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Friday 29th of March 2024
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इबादत सिर्फ़ अल्लाह से मख़सूस है

हमारा अक़ीदह है कि इबादत बस अल्लाह की ज़ाते पाक के लिए है। (जिस तरह से इस बारे में तौहीदे अद्ल की बहस में इशारा किया गया है)इस बिना पर जो भी उसके अलावा किसी दूसरे की इबादत करता है वह मुशरिक है, तमाम अंबिया की तबलीग़ भी इसी नुक्ते पर मरकूज़ थी उअबुदू अल्लाहा मा लकुम मिन इलाहिन ग़ैरुहु[1]यानी अल्लाह की इबादत करो उसके अलावा तुम्हारा और कोई माबूद नही है। यह बात क़ुरआने करीम में पैग़म्बरों से मुताद्दिद मर्तबा नक़्ल हुई है। मज़ेदार बात यह है कि हम तमाम मुसलमान हमेशा अपनी नमाज़ों में सूरए हम्द की तिलावत करते हुए इस इस्लामी नारे को दोहराते रहते हैंइय्याका नअबुदु व इय्याका नस्तईनु यानी हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ से ही मदद चाहते हैं।

यह बात ज़ाहिर है कि अल्लाह के इज़्न से पैग़म्बरों व फ़रिश्तों की शफ़ाअत का अक़ीदह जो कि क़ुरआने करीम की आयात में बयान हुआ है इबादत के मअना मे है।

पैग़म्बरों से इस तरह का तवस्सुल कि जिस में यह चाहा जाये कि परवर दिगार की बारगाह में तवस्सुल करने वाले की मुश्किल का हल तलब करें, न तो इबादत शुमार होता है और न ही तौहीदे अफ़आली या तौहीदे इबादती के मुतनाफ़ी है। इस मस्ले की शरह नबूवत की बहस में बयान की जाएगी।



[1] सूरए आराफ़ आयत न. 59,65,73,85


source : http://al-shia.org
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