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Friday 29th of March 2024
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शबे कद़र के मुखतसर आमाल

शबे कद़र के मुखतसर आमाल

19,21,23 रमज़ानुल मुबारक की रात के आमाल

 

1) इन रातो मे गुस्ल करना सुन्नते मुअक्केदा है।

 

2) दो रकत नमाज़ सुबह की तरह पढ़ी जाऐ और हर रकत मे सात मरतबा क़ुलहो वल्लाहो अहद पढ़ी जाऐ और नमाज़ तमाम करे।

 

3) नमाज़ के बाद सत्तर (70) मरतबा असतग़ फिरुल्ला व अतुबो इलेह पढ़े।

 

4) कुरआने मजीद को हाथ मे लेकर चेहरे के सामने खोले और इस तरह दुआ पढ़ेः अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका बेकिताबेकल मुनज़ले व मा फिहे व फीहिस्मोकल अकबरो व असमाओकल हुस्ना। वमा युखाफो व युरजा। अनतजअलनी मिन उताकाऐका मिनन नार।

 

इस के बाद दुआ मांगे।

 

और फिर कुरआन को सर पर रखे और पढ़ेः अल्लाहुम्मा बेहक्के हाज़ल क़ुरआने व बेहक़्क़े मन अरसलताहु व बेहक़्क़े कुल्ला मोमेनिन मदहताहु फिहे व बेहक़्क़े का अलैहिम फला अहदा आरफो बेहक़्क़े मिनका बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह। बेका या अल्लाह।

 

फिर दस मरतबा कहेः बेमुहम्मादिन।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे अलीयीन।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे फातेमाता।

 

फिर दस मरतबा कहेः बिलहसने।

 

फिर दस मरतबा कहेः बिलहुसैने।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे अलीयिबने हुसैन।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे मौहम्मद इब्ने अली।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे जाफर इब्ने मौहम्मद।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे मूसा इब्ने जाफर।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे इली इब्ने मूसा

 

फिर दस मरतबा कहेः बे मौहम्मद इब्ने अली।

 

फिर दस मरतबा कहेः बे अली इब्ने मौहम्मद।

 

फिर दस मरतबा कहेः बिल हसन इब्ने अली।

 

फिर दस मरतबा कहेः बिल हुज्जतिल क़ायेमे (अ.स)।

 

उस बाद कुरान को हाथो मे ले और दुआ मांग कर रख दे।

 

5) इन रातो मे ज़ियारते इमाम हुसैन पढ़ने की बहुत ज्यादा ताकीद की गई है।

 

6) ज़्यादा से ज़्याजा सलवात पढ़े।

 

7) दुआऐ जौशन कबीर और जौशन सग़ीर पढ़े।

 

8) पूरी रात जागते रहे और दुआऐ पढ़ते रहे।

 

उनीसवी और इकीसवी शब के उपर दिये गऐ आमाल के अलावा सौ मरतबा (अल्लाहुल अन कतलता अमीरिल मोमेनीन) भी पढ़े।

 

 

तरजुमा दुआ ऐ जोशन सग़ीर

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद

बिस्मिल्ला हिर रहमा निर रहीम

ख़ुदा के नाम से शुरू , जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है!

मेरे माबूद कितने ही दुश्मनों ने मुझ पर अदावत की तलवार खींच रखी है और मेरे लिये अपने खंजर की धार तेज़ कर ली है

और इसकी तेज़ नोक मेरी तरफ़ कर रखी है और मेरे