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हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम

मनुष्य जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों के ज्ञान के अथाह सागर के बारे में सोचता है तो वह इन महान हस्तियों के आध्यात्मिक, नैतिक एवं शैक्षिक सदगुणों के प्रति नतमस्तक हो जाता है। वह अपने भीतर विनम्रता का आभास करता है। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के एसे परिजन हैं जिनके ज्ञान के अथाह सागर से केवल उनके काल के लोगों ही नहीं अपितु पूरी मानव जाति को लाभ पहुंच रहा है। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म पहली रजब वर्ष ५७ हिजरी क़मरी को हुआ था ताकि आप अपने पवित्र अस्तित्व से प्रज्वलित दीपक की भांति अज्ञानता व पथभ्रष्टता से भरे संसार को प्रकाशमयी बना दें। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की पावन जीवन शैली, धर्म की दूसरी महान हस्तियों की भांति इस्लाम के लिए मूल्यवान उपलब्धियां लिये हुए थी। समाज में धार्मिक आधारों एवं आस्थाओं को मज़बूत बनाना, ग़लत विचारों का विश्लेषण और विभिन्न क्षेत्रों में मेधावी शिष्यों का प्रशिक्षण इस्लामी समाज में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के मूल्यवान कार्य थे। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को बाक़िरुल ऊलूम अर्थात ज्ञानों को चीरने वाला कहा जाता है। क्योंकि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान की गुत्थियों को सुलझा कर उन्हें अलग- अलग वर्गों में बांट दिया था। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्तरों पर धार्मिक शिक्षाओं को बयान करने के दो आधार हैं एक ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र क़ुरआन और दूसरे पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथन एवं उनकी परम्परा। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने अनुयाइयों व साथियों से कहते थे कि जब मैं कोई हदीस अर्थात कथन बयान करूं तो जान लो कि उसका आधार व स्रोत ईश्वरीय किताब है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहस्सलाम चीज़ों एवं वास्तविकताओं के समझने में बुद्धि की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे और लोगों का विभिन्न ज्ञानों में गहराई से सोचने का आह्वान करते थे। आर्थिक मामले, परिश्रम, कार्य और उत्पाद पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के जीवन में महत्वपूर्ण विषय थे। ईश्वरीय धर्म इस्लाम के व्यापक होने की मांग यह थी कि यह धर्म, परलोक के मामलों में सुधार की अनुशंसा के साथ सांसारिक मामलों को भी बेहतर बनाने पर ध्यान दे। इस आधार पर इस्लाम अपने अनुयाइयों की आर्थिक स्थिति से निश्चेत नहीं रहा और मूल्यवान सुझाव प्रस्तुत करके उन्हें आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का मार्ग दर्शा दिया। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों एवं आचरण में हलाल व वैध आजीविका प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले प्रयास को विशेष स्थान प्राप्त है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन सदैव परिश्रम और कार्य के माध्यम से अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करते थे। ऐसा कभी नहीं होता था कि आर्थिक आवश्यकता न होने पर वे कार्य न करें। इस आधार पर ये हस्तियां भौतिक आवश्यकता न होने के बावजूद भी प्रयास करती थीं। इस मध्य आर्थिक प्रयास एवं उत्पाद की गतिविधियों का इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के समीप विशेष स्थान था। