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Friday 19th of April 2024
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रमज़ानुल मुबारक-12

 रमज़ानुल मुबारक-12

रमज़ान वह महीना है जिसमें ख़ुदा वन्दे आलम ने तुम पर रोज़े वाजिब किए हैं इसलिए जो भी इसमें ईमान और ख़ुदा से इनाम पाने की उम्मीद से रोज़ा रखे तो ऐसे गुनाहों से मुक्त हो जाएगा जैसे माँ के पेट से बिना गुनाह के पैदा हुआ था।

रमज़ानुल मुबारक-12

قال رسول الله صلى الله علیه و آله: شَهرُ رَمَضانَ شَهرٌ فَرَضَ الله ُ عز و جل عَلَیكُم صِیامَهُ؛ فَمَن صامَهُ إیمانا وَاحتِسابا خَرَجَ مِن ذُنوبِهِ كَیَومَ وَلَدَتهُ اُمُّهُ

रमज़ान वह महीना है जिसमें ख़ुदा वन्दे आलम ने तुम पर रोज़े वाजिब किए हैं इसलिए जो भी इसमें ईमान और ख़ुदा से इनाम पाने की उम्मीद से रोज़ा रखे तो ऐसे गुनाहों से मुक्त हो जाएगा जैसे माँ के पेट से बिना गुनाह के पैदा हुआ था।
रमज़ान का पाक महीना बस आधा होने वाला है, अल्लाह ने रमज़ान को अपने बंदों के लिए आतिथ्य व मेज़बानी का ख़ास अवसर कहा है। इसी रमज़ान के महीने में कुछ रातें बहुत ज़्यादा महत्व रखती हैं जिन्हें शबे क़द्र अर्थात, क़द्र की रातें कहा जाता है।
क़द्र की रात या शबे क़द्र का महत्व क़ुरआने मजीद ने बताते हुए कहा है कि हम ने उसे क़द्र की रात में उतारा और तुम्हें क्या पता कि क़द्र की रात क्या है, क़द्र की रात एक हज़ार महीनों से बेहतर है।
कुरआने मजीद में रमज़ान की एक रात को क़द्र की रात कहा गया है और उसे एक हज़ार महीनों से बेहतर कहा गया है। इसके साथ ही यह भी कह दिया गया है कि तुम्हें क्या पता कि क़द्र की रात क्या है? वास्तव में इस तरह से कुरआने मजीद ने इस रात के बारे में ज़्यादा जानने के लिए इंसान के अंदर जिज्ञासा जगाई है।
क़द्र अरबी शब्द है जिसका अर्थ मात्रा होता है। इस मात्रा में लंबाई चौड़ाई व्यास आदि जैसी वह सब चीज़ें शामिल हैं जिससे किसी चीज़ की मात्रा का पता चलता हो। इस तरह से क़द्र की रात का एक अर्थ, मात्रा की रात हो सकता है।
क़ुरआने मजीद में अल्लाह ने कहा है कि हमने हर चीज़ की मात्रा में रचना की है। अर्थात इस सृष्टि में जो कुछ भी है सब की एक अपनी मात्रा है। चाहे वह ठोस पदार्थ हो तरल हो या फिर गैस के रूप में और इसी तरह वह चीज़ें भी जो भौतिक नहीं हैं जैसे बुद्धि व विचार आदि। अल्लाह ने हर चीज़ की एक मात्रा निर्धारित की है और उसी रूप में उसकी रचना की है।
अल्लाह ही इस सृष्टि का रचयता है इस लिए एक ख़ास मात्रा व रूप व विशेषता के साथ रचना करने के बाद भी वह अपनी रचना में तब्दीली या उसकी मात्रा में बदलाव कर सकता है और अल्लाह द्वारा इसी बदलाव की प्रक्रिया को तक़दीर कहते हैं। तक़दीर अर्थात अल्लाह द्वारा क़द्र या मात्रा का निर्धारण अर्थात भाग्य या तक़दीर लिखना।
इस्लामी विचारधारा के अनुसार क़द्र की रात जो हर साल रमज़ान के महीने में आती है वही रात है जब अल्लाह द्वारा सृष्टि की हर चीज़ की मात्रा का निर्धारण या उसमें बदलाव की प्रक्रिया होती है। इस तरह हम समझ सकते हैं कि इस्लामी हदीसों में क्यों इस रात को बहुत ज़्यादा महत्व दिया गया है और क्यों क़ुरआने मजीद ने इस रात को एक हज़ार महीनों से बेहतर कहा है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम क़द्र का मतलब बताते हुए कहते हैं कि इस रात आने वाले साल की सभी घटनाओं से अल्लाह के मार्गदर्शक को अवगत कराया जाता है और यह हुक्म दिया जाता है कि उसे अपने कामों को कैसे करना है और लोगों के बारे में कैसा व्यवहार अपनाना है।
जहां तक यह कहा गया है कि इस रात लोगों के भाग्य और प्रक्रियाओं का निर्धारण होता है तो इसका मतलब कदापि यह नहीं है कि क़िस्मत के आगे इंसान असमर्थ है वास्तव में यह जो कहा जाता है कि इंसान अपना भाग्य अपने हाथ से लिखता है उसमें काफी हद तक सच्चाई है क्योंकि अल्लाह की किसी से कोई नातेदारी नहीं है और अगर रमज़ान में क़द्र की ख़ास रात में वह किसी इंसान की क़िस्मत लिखता है तो निश्चित रूप में उसमें उस इंसान के अपने कामों की बहुत बड़ी भूमिका होती है।
