Hindi
Wednesday 24th of April 2024
0
نفر 0

पवित्र रमज़ान-18

पवित्र रमज़ान-18

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस दुआ में एक स्थान पर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैः हे पालनहार! इस स्थिति में कि मेरा मार्गदर्शन तेरे लिए संभव है, पथभ्रष्टता की ओर मेरा झुकाव न हो। अरबी भाषा के ज़लाल शब्द का अर्थ होता है सीधे मार्ग से हटना और इसका विलोम मार्गदर्शन है। मार्गदर्शन का अर्थ होता है कृपा के साथ पथप्रदर्शन। मनुष्य को ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन मिले तो इसके ज़रूरी है कि वह स्वंय को मार्गदर्शन की प्राप्ति के लिए ज़रूरी शर्त पूरी करे और इसी पृष्ठिभूमि तय्यार करे। उसके सच्चे मन से मार्गदर्शन की प्राप्ति के लिए गंभीर हो बिलकुल उसी प्रकार जैसे किसी रोगी के उपचार की पहली शर्त यह है कि वह अपना उपचार करवाने के लिए गंभीर हो। जो लोग ईश्वर की कृपा से सही मार्ग की प्राप्ति चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि इस दिशा में दृढ़ संकल्प अपनाएं तो उन पर ईश्वर की कृपा अवश्य होगी। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के अंकबूत नामक सूरे में ईश्वर कह रहा हैः जो लोग हमारे मार्ग में निष्ठा के साथ संघर्ष व प्रयास करते हैं तो निश्चित रूप से हम उनका मार्गदर्शन करेंगे और ईश्वर सदकर्मियों के साथ है।  

जो चीज़ ईश्वर की ओर मार्गदर्शन के लिए मनुष्य के सामने द्वार खोलती है और उसकी मुक्ति की भूमि समतल करती है वह बुद्धि का प्रयोग है। यदि ईश्वरीय दूत आएं और ईश्वरीय आदेशों को पहुंचाएं किन्तु मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग न करे तो उसे ईश्वरीय मार्गदर्शन प्राप्त न होगा। जैसा कि इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं कि बहुत से ईश्वरीय दूतों के संदेशों एवं उनके चमत्कारों के देखने के बाद भी पथभ्रष्टता पर बाक़ी रहे। दूसरा चरण यह है कि सत्य को जानने और ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण की वास्तविकता को समझने के बाद उसका अपनी ज़बान से इक़रार करे। किन्तु इस काम के लिए इच्छाओं से बड़ा संघर्ष करने की ज़रूरत होती है। क्योंकि बहुत से लोग सत्य को समझते हैं किन्तु आत्ममुग्धता, घमंड, जातीय व पारिवारिक भेदभाव, शत्रुता, हठधर्मी से ग्रस्त होने के कारण वास्तविकता का इक़रार करने और उसे कहने का साहस नहीं कर पाते। उदाहरण स्वरूप जो लोग हज़रत मूसा के चमत्कार को देख कर इस बात से संतुष्ट हो गए कि वह ईश्वरीय दूत हैं किन्तु अपनी ज़बान से इस बात को कहने के लिए तय्यार न हुए। इसलिए जो व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के ईश्वरीय दूत होने को समझ कर उन पर ईमान ले आए और अपनी इच्छाओं से संघर्ष करे तो ऐसा व्यक्ति मुसलमानों की पंक्ति में शामिल है और ऐसा व्यक्ति को यह कहने का अधिकार हासिल हैः हे पालनहार! अपनी कृपा का इस प्रकार पात्र बना ले कि सीधे मार्ग से तनिक भी न डिगूं और असत्य के मार्ग पर क़दम न बढ़ाऊं। संक्षेप में यह कि जो व्यक्ति जिस मार्ग पर क़दम बढ़ाता है या जिस काम में वह व्यस्त है यदि उसमें ईश्वर की कृपा शामिल हो जाए तो वह ख़तरे व गुमराही से बच जाएगा और अंततः हर वह काम करेगा जिसमें उसका सौभाग्य होगा।

इस भाग में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के जीवन की एक कहानी पेश कर रहे हैं। एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कुछ व्यापारियों के साथ यात्रा पर थे। मार्ग में उन्हें इस बात की सूचना दी गयी कि चोर एक स्थान  पर कारवां का माल लूटने के लिए इकट्ठा हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ चलने वाले इस ख़बर से इतना भयभीत थे कि उनका भय चेहरों से स्पष्ट था। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने साथ चलने वालों से पूछाः तुम लोग क्यो डर रहे हो? साथ चलने वालों ने कहाः हमारे पास व्यापारिक सामान है। इस बात से डर रहे हैं कि कहीं हाथ से चला न जाए अगर आपकी अनुमति हो इसे आपके हवाले कर दें कि चोरों को जब यह पता चलेगा कि यह माल आपका है तो शायद न लूटें। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः यह बात तुम कैसे कह सकते हो? वे शायद मेरा माल लूटना चाहते हों तो इस स्थिति में तुम्हारी संपत्ति यूं ही बर्बाद हो जाएगी। कारवां वालों ने कहाः तो हमें क्या करना चाहिए? इस बारे में आप क्या कहेंगे कि हम अपना माल ज़मीन में छिपा दें। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः इस काम से माल के अधिक बर्बाद हो सकता है क्योंकि संभव है किसी को इस बारे में पता चल जाए और वह माल निकाल ले जाए या लौटते समय उस स्थान को न ढूंढ पाओ जहां माल छिपाया है। कारवां वालों ने कहाः तो फिर क्या करें? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः अपने माल को उसके हवाले करो जो उसे हर ख़तरे से सुरक्षित रखे और हर प्रकार के माल में वृद्धि करता है और उसे उस समय लौटाएगा जब तुम्हें उसकी ज़रूरत होगी। कारवां वालों ने आश्चर्य से पूछाः वह व्यक्ति कौन है? इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः सृष्टि का पालरहार! ईश्वर

