Hindi
Thursday 18th of April 2024
0
نفر 0

सुशीलता

सुशीलता

इस्लाम ने बातचीत में एवं व्यवहार में हमेशा अपने अनुयाइयों से नम्रता एवं भद्रता का आहवान किया है और अभद्रता एवं अशिष्टता से रोका है। इस लिए कि इस्लाम की यह शिक्षा जीवन में मनुष्य की सफलता और शक्ति का एक महत्वपूर्ण कारण है। इस्लाम की नैतिक शिक्षाएं, सुशीलता को मनुष्यों के बीच प्रेम व स्नेह का अति महत्वपूर्ण कारण मानती हैं।
लेकिन किस तरह सुशील बन सकते हैं? यह ऐसा प्रश्न है कि जिसके बारे में हम में से अधिकांश ने विचार किया होगा।
एक ईश्वर पर विश्वास एवं दृढ़ आस्था रखने वाले मनुष्य की दृष्टि में सुशीलता प्राप्त करने का मूल एवं बुनियादी रास्ता, अस्तित्व एवं मनुष्यों के प्रति आध्यात्मिक एवं एकेश्वरवादी दृष्टिकोण है, इसका अर्थ यह है कि इस वास्तविकता पर ध्यान कि समस्त इंसान वास्तव में ईश्वर की सृष्टि व प्रकाश हैं तथा उनके साथ हर प्रकार का व्यवहार वास्तव में उनके सृष्टिकर्ता के साथ व्यवहार माना जाता है। समस्त इंसान ईश्वर के बंदे हैं और उसने उन्हें पैदा किया है और वह अपने बंदों से प्रेम करता है और उसे कदापि यह पसंद नहीं है कि कोई उनके साथ अभद्र व्यवहार करे। यही कारण है कि ईश्वर ने अपनी सहमति की प्राप्ति को इंसानों के साथ भद्रता से पेश आने एवं उनकी सहमति प्राप्त करने व सेवा में क़रार दिया है। प्राणी एवं सृष्टिकर्ता के बाच इसी प्रगाढ़ संबंध के दृष्टिगत इमाम अली रेज़ा (अ) का कथन है कि जो कोई प्राणी का शुक्रिया अदा नहीं करता है वास्तव में वह उसके सृष्टिकर्ता का शुक्रिया अदा नहीं करता है।
एकेश्वरवादी दृष्टिकोण कारण बनता है कि दूसरों के प्रति हम जो बैर रखते हैं उसे भुला दें, शत्रुता को समाप्त कर दें, क्षमा करने वाले बनें और लोगों की बुराईयों से विचलित न हों, किसी भी हालत में दूसरों पर हिंसा न करें, ईश्वर के लिए उनकी कठोरता को सहन करें, परिपक्वता एवं सहनशीलता से दूसरों के साथ आचरण करें और सुशील रहें।
सुशीलता प्राप्ति का दूसरा बुनियादी रास्ता, नैतिक व्यक्तित्व एवं आंतिरक शक्तियों में सुधार है। भद्रता एवं सुशीलता एक प्रकार से आतंरिक व्यक्तित्व और इंसान के आंतरिक गुणों का प्रतिबिंब है। उदाहरण स्वरूप, हम किस तरह यह आशा रख सकते हैं कि एक द्वेषपूर्ण व्यक्ति दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करे? स्वार्थपरता, केवल स्वयं को ही महत्व देना, द्वेष, दिखावा, क्रोध तथा अति आशावादी होना सभी अनैतिकता के कारक हैं। अगर हम भद्र एवं सुशील व्यक्ति बनना चाहते हैं तो उसके बुनियादी मार्गों में से एक यह है कि अनैतिक बुराईयों को अपने भीतर से दूर कर दें। जब तक कि इंसान का अंतःकरण पाक साफ़ नहीं होगा, जो पानी उसके अस्तित्व के सोते से निकलता है शुद्ध एवं साफ़ नहीं होगा। जैसा कि किसी कवि ने कहा है कि सुराही से वही बाहर आएगा कि जो उसके अंदर है।
सुशीलता से सुसज्जित होने का एक और मार्ग, मानवीय भावनाओं पर ध्यान और उन्हें प्रशिक्षित करना है। जैसा कि आप जानते हैं, इंसान के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण आयाम मानवीय भावनाएं हैं। दूसरों को प्रेम करने का गुण और अन्य मनुष्यों के साथ भावनात्मक संबंधों की स्थापना प्रशिक्षण योग्य है। दयालु लोग समाज और परिवार में सबसे अधिक प्रेम करने योग्य होते हैं। जीवन में ख़ुशी और आनंद का एक बड़ा भाग सुशीलता अर्थात भावनात्मक संबंध स्थापित करने से प्राप्त होता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह ख़ुशी और आनंद सुशीलता द्वरा अर्थात सकारात्मक भावनात्मक संबंध की स्थापना, दूसरे से प्रम और स्नेह से प्राप्त होता है। अनैतिकता कि जो वास्तव में वही नकारात्मक भावनात्मक संबंध है, द्वेष व जीवन का पाप है तथा दूसरों को मनुष्य के पास से तितर बितर कर देता है। हज़रत अली (अ) का कथन है कि अनैतिकता जीवन को कठिन बना देती है तथा आत्मा के पाप का कारण है।
