Hindi
Friday 29th of March 2024
0
نفر 0

तफ़्सीर बिर्राय के ख़तरात

हमारा अक़ीदह है कि क़ुरआने करीम के लिए सब से ख़तरनाक काम अपनी राय के मुताबिक़ तफ़्सीर करना है।इस्लामी रिवायात में जहाँ इस काम को गुनाहे कबीरा से ताबीर किया गया है वहीँ यह काम अल्लाह की बारगाह से दूरी का सबब भी बनता है। एकहदीस में बयान हुआ है कि अल्ला ने फ़रमाया कि मा आमना बी मन फ़स्सरा बिरायिहि कलामी[1] यानी जो मेरे कलाम की तफ़्सीर अपनी राय के मुताबिक़ करता है वह मुझ पर ईमान नही लाया। ज़ाहिर है कि अगर ईमान सच्चा हो तो इंसान कलामे ख़ुदा को उसी हालत में क़बूल करेगा जिस हालत में है न यह कि उस को अपनी राय के मुताबिक़ ढालेगा।

सही बुख़ारी, तिरमिज़ी,निसाई और सुनने दावूद जैसी मशहूर किताबों में भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.)की यह हदीस मौजूद है कि मन क़ाला फ़ी अलक़ुरआनि बिरायिहि अव बिमा ला यअलमु फ़लयतबव्वा मक़अदहु मिन अन्नारि [2] यानी जो कुरआन की तफ़्सीर अपनी राय से करे या ना जानते हुए भी क़ुरआन के बारे में कुछ कहे तो वह इस के लिए तैयार रहे कि उसका ठिकाना जहन्नम है।

तफ़्सीर बिर्राय यानी अपने शख़्सी या गिरोही अक़ीदह या नज़रिये के मुताबिक़ क़ुरआने करीम के मअना करना और उस अक़ीदह को कुरआने करीम से ततबीक़ देना, जबकि उसके लिए कोई क़रीना या शाहिद मौजूद न हो। ऐसे अफ़राद दर वाक़े क़ुरआने करीम के ताबेअ नही हैं बल्कि वह चाहते हैं कि क़ुरआने करीम को अपना ताबे बनायें। अगर क़ुरआने करीम पर पूरा ईमान हो तो हर गिज़ ऐसा न करें।अगर क़ुरआने करीम में तफ़्सीर बिर्राय का बाब खुल जाये तो यक़ीन है कि कुल्ली तौर पर क़ुरआन का ऐतेबार खत्म हो जाये गा, जिस का भी दिल चाहेगा वह अपनी पसंद से क़ुरआने करीम के मअना करेगा और अपरने बातिल अक़ीदों को क़ुरआने करीम से ततबीक़ देगा।

इस बिना पर तफ़्सीर बिर्राय यानी इल्में लुग़त,अदबयाते अरब व अहले ज़बान के फ़हम ख़िलाफ़ क़ुरआने करीम की तफ़्सीर करना और अपने बातिल ख़यालात व गिरोही या शख़्सी खवाहिशात को क़ुरआन से तताबुक़ देना, क़ुरआने करीम की मानवी तहरीफ़ का सबब है।

तफ़्सीर बिर्राय की बहुत सी क़िस्में हैं। उन में से एक क़िस्म यह है कि इंसान किसी मोज़ू जैसेशफ़ाअत”“तौहीद” “इमामतवग़ैरह के लिए क़ुरआने करीम से सिर्फ़ उन आयतों का तो इँतेख़ाब कर ले जो उस की फ़िक्र से मेल खाती हों,और उन आयतों को नज़र अन्दाज़ कर दे जो उस की फ़िक्र से हमाहँग न हो,जब कि वह दूसरी आयात की तफ़्सीर भी कर सकती हों।

खुलासा यह कि जिस तरह क़ुरआने करीम के अलफ़ाज़ पर जमूद ,अक़्ली व नक़्ली मोतबर क़रीनों पर तवज्जोह न देना एक तरह का इनहेराफ़ है उसी तरह तफ़्सीर बिर्राय भी एक क़िस्म का इनहेराफ़ है और यह दोनों क़ुरआने करीम की अज़ीम तालीमात से दूरी का सबब है। इस बात पर तवज्जोह देना ज़रूरी है।



[1] वसाइल जिल्द 18य28 हदीस न.22

[2] किताब मबाहिस फ़ी उलूमि अलक़ुरआन,लेखक मनाउल ख़लील अलक़त्तान,रियाज़ पेज न. 304


source : http://al-shia.org
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

ज़िक्रे ख़ुदा
मरातिबे कमाले ईमान
आलमे बरज़ख
अँबिया का अपनी पूरी ज़िन्दगी में ...
सुन्नत अल्लाह की किताब से निकली ...
इन्सानी जीवन में धर्म की ...
अल्लामा इक़बाल की ख़ुदी
इस्लाम और इँसान की सरिश्त
हस्त मैथुन जवानी के लिऐ खतरा
क़ानूनी ख़ला का वुजूद नही है

 
user comment