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भले व योग्य व्यक्तियों के हाथों उत्पाद के स्रोतों को एक सुरक्षित अर्थ व्यवस्था का आधार समझते हैं। आप सम्पत्ति के हलाल होने और भले सम्पत्ति वाले लोगों के संदर्भ में बल देकर कहते हैं" निःसंदेह मुसलमानों एवं इस्लाम की सुरक्षा इसमें है कि सम्पत्ति व पूंजी का संचालन उसके पास हो जो सम्पत्ति और उसके प्रति अपने अधिकार को पहचानता हो और भले कार्य करता हो और मुसलमानों एवं इस्लाम के विनाश का एक कारक यह है कि पूंजी का संचालन उन लोगों के हाथ में हो जो उसके प्रति अपने दायित्वों को न पहचानें और उससे अच्छे कार्य न करें"हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के ध्यान का एक भाग उत्पाद के कार्यों विशेषकर कृषि गतिविधियों पर रहा हैं और आपके विचारों और मार्गदर्शन का एक अन्य भाग हलाल आजीविका कमाने के लिए किये जाने वाले परिश्रम और दूसरों के सामने हाथ न फैलाने पर केन्द्रित रहा है। अपने जीवन की आवश्यकताओं की आपूर्ति का एक अच्छा कार्य, कृषि है। इस प्रकार से कि खाद्य पदार्थों की आवश्यकताओं के महत्वपूर्ण भाग की आपूर्ति कृषि के माध्यम से की जा सकती है। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं" कृषि से अधिक कोई कार्य ईश्वर के निकट प्रिय नहीं है। ईश्वर ने इदरीस के अतिरिक्त, कि जो दर्जी थे, किसी पैग़म्बर को नहीं भेजा किन्तु यह कि वह किसान था" इस्लामी इतिहास से यह समझा जाता है कि जिसके पास पर्याप्त पानी और ज़मीन हो और इसके बावजूद वह निर्धन हो तो वह व्यक्ति महान ईश्वर की कृपा से दूर है। क्योंकि यह बात स्पष्ट है कि वह व्यक्ति काम करने वाला और अपनी आजीविका कमाने वाला नहीं है। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं" पानी और ज़मीन होने के बावजूद कोई निर्धन हो तो ईश्वर उसे अपनी दया से दूर रखता है"हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दृष्टि में कार्य व परिश्रम एक पवित्र विषय है और आप इस्लाम में अर्थ व्यवस्था एवं अध्यात्म के मध्य गहरे संबंध को बयान करते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दृष्टि में कार्य और उत्पाद धार्मिक मानदंडों के परिप्रेक्ष्य में उपासना है विशेषकर जब वह आवश्यकता रखने वाले लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हो। आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना विशेषकर समाज के वंचित लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के लक्ष्यों में से था। आप अपने कृषि एवं बाग़ उत्पाद को अनाथों एवं दरिद्रों के मध्य बांटते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" जब मैं एक मुसलमान परिवार की आवश्यकताओं की आपूर्ति का ज़िम्मेदार बनूं और भूख से उन्हें मुक्ति दिलाऊं और उनके शरीर को ढकूं तथा उनकी प्रतिष्ठा की सुरक्षा करूं तो यह कार्य मैं एक ही नहीं बल्कि सत्तर हज करने से अधिक पसंद करता हूं"इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपनी अधिक आयु और अपने पास सेवक होने के बावजूद कार्य करते थे। इस संबंध में कुछ लोग इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के आर्थिक परिश्रम को त्याग और संतोष के अर्थ से दूरी का चिन्ह समझते थे। मोहम्मद बिन मुन्कदिर नाम का व्यक्ति कहता है" एक दिन मैंने गर्म हवा में मदीने के पास अबु जाफ़र मोहम्मद बिन अली अर्थात इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को देखा। वह कार्य करने के लिए मदीना नगर से बाहर आये थे। मैंने स्वंय से कहा क्या बात है क़ुरैश की एक हस्ती इस प्रकार की गर्म हवा में। वह भी इस प्रकार दुनिया की प्राप्ति में लगी हुई है। मुझे चाहिये कि मैं उनके पास जाऊं और उन्हें नसीहत करूं। यह सोचकर मैं उस हस्ती के निकट गया और उसे सलाम किया। उसने मेरे सलाम का जवाब दिया जबकि उसके शरीर से पसीना बह रहा था। इसके बाद मैंने उनसे कहा क्या क़ुरैश का बड़ा- बूढ़ा इस प्रकार की गर्म हवा में और इस प्रकार की कठिन