Hindi
Friday 29th of March 2024
0
نفر 0

पवित्र रमज़ान भाग-4

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है कि जब कभी कोई अनाथ रोता है तो आकाश हिल जाता है और ईश्वर कहता है कि किसने मेरे दास और माता पिता को खो देने वाले बच्चे को रुलाया है? मुझे अपने सम्मान और तेज की सौगंध कि जो कोई इसे शांत करेगा मैं उसके लिए स्वर्ग को अनिवार्य कर दूंगा।
सुंदर समाज ऐसा समाज है जिसमें लोगों के संबंध आपस में प्रेम, सदभावना और सदगुणों पर आधारित हों। ऐसे समाज में लोग एक दूसरे के निकट होते हैं और समस्याओं के समाधान और कठथनाइयों को दूर करने में आपस में सहयोग करते हैं। समाज में भाईचारे, उपकार, क्षमा,दान और ऐसे ही अनेक सदगुण फलते फूलते हैं। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर २६५ दो सौ पैंसठ में ईश्वर दान दक्षिणा के संबंध में बड़ी ही सुन्दर उपमा देता है। वह कहता है, जो लोग ईश्वर की प्रसन्नता और अपने आप को सुदढ़ बनाने के लिए दान दक्षिणा करत हैं उनकी उपमा उस बाग़ की भांति है जो किसी ऊंचाम पर स्थित हो और तेज़ वर्षा आकर उसकी फसल को दोगुना बना दे और यदि तेज़ वर्षा न आए तो साधारण वर्षा ही पर्याप्त हो जाए।
सैद्धांतिक रुप से हर समाज को भलाई और परोपकार की आवश्यकता होती है। इस बात का इतना महत्व है कि क़ुरआने मजीद के सूरए नहल की आयत नंबर ९० में ईश्वर ने भलाई को न्याय के साथ रखा है और कहा है कि ईश्वर तुम्हें न्याय, भलाई और अपने परिजनों के साथ क्षमा से काम लेने का निमंत्रण देता है और बुरे व अप्रिय कर्मों तथा अत्याचार से रोकता है, ईश्वर तुम्हें उपदेश देता है कि शायद तुम सीख प्राप्त करो।
इस प्रकार से हर समाज को न्याय की भी आवश्यकता होती है और भले कर्मों की भी। यदि किसी समाज में न्याय न हो तो उसका आधार डगमगाने लगता है और यदि भले कर्म न हों तो समाज का वातावरण शुष्क एवं बंजर हो जाता है।
एक दिन हज़रत ईसा मसीह अलेहिस्सलाम एक क़ब्र के निकट से गुज़रे, जिसमें दफ़न किया गया व्यक्ति ईश्वरीय दण्ड में ग्रस्त था। एक वर्ष के पश्चात जब वे उसी स्थान स गुज़रे तो उन्होंने देखा कि उस व्यक्ति को दण्डित क तदण्डित नहीं किया जा रहा है। उन्होंने आशचर्य से पूछ। प्रभुवर! पिछले वर्ष यह व्यक्ति दण्ड में ग्रस्त था किंतु अब इसका दण्ड समाप्त कर दिया गया है। इसका कार्ण क्या है? ईश्वर ने अपने विशेष संदेश द्वारा उन्हें उत्तर दिया। हे ईसा! इस व्यक्ति का एक भला पुत्र है जिसने इस वर्ष लोगों के आने जाने के एक मार्ग का पुननिर्मार्ण कराया है और एक अनाथ की अभिभावकता स्वीकार की है, उस के इसी भले कर्म के कार्ण उसके पिता के दण्ड को क्षमा कर दिया गया है।
इस्लाम में हर कर्म की सीमा और हर परंपरा के विशेष संस्कार होते हैं। लोगों को खाना खिलाने और दान दक्षिणा के संबंध में जो सबसे महत्वपूर्ण बात दृष्टिणत रहनी चाहिए वह यह है कि मेज़बान की भावना ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और उसे प्रसन्न करने के अतिरिक्त कुछ और नहीं होनी चाहिए। इस बात का सबसे स्पष्ट परिणाम अहं, दिखावे और घमण्ड से बचना है। एक दूसरी बात यह कि मेज़बान को निमंत्रण देते समय अपने ग़रीब नातेदारों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसी प्रकार जो व्यक्ति दान दक्षिणा कर रहा है उसे वही वस्तु दान करनी चाहिए जो उसे स्वंय प्रिय हो। इस प्रकार का कर्म समाज में दरिद्रता का उन्मूलन करने के साथ ही स्वंय व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं आत्मिक प्रगति व परिपूर्णता पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव डालता है।
यही कारण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं। नि:संदेह तुम्हें दान दक्षिणा के परिणाम की उस व्यक्ति से अधिक आवश्यकता है जो तुम से दान ले रहा है। इस कर्म से तुम्हें होने वाला लाभ उस व्यक्ति के लाभ से कहीं अधिक है जिसे तुमने दान दिया है।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)


source : www.abna.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

उसूले दीन में तक़लीद करना सही नही ...
** 24 ज़िलहिज्ज - ईद मुबाहिला **
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
गुरूवार रात्रि 3
अक़्ल और अख़लाक
इमाम जाफ़र सादिक़ अ. का जीवन परिचय
जौशन सग़ीर का तर्जमा
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके ...
बदकारी
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...

 
user comment