यहां पर हम इस पूरी प्रक्रिया को इम्तेहान के बाद कापियां जांचने या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद जजों द्वारा फ़ैसला सुनाए जाने की कल्पना कर सकते हैं।
यह सही है कि फेल होने वाले छात्रों के बारे में हम यह कह सकते हैं कि कापियां जांचने वाले उस्ताद ने उसे अगली क्लास में जाने से रोक दिया या जज ने प्रतियोगी को पहला स्थान दे दिया लेकिन हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगली क्लास में जाने या न जाने का फैसला इम्तेहान के प्रश्नों का जवाब देते समय ख़ुद स्टूडेंट ने ही कर दिया और पहली दूसरी या तीसरी श्रेणी का फ़ैसला ख़ुद प्रतियोगी ने कर दिया था उस्ताद और जज ने तो उसके किये की पुष्टि करके उसे औपचारिकता दी है।
यहां पर यह सवाल उठता है कि अगर ऐसा है तो इसका मतलब यह होगा कि इस ख़ास रात में जो मात्रा व भाग्य का निर्धारण होता है या दूसरे शब्दों में जो तक़दीर लिखी जाती है वह इंसान के अपने कामों के आधार पर होती है तो फिर इस रात में दुआ और इबादत पर इतना बल क्यों दिया गया है और क्यों इसे हज़ार महीनों से बेहतर कहा है जबकि इस रात वही लिखा जाने वाला है जो ख़ुद इंसान ने किया है।
यहां पर हम एक बार फिर उस प्रतियोगी की कल्पना कर सकते हैं जो प्रतियोगिता ख़त्म होने और फ़ैसला सुनाए जाने से पहले अपने अल्लाह से दुआ करता है या इम्तेहान की कापियां जांचे जाते समय उस स्टूडेंट की कल्पना कर सकते हैं जो दुआ करता है। अगरचे कांपिया जांचने वाला और जज, स्टूडेंट या प्रतियोगी के क्रियाकलाप के आगे मजबूर होता है और चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर सकता लेकिन जो थोड़ा बहुत भी वह कर सकता है उससे भी स्टूडेंट और प्रतियोगी को काफी उम्मीद होती है क्यों एक अंक से भी पास या फेल अथवा पहली व दूसरी श्रेणी का बहुत बड़ा अंतर हो सकता है।
क़द्र की रात अल्लाह से बहुत ज़्यादा दुआ और इबादत की सिफारिश की गई है क्योंकि वह भाग्य विधाता है उस्ताद या जज की तरह मजबूर नहीं है हो सकता है अपने बंदे का गिड़गिड़ाना देख कर उसे दया आ जाए और वह इंसान के भाग्य में वह सब लिख दे जिसकी अपने कामों के अनुसार उसमें योग्यता न हो। क्योंकि अल्लाह हम सब का मालिक है और हम सब को मालूम है कि मालिक हमेशा मज़दूरी ही नहीं देता कभी कभी इनाम भी दे देता है। क़द्र की रात अल्लाह से इनाम के लिए गिड़गिड़ाने की रात है।
इस रात का एक महत्व यह भी है कि क़ुरआने मजीद इसी रात उतारा गया है। कुरआने मजीद वास्तव में पूरी मानवता के लिए कल्याण व मार्गदर्शन का ऐसा संग्रह है जिसे अल्लाह ने ख़ास रूप से अपनी रचनाओं के लिए बनाया है और इसे उपहार स्वरूप अपनी रचनाओं को प्रदान किया है और उपहार उसी समय दिया जाता है जब उपहार देने या उपहार लेने वाले के लिए कोई ख़ास अवसर या महत्वपूर्ण दिन हो। अल्लाह ने रमज़ान की इस ख़ास रात को इस अमू्ल्य व अतुल्य उपहार के लिए चुना इस लिए निश्चित रूप से यह रात उसकी निगाह में महत्वपूर्ण रही होगी और चूंकि हमें इसी रात महान रचयता की ओर से एसा उपहार मिला इस लिए यह रात हमारे लिए भी बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
शबे क़द्र अल्लाह के पैग़म्बर के हदीसों के अनुसार रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं या तेइसवीं रात हो सकती है। पहला संभावना यही है कि २३वीं की रात शबे क़द्र है लेकिन मुसलमान तीनों रातों को ख़ास रूप से इबादत और दुआ करते हैं ताकि इस सुनहरे अवसर को हाथ से जाने न दे और अल्लाह की रहमत के पात्र बन सके। वास्तव में इस तरह के सभी अवसर भी अल्लाह की कृपा है जो किसी भी दशा में अपने बंदों को ख़ुद से दूर नहीं जाने देना चाहता। उसे अपने बंदों की दुआ पसन्द है और वह चाहता है कि उसके बंदे उससे मांगें, उससे दुआ करें। क्योंकि किसी इंसान से मांगना निश्चित रूप से बुरा है लेकिन अल्लाह से मांगना और कुछ मांगने के लिए उसका ज़िक्र करना बुरा नहीं है क्योंकि हाथ फैलाने और मांगने का मतलब ही यही होता है कि तू बड़ा है मैं तुच्छ और छोटा, मेरी दुआ सुन ले ऐ परवरदिगार!

 


source : www.alimamali.com
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