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Tuesday 23rd of April 2024
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अबूसब्र और अबूक़ीर की कथा-6

हमने आपको यह बताया था कि इस्कंदरिया शहर में एक रंगरेज़ और एक नाई रहते थे। उनका नाम अबू क़ीर और अबू सब्र था। वे आपस में दोस्त थे। वे दोनों रोज़ी की तलाश में दूसरे शहर जाते हैं और बड़ी कठिनाई के बाद नए शहर में रोज़ी रोटी का इन्तेज़ाम करने में सफल हो जाते हैं। एक राजा की मदद से रंगरेज़ी की दुकान खोल लेता है जो बहुत चलती है और दूसरा सार्वजनिक हम्माम बनवाता है जिसे लोग बहुत पसंद करते हैं। इसी प्रकार पूरी कहानी के दौरान आपको यह बताया कि अबू क़ीर एक झूठा व धोखेबाज़ व्यक्ति था जब्कि अबू सब्र जो नाई था, ईमानदार व सच्चा आदमी था। कहानी यहां तक पहुंची थी कि अबू क़ीर राजा के पास जाता है और अबू सब्र के ख़िलाफ़ कान भरता है और कहता है कि अबू सब्र आपको जान से मारना चाहता है। उसने एक ज़हरीली दवा बनायी है।

 

 

अगर इस बार बादशाह सलामत उसके हम्माम में जाएंगे तो वह आपसे कहेगा कि उस दवा को बदन पर मलवाएं कि उससे रंग अधिक साफ़ होता है। अगर आपने उस दवा को बदन पर मलवा लिया तो उसमें मौजूद ज़हर फ़ौरन असर करेगा और आप की मौत हो जाएगी। बादशाह यह सुन कर बहुत ग़ुस्सा हुआ और उसने अबू क़ीर से कहा कि वह इस बात को किसी को न बताए। उसके बाद उसने अबू क़ीर की बात की सच्चाई को परखने के लिए हम्माम जाने का फ़ैसला किया। अबू सब्र को बादशाह के हम्माम आने के इरादे की ख़बर दी गयी। अबू सब्र ने हम्माम तय्यार कर दिया और राजा का इंतेज़ार करने लगा। राजा अपने साथियों के साथ हम्माम पहुंचा। अबू सब्र भी विगत की तरह राजा को नहलाने के लिए हम्माम में गया। राजा के हाथ पैर धुलाए। उसके बाद उसने राजा से कहा कि बादशाह सलामत मैंने एक दवा तय्यार की है अगर आप उसे अपने बदन पर मलेंगे तो आपका रंग और साफ़ हो जाएगा। राजा ने कहा, दवा लाओ देखूं। अबू सब्र दवा ले आया। राजा ने दवा को सूंघा तो वह बहुत बद्बूदार थी। वह समझ गया कि यह वही ज़हरीली चीज़ है जिसके बारे में अबू क़ीर ने बताया था। बादशाह ने चिल्ला कर अपने सिपाहियों को हुक्म दिया, इस धोखेबाज़ व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लो।

 

 

अबू सब्र को गिरफ़्तार कर लिया। राजा भी ख़ामोशी से हम्माम से बाहर निकला और महल की ओर लौट गया। महल में अबू सब्र को हाथ बांध कर राजा के सामने लाया गया। राजा ने हुक्म दिया कि अबू सब्र को गाय की खाल में लपेट कर नदी में डाल दिया जाए। जिस व्यक्ति को यह काम सौंपा गया उसका नाम क़िब्तान था। वह नदी के बहुत दूर क्षेत्र की ओर ले गया और उससे कहा, हे भाई! मैं एक बार तुम्हारे हम्माम आया था तो तुमने बहुत अच्छा व्यवहार किया था। तुमने ऐसा क्या किया जो राजा तुमसे इतना क्रोधित हो गया और उसने तुम्हें जान से मारने का हुक्म दे दिया। अबू सब्र ने कहा कि ईश्वर की सौगंध मैंने कोई बुरा काम नहीं किया और मैं यह भी नहीं जानता कि किस जुर्म की सज़ा में मुझे जान से मारने का हुक्म दिया गया है। क़िब्तान ने कहा कि ज़रूर किसी ने तुम्हारे बारे में राजा के कान भरे हैं। मैं तुम्हें नहीं मारुंगा। पहली नाव से तुम्हें तुम्हारे शहर भेज दूंगा। उसके बाद अबू सब्र को मछली पकड़ने का जाल दिया और कहा,तुम इस जाल से मछली पकड़ों। चूंकि मैं राजा के महल के लिए मछली पकड़ता हूं और आज राजा के आदेश के कारण मछली नहीं पकड़ सकता। एक घंटे में राजा के नौकर आएंगे मछली लेने के लिए तो जो मछली तुम पकड़ना उसे राजा के नौकरों को दे देना कि वे लेते जाएं। तुम मेरे लौटने का इंतेज़ार करना।

 

 

 