परिस्थिति में दुनिया की प्राप्ति में लगा हुआ है? यदि इस प्रकार की स्थिति में आपकी मृत्यु हो जाये तो क्या करेंगे? उन्होंने मेरे उत्तर में कहा यदि इस स्थिति में मृत्यु आ जाये तो वह एसी स्थिति में आई है कि जब मैं ईश्वर की उपासना में लीन हूं क्योंकि मैं इस कार्य से स्वयं को और अपने परिवार को तुझसे और दूसरे लोगों से आवश्यकतामुक्त बना रहा हूं। मैं इस चीज़ से डरता हूं कि मेरी मृत्यु ऐसी स्थिति में आए जब मैं ईश्वर की अवज्ञा में संलग्न रहूं" मोहम्मद बिन मुन्कदिर ने इस प्रकार का उत्तर सुन कर कहा ईश्वर आप पर अपनी कृपा करे आपने सही कहा मैं तो आपको नसीहत करना चाहता था परंतु आपने मुझे नसीहत कर दी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम जिस सीमा तक कार्य के लिए प्रोत्साहित करते थे उसी सीमा तक आलस्य से रोकते भी थे। निः संदेह बेरोज़गारी इसके अतिरिक्त कि वह ग़लत कार्यों की भूमि प्रशस्त करती है और मनुष्य से उसकी प्रतिष्ठा छीन लेती है, आर्थिक विकास और उसके बेहतर होने में भी मूल रुकावट व बाधा है। यदि अर्थ व्यवस्था को गति प्रदान करने वाला इंजन अर्थात कार्य न हो तो समाज की अर्थ व्यवस्था रुक जायेगी एवं मंद पड़ जायेगी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" मैं उस व्यक्ति से विरक्त हूं जो बहाना ढूंढता है और कार्य नहीं करता है और घर में लेटा रहता है और कहता है हे ईश्वर मुझे आजीविका दे जबकि चींटी अपनी आजीविका प्राप्त करने के लिए अपने घर से बाहर जाती है और परिश्रम करके वह अपनी आजीविका प्राप्त करती है"इसी प्रकार इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" आलस्य, धर्म और संसार को क्षति पहुंचाता है" आपका यह कथन इस बात का सूचक है कि बेरोज़गारी, ठहराव के अतिरिक्त मनुष्य के शरीर, उसकी आत्मा एवं व्यवहार पर विनाशकारी आर्थिक प्रभाव छोड़ती है और यह चीज़ सामाजिक एवं नैतिक बुराइयों तथा मनुष्य के जीवन से प्रसन्नता व प्रफुल्लता समाप्त हो जाने का मार्ग प्रशस्त करती है। व्यापार, कार्य व परिश्रम का एक महत्वपूर्ण भाग है और यह आर्थिक व्यवस्था को लाभ पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है और इसी कारण पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने इसकी अनुशंसा की है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से कहते हैं" बरकत व विभूति के १० भाग हैं कि उसके नौ भाग व्यापार में हैं" अलबत्ता व्यापार करने की अनुशंसा के साथ धर्म में इस बात की भी बहुत सिफारिश की गयी है कि व्यापार वैध ढंग से किया जाना चाहिये और व्यापारी को चाहिये कि वह धार्मिक आदेशों से अवगत हो ताकि इस मार्ग से उसका कमाया हुआ धन पवित्र व हलाल हो। जैसाकि हम हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के बारे में पढ़ते हैं। आप कहते हैं "हमने अली बिन हुसैन अर्थात इमाम सज्जाद की किताब में इस प्रकार देखा, होशियार हो जाओ कि ईश्वरीय दूत न तो डरते हैं और न क्षुब्ध व दुःखी होते हैं जबकि वह ईश्वरीय दायित्वों का निर्वाह करते हों और पैग़म्बर की परम्परा पर कटिबद्ध रहते हों और ईश्वर ने जिन चीज़ों को हराम किया है उससे दूरी करते हैं संसार के क्षणिक आनंदों व खुशियों की अनदेखी कर देते हैं और वे उस चीज़ में रूचि रखते हैं जो ईश्वर के पास है। पवित्र आजीविका को प्राप्त करते हैं और उसके पश्चात अनिवार्य अधिकारों को अदा करते हैं कि इस स्थिति में वे उन लोगों में से हैं जिनके कार्य व परिश्रम में ईश्वर विभूति प्रदान करता है और पहले से परलोक के लिए जो कुछ उन्होंने भेजा है उसका प्रतिफल उन्हें अवश्य मिलेगा। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक कथन है" ज्ञान की ज़कात ईश्वर के बंदो को ज्ञान सिखाना है


source : irib.ir
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