सुशीलता प्राप्त करने तथा अनैतिकता से बचने का एक और रास्ता, दूसरों के साथ व्यवहार के समय सुशीलता का अभ्यास करना है। हर कोई इस बात की योग्यता रखता है कि मज़बूत इरादे से इस संदर्भ में अभ्यास करे। अगर कोई निर्णय ले कि कम से कम कुछ ही दिन अपने मिलने जुलने वालों के साथ अपने व्यवहार में पुनर्विचार करेगा और इस अवधि में प्रेमपूर्वक, सुशीलता एवं भद्रता के साथ उनके साथ व्यवहार करे और विनम्रतापूर्वक बातचीत करे, तो निश्चिम रूप से अच्छे परिणाम प्राप्त करेगा। इसके लिए एक महत्वपूर्ण काम जो किया जा सकता है वह अभद्र व्यवहार का अभ्यास है। पूर्णतः मुस्कराहट के साथ सलाम करना और हालचाल पूछना, मैत्रीपूर्ण एवं सम्मान के साथ हाथ मिलाना, सुशील रहने और दूसरों का स्नेह प्राप्त करने के अभ्यास के तौर पर बहुत ही प्रभावी क़दम है।
मुलाक़ात का पहला क्षण असाधारण महत्व रखता है, इस तरह से कि मित्र बनने में सफलता या असफलता का आधार उसी पर होता है। आम तौर से जिन लोगों से हम मिलते हैं वह दो प्रकार के होते हैं, एक वह कि जो अच्छा और मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते हैं। इस समूह की सामाजिक लोकप्रियता कैफी होती है और मित्रों की संख्या भी अधिक होती है। दूसरा समूह वह है कि जो पहली मुलाक़ात में रूखेपन से मिलते हैं। जिन लोगों के लिए दूसरों को लिए मुस्कराना कठिन है, इस प्रकार के लोग अलग थलग होते हैं या उनके दोस्त कम होते हैं।
इस्लामी सभ्यता में सलाम करने, मुस्कुराने, सम्मान, हार्दिक प्रेम व स्नेह प्रकट करने पर बहुत अधिक बल दिया गया है। हातिम ताई के पुत्र अदी का कथन है कि मैं मदीने गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुझे पहचान लिया अपनी जगह से उठे, मेरा हाथ पकड़ा और अपने घर ले गए। मैं उनकी विनम्रता से आश्चर्य में पड़ गया तथा सर्वश्रेष्ठ नैतिकता, महान सदगुणों व अन्य लोगों के प्रति असाधारण सम्मान देख कर मैं समझ गया कि वे कोई सामान्य व्यक्ति और सामान्य शासक नहीं हैं।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यहां तक कि जिस समय तुम गहरे शोक व दुख में हो, तो स्वयं को सुशील दिखाने का प्रयास करो और मुस्कुराओ। जैसा कि हज़रत अली (अ) मोमिन अर्थात दृढ़ आस्था रखने वाले का उल्लेख करते हैं, मोमिन की ख़ुशी उसके चेहरे पर और उसका दुख उसके हृदय में छिपे हैं।
सुशीलता के मूल्यों व प्रभावों पर ध्यान और इसी प्रकार अनैतिकता की बुराई व उसके बुरे प्रभाव, उन मार्गों में से है कि जो मनुष्य को सुशील बनने में सहायक होते हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बेहतरीन रास्ता, उन आयतों व धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन है कि जो शिष्टाचार की अच्छाई व अशिष्टता की बुराई के परिप्रेक्ष्य में हैं। इस परिप्रेक्ष्य में मनुष्यों की स्थितियों का अध्ययन भी प्रभावी है। समाज में सुशील व अशिष्ट लोग काफ़ी हैं। दूसरों की स्थितियों का थोड़ा सा आंकलन करने से हम देखेंगे कि सुशील लोग अपने जीवन में और संबंधों में सफ़ल और ख़ुशहाल हैं, अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं, उनकी आय अधिक है, मित्रता के अधिक योग्य हैं और अधिक सम्मान एवं विश्वास के पात्र हैं। इसके विपरीत, असभ्य लोगों की आय कम होती है, अलग थलग रहते हैं और दुखी रहते हैं और उनके जीवन में दुख और कठिनाइयों के अलावा कुछ नहीं होता है। मनोविज्ञान के अध्ययन से पता चलता है कि लोगों के साथ संपर्क में रहने से आयु में वृद्धि होती है और तनाव कम होता है। अध्ययनों से सिद्ध हो गया है कि जो रोगी उचित रूप से निरंतर दूसरों के संपर्क में रहते हैं दूसरों की तुलना में कि जो अकेले रहे हैं शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं।
विनोद व प्रसन्नता, भद्रता के कारकों में से एक है। दूसरे शब्दों में अत्यधिक गंभीरता संबंधों में दूरी का कारण बनती है। इसलिए कभी कभी विनोद व हास्य भी ज़रूरी है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विनोद बहुत ही कोमल व्यवहार है, अगर उचित नहीं होगा तो उसका विपरीत प्रभाव होता है। प्रसन्न करने के स्थान पर दुखी का कारण बनता है। अतः मज़ाक़ में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी के व्यक्तित्व को नुक़सान न पहुंचे और पूर्ण रूप से सम्मान बना रहे तथा मज़ाक़ करने वाले व्यक्ति के सम्मान पर भी आंच न आए।
हम पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के जीवन में विनोद व मज़ाक़ के उदाहरण देखते हैं कि जो उनके अच्छे स्वभाव को दर्शाता है। उन्हीं में से एक उदाहरण यह है कि, एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत अली (अ) खजूर खा रहे थे। पैग़म्बरे इस्लाम खजूर खाकर उसकी गुठली हज़रत अली (अ) के सामने रख देते थे। जब वे खजूर खा चुके तो हज़रत अली (अ) के सामने समस्त गुठलियों का ढेर लग गया। पैगम्बरे इस्लाम ने मज़ाक़ में हज़रत अली से कहा, अली तुम कितना ज़्यादा खाते हो, हज़रत अली ने विनोद के साथ उत्तर दिया कि ज़्यादा खाने वाला वह है कि जिसने खजूरों को उसकी गुठलियों के साथ खा लिया।
यूनुस बिन शीबान नामक एक व्यक्ति का कहना है कि इमाम सादिक़ (अ) ने मुझ से कहा, मित्रों और भाईयों के साथ तुम कितना मज़ाक़ करते हो? मैंने कहा बहुत कम, उन्होंने कहा कि इस तरह नहीं करो, (बल्कि मध्यम रास्ता अपनाओ), इसलिए कि मज़ाक़ सुशीलता का भाग है और तुम अपने मज़ाक़ से अपने भाई को ख़ुश करते हो।
इमाम बाक़र (अ) का कथन है कि ईश्वर उस व्यक्ति को पसंद करता है कि जो साथियों के बीच मज़ाक़ करता है, इस शर्त के साथ कि उसके मज़ाक़ में अपमान न हो।
कार्यक्रम के अंत में प्रसन्नता एवं ख़ुशी प्राप्ति के लिए कुछ सिफ़ारिशें पेश हैं।
ईश्वर पर भरोसा रखिए और अतीत की समस्याओं के बारे में कम सोचिए। अपेक्षा कम रखिए और हर बुरी घटना में यह मत भूलिए कि उसमें तुम्हारे लिए लोक या परलोक की भलाई है। कामों में ख़ुद को बहुत नहीं थकाओ और सही मात्रा में सोएं और खाना खाएं। व्यायाम करें, यहां तक कि अगर केवल हर दिन आधा घंटे कसरत के रूप में हो। हरे भरे स्थानों की सैर करें। इसी प्रकार छोटी समस्याओं को अपने दिमाग़ में बड़ा नहीं करें।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

संतुलित परिवार में पति पत्नी की ...
वहाबियत, वास्तविकता व इतिहास 5
यमन में अमरीका, इस्राइल और सऊदी ...
अज़ादारी परंपरा नहीं आन्दोलन है 1
हसद
विलायत पर हदीसे ग़दीर की दलालत का ...
सूरए आराफ़ की तफसीर 2
वहाबियत, वास्तविकता और इतिहास-10
पैग़म्बरे इस्लाम की निष्ठावान ...
वहाबियत, वास्तविकता और इतिहास-7

 
user comment