दूसरी ओर राजा का हाल सुनिए। नदी राजा के महल की खिड़की से होकर गुज़री थी। राजा जिस वक़्त यह देखने के लिए अबू सब्र को नदी में कहां डुबोते हैं, महल की खिड़की के पास खड़ा हुआ कि अंगूठी उसके हाथ से नदी में गिर गयी। यह अंगूठी जादुयी थी और राजा के क्रोधित होने की हालत में उसमें से तलवार की तरह बिजली निकलती और राजा के दुश्मन की गर्दन मार देती थी। राजा ने किसी से अंगूठी गिरने की बात न बतायी। और इस राज़ को अपने मन में छिपाए रखा। उधर अबू सब्र का हाल सुनिए। उसने कुछ मछलियां पकड़ीं और उसमें से एक मछली अपने लिए रख ली। मछली का पेट उसने चीरा ताकि उसे साफ़ करे तो अचानक उसकी नज़र मछली के पेट में मौजूद अंगूठी पर पड़ी। अबू सब्र ने अंगुठी पहन ली। उसे उस अंगूठी के जादू के बारे में कुछ नहीं मालूम था। उसी वक़्त राजा के दो नौकर उसके पाए पहुंचे। अबू सब्र ने अपना हाथ उनकी ओर बढ़ाया ही था कि अचानक अंगूठी से आग जैसी बिजली निकली और उसने दोनों नौकरों के सिर धड़ से जुदा कर दिए। अबू सब्र यह देख कर हैरत में पड़ गया और सोच में डूब गया। कुछ देर बाद क़िब्तान पहुंचा।

 

 

जैसे ही उसकी नज़र राजा के नौकरों के शव पर पड़ी वह घबरा गया। उसने अबू सब्र की ओर नज़र उठायी ताकि उससे दोनों नौकरों के मारे जाने का कारण पूछे की उसकी नज़र अबू सब्र के हाथ में पड़ी अंगूठी पर पड़ी। क़िब्तान ने चिल्ला कर कहा, अपनी जगह से हिलना नहीं और हाथ भी मत हिलाना वरना मैं भी मारा जाउंगा। अबू सब्र को यह सुनकर बहुत हैरत हुयी और वह उसी तरह मूरत बना खड़ा रहा। क़िब्तान ने कहा, यह अंगूठी कहां से मिली। अबू सब्र ने सारी घटना सुनायी। क़िब्तान ने उससे कहा कि यह अंगूठी जादुई है और इसके ज़रिए एक लश्कर को ख़त्म किया जा सकता है। अबू सब्र ने कुछ सोचा और कहा, मुझे राजा के पास ले चलो। क़िब्तान राज़ी हो गया और उसने कहा कि ठीक है ले चलूंगा। चूंकि अब मुझे तुम्हारे बारे में कोई चिंता नहीं है तुम अगर चाहो तो राजा और उसके दरबारियों को ख़त्म कर सकते हो। इसके बाद क़िब्तान ने अबू सब्र को नाव पर सवार किया और राजा के महल पहुंचा। अबू सब्र को महल पहुंचाया। देखा कि राजा अपने सिंहासन पर बैठा है और बहुत दुखी है। राजा के दुखी होने का कारण वह अंगूठी थी जो नदी में गिर गयी थी।

 

 

राजा ने जैसे ही अबू सब्र को देखा तो कहा, तुम अभी भी ज़िन्दा हो? अबू सब्र ने सारी घटना सुनायी और कहा कि इस वक़्त आपकी जादू की अंगूठी मेरे पास है। मैं आया हूं कि इसे आपके हवाले कर दूं। अंगूठी लीजिए और अगर मैंने कोई ऐसा जुर्म किया है कि मुझे जान से मार दिया जाए तो मुझे मारने से पहले मेरा जुर्म मुझे बताइये। राजा ने अबू सब्र को गले लगाया और कहा, तुम एक शरीफ़ व्यक्ति हो। उसके बाद राजा ने अबू क़ीर की बातें उसे बतायीं। अबू सब्र ने भी अबू क़ीर से अपनी दोस्ती और उसके साथ सफ़र के बारे में राजा को बताया और कहा कि अबू क़ीर ने ही उस दवा के बनाने का सुझाव दिया था। राजा ने आदेश दिया कि अबू क़ीर को गिरफ़्तार करने के बाद शहर की गलियों में फिराया जाए और फिर गाय की खाल में लपेट कर नदी में डाल दिया जाए। अबू सब्र ने राजा से कहा, बादशाह सलामत! मैं अपनी शिकायत वापस लेता हूं, उसे माफ़ करके आज़ाद कर दीजिए। राजा ने कहा कि अगर तुम माफ़ भी कर दो तब भी मैं उसे माफ़ नहीं करुंगा। उसे जुर्म की सज़ा मिलनी चाहिए। उसके बाद राजा ने सिपाही को आदेश दिया कि अबू क़ीर को सज़ा दे। उसके बाद अबू सब्र राजा की ओर से दी गयी नाव पर सवार होकर अपने नौकरों व धन के साथ अपने शहर लौट गया। लहरें अबू क़ीर के शव को तट पर ले आयी थीं। अबू सब्र अबू क़ीर के शव को शहर ले गया और दफ़्न कर दिया। उसके बाद उसने अबू सब्र के लिए एक मक़बरा बनाने और उसके दरवाज़े पर यह लिखने का आदेश दिया, “जिसकी प्रवृत्ति बुरी हो उससे भलाई की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।”

 

 

अबू सब्र वर्षों अच्छा जीवन बिताने के बाद इस दुनिया से चल बसा। उसकी वसीयत के अनुसार,उसे भी उसके दोस्त अबू क़ीर के बग़ल में दफ़्न कर दिया गया और वह मक़बरा अबू क़ीर व अबू सब्र के नाम से मशहूर हुआ।

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