कारवां वालों ने पूछाः किस प्रकार ईश्वर के हवाले करें? इमाम ने कहाः निर्धनों व वंचितों को दान दो। कारवां वालों ने कहाः यहां पर तो कोई निर्धन व वंचित नहीं है कि उसे दें। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः यह फ़ैसला करो कि अपने माल का एक तिहाई दान करोगे तो ईश्वर बाक़ी माल को उस ख़तरे से सुरक्षित रखेगा जिसका तुम्हें डर है। कारवां वालों ने ऐसा ही करने का फ़ैसला किया। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः आगे बढ़ो! कुछ दूर चलने के बाद चोरों का सामना हुआ। इमाम के साथ चलने वाले डर गए। इमाम ने कहाः अब किस बात का डर है जबकि ईश्वर की शरण में हो। जैसे ही  चोरों की नज़र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम पर पड़ी वह उतर पड़े और उनका बड़ा सम्मान करते हुए बोलेः आपकी सेवा में हाज़िर हैं ताकि चोरों और शत्रुओं से आपकी रक्षा करें। इमाम ने कहाः तुम लोगों की कोई ज़रूरत नहीं है जिसने हमे तुमसे सुरक्षित रखा वही उनसे भी सुरक्षित रखेगा। यात्री सुरक्षित पहुंच गए और उन्होंने अपने माल का एक तिहाई भाग दान कर दिया और उनका माल भी बहुत लाभ के साथ बिका। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः अब तुम्हें ईश्वर से मामला करने का लाभ समझ में आया। आगे भी इस काम को जारी रखना।                        

 इस भाग में हज़रत अली अलैहिस्सलाम द्वारा अपने सुपुत्र हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम को की गयी वसीयत का एक अशं आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः यदि संभव हो तो अपने और ईश्वर के बीच किसी दूसरे व्यक्ति को माध्यम न बनने दो क्योंकि जो तुम्हारे भाग्य में लिखा है वह तुम्हें मिल कर रहेगा बल्कि अपनी शक्ति व क्षमता पर भरोसा करते हुए ईश्वर की ओर से निर्धारित किए गए अपने भाग को प्राप्त करो। यदि इस प्रकार तुम्हें कम भी मिले तो वह इससे बेहतर है कि तुम दूसरों के सामने हाथ फैला कर अधिक प्राप्त करो। वास्तव में यह कम भाग कि जिसमें तुम्हारा सम्मान, तुम्हारा व्यक्तित्व व स्थान सुरक्षित है उस अधिक आय से अधिक महत्वपूर्ण है जिसमें तुम्हारा व्यक्तित्व मूल्यहीन हो जाए और यह इतना बड़ा नुक़सान है कि उसकी किसी चीज़ से भरपाई नहीं हो सकती। अलबत्ता यह भी एक सच्चाई है कि मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों की मदद की भी ज़रूरत पड़ती है। हज़तर अली अलैहिस्सलाम की इस वसीयत से अभिप्राय वह स्थिति जब मनुष्य का व्यक्तित्व किसी से मांगने के कारण चकनाचूर हो जाए और मांगने से उसका अपमान हो या उससे एहसान जताया जाए।

एक दिन एक व्यक्ति ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के सामने ईश्वर से प्रार्थना कीः हे ईश्वर मुझे सब लोगों से आवश्यकतामुक्त बना दे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहाः ऐसी दुआ न मांगो बल्कि यह दुआ मांगों कि ईश्वर मुझे बुरे लोगों से आवश्यकतामुक्त बना दे क्योंकि हर ईमान वाला व्यक्ति को अपने मोमिन भाई की मदद की ज़रूरत पड़ती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इमाम हसन को वसीयत में एक स्थान पर कहा हैः मेरे बेटे! जब समय की कठिनाइयां तुम्हें घेर लें तो संपन्न और अच्छे वंश के लोगों की सहायता लो क्योंकि ऐसे लोगों पर ईश्वर की कृपा की वर्षा होती है और ऐसे लोग समस्या का जल्दी निदान कर सकते हैं।

इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि अकसर ऐसा होता है कि व्यक्ति कोई काम करने में सक्षम होता है किन्तु सुस्ती करता है और दूसरों से सहायता मांगता है। इसे अच्छा नहीं समझा जाता किन्तु ऐसा भी होता है जब बहुत से काम दूसरों की सहायता के बिना नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति में सहायता लेने में कोई हरज नहीं है क्योंकि मनुष्य का जीवन दूसरों की सहायता करने और दूसरों से सहायता लेने पर निर्भर करता है।  


source : hindi.irib.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

ख़ून की विजय
इस्लाम का मक़सद अल्लामा इक़बाल के ...
हज़रत अली का जन्म दिवस पुरी ...
आशूरा का रोज़ा
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की दुखद ...
सुप्रीम लीडर के संदेश से सोशल ...
सूरे रूम की तफसीर
मैराज
शरीर की रक्षा प्रणाली 1
इस्लाम में औरत का महत्व।

 
user comment