प्रकार हैः
يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّا أَنْفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ (9)
वे लोग अल्लाह और ईमान वालों को धोखा देते हैं, जबकि वास्तव में वे अपने अतिरिक्त किसी को भी धोखा नहीं देते और यह बात उनकी समझ में नहीं आती। (2:9)
मुनाफ़िक यह सोचते हैं कि वे बहुत चतुर हैं और ईमान का ढोंग रचाकर ईश्वर को धोखा दे रहे हैं। वे पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वे आलेही वसल्लम और मुसलमानों को धोखा देकर उचित समय पर इस्लाम पर प्रहार करना चाहते हैं जबकि ईश्वर उनके हृदय की बातों से परिचित है और उनकी मिथ्या को भलिभांति जानता है। वह उचित अवसर पर उनके कुरूप चेहरे पर पड़े हुए पर्दे को उठा देता है।
यदि रोगी अपने चिकित्सक से झूठ बोले कि मैंने दवा खाई है तो वह अपनी सोच के अनुसार चिकित्सक को धोखा देता है जबकि वास्तव में उसने स्वयं को धोखा दिया है। इसी प्रकार से मुनाफ़िक़ सोचते हैं कि उन्होंने ईश्वर को धोखा दिया है किंतु वास्तव में वे स्वयं धोखे में हैं।
इस आयत से हमने जो बातें सीखीं वे इस प्रकार हैं-
मुनाफ़िक़ अर्थात मिथ्याचारी, धोखेबाज़ होता है अतः हमें उसकी ओर से सदैव ही सचेत रहना चाहिए।
हमें स्वयं भी दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए क्योंकि धोखे के परिणाम स्वयं धोखा देने वाले तक अवश्य वापस आते हैं।
इस्लाम भी मुनाफ़िक़ के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जैसाकि मुनाफ़िक़ इस्लाम से करता है। वह दिखावे के लिए इस्लाम लाता है और इस्लाम भी उसे दिखावे का मुसलमान समझता है।
मुनाफ़िक़ के हृदय में ईमान नहीं होता इसीलिए प्रलय में ईश्वर उसे भी काफ़िर के ही समान दण्ड देगा।
मुनाफ़िक़ स्वयं को चतुर समझता है जबकि वह अत्यन्त मूर्ख होता है क्योंकि वह यह नहीं समझता कि ईश्वर उसकी हर बात से अवगत है। (एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)

 


source : www.abna.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

शरीर की रक्षा प्रणाली 1
इस्लाम में औरत का महत्व।
इमाम अली (अ) ने किसी बुत के सामने ...
हदीसे किसा
नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के ...
दुआ फरज
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...
सम्मोहन एवं बुद्धिमत्ता
मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़
नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के ...

 
user comment