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कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की वसीयत 10

कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की वसीयत 10

पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान

हे कुमैल, नमाज़ पढ़ो रोज़ा रखो अथवा दान करो यह कार्य नही है बलकि कार्य यह कि तुम्हारी नमाज़ हृदय की पवित्रता ईश्वर के अनुकूल एंव पूर्ण विनम्रता के साथ होनी चाहिय; और यह ध्यान दो कि तुम किस वस्त्र मे किस धरती पर नमाज़ पढ़ रहे हो? यधापी वैध एंव हलाल नही है तो तुम्हारी नमाज़ स्वीकार नही की जाएगी।

हे कुमैल, ज़बान जो चाहती है बोलती है, भोजन करने से मानव के हृदय को शक्ति प्राप्त होती है यह देखो कि तुम अपने हृदय को किस माध्यम से शक्ति प्रदान करते हो? यदि हलाल और वैध मार्ग से नही है तो ईश्वर तुम्हारी तसबीह एंव ज़िक्र को स्वीकार नही करेगा।

हे कुमैल, यह बात भलि भाती जान लो और समझ लो कि हम किसी भी मनुष्य को अमानतो के छोड़ने पर अनुमति नही देते, यदि कोई व्यक्ति मुझ से इस प्रकार की अनुमति का उद्धरण करता है तो यह निश्चित रूप से व्यर्थ एंव पाप है और झुठ के माध्यम से जो बात कही है उसका परिणाम नरक है। मै क़सम खाता हूँ कि पैगंम्बर ने अपने स्वर्गवास से एक घण्टा पूर्व तीन बार कहाः हे हसन के पिता! अमानत को उसके मालिक की ओर पलटा दो चाहे वर अच्छा व्यक्ति हो अथवा बुरा, चाहे अमानत छोटी हो अथवा बड़ी चाहे वह अमानत एक धागा ही क्यो न हो।           

 

जारी

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