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कुमैल के लिए ज़िक्र की हक़ीक़त

कुमैल के लिए ज़िक्र की हक़ीक़त

पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान

 

नेशापुरि ने अपने रेजाल मे उल्लेख किया हैः

कुमैल अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) के विशेष साथीयो मे से है जिसे उन्होने अपने ऊँट पर सवार किया तो कुमैल ने अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने प्रश्न किया।

हक़ीक़त का अर्थ क्या है? – ज़ाहिर तौर पर कुमैल के प्रश्न का उद्देश्य ईश्वर की हक़ीक़त है – अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने कुमैल को उत्तर दियाः तुम कहाँ, तथा ईश्वर की हक़ीक़त कहाँ ?

कुमैल ने अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) से कहाः क्या मै तुम्हारे रहस्य को नही जानता ? अमीरुल मोमेनीन ने कहा हाँ तुम मेरे रहस्य को जानते हो परन्तु मेरे भीतरी रहस्य जिनका नामांकन अतिप्रवाह होगा वह तुम तक पहुँच जाऐगे।

कुमैल ने कहाः क्या आपके समान कोई व्यक्ति प्रश्न करने वाले को निराश करता है ? अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) ने उत्तर दियाः हक़ीक़त, संकेत के बिना सुबहात जलाल की खोज है।[1]

कुमैल ने कहाः अधिक व्याखया करे। अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने कहाः मनुष्य को जानना चाहिए कि ईश्वर मनुष्य के वहम मे नही आता[2] तथा ज्ञान अवगति के संघ है।[3]

जारी



[1] अर्थात ज़ात (ईश्वर) की हक़ीक़त को खोज के माध्यम को छोड़कर प्राप्त नही किया जा सकता। अथवा यह कि ज़ात की हक़ीक़त को तनज़ीह के माध्यम को त्याग कर पहचाना नही जा सकता, अर्थात हम ज़ात की हक़ीक़त को उन सभी वस्तुओ से मुनज़्ज़ह जाने जिनकी हम कल्पना करते है।

[2] जिस प्रकार अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) ने दूसरे स्थान पर कहा हैः

کلما میزتموھم باوھامکم فی ادق نظر فھو مخلوق مثلکم مردود الیکم

(कुल्लमा मय्यज़तमूहुम बे ओहामेकुम फ़ी अद्दक़्क़े नज़रिन फ़होवा मख़लूक़ुन मिसलोकुम मरदूदुन एलैकुम) अर्थात जो भी तुम्हारे वहम मे आजाए वह ईश्वर नही है बलकि तुम्हारी प्राणी है।

[3]अर्थातः जिस समय मनुष्य अन्धविश्वास की दुनिया से स्वतंत्र होता है तथा शुद्ध ज्ञान प्राप्त कर लेता है जिसमे किसी भी प्रकार का कोई अन्धविश्वास नही हो, उस स्थान पर ज्ञान सत्य को खोज लेता है, जिस प्रकार शब्दकोण मे (सहव) का अर्थ  बादलो का हट जाना तथा वायु का स्वच्छ हो जाना है, लगभग अन्धविश्वास बादलो के समान है जो जानकारी के बाध्य आता     है, जिस समय वह अन्धविश्वास का बादल हट जाता है तो सच्चाई प्रकट हो जाती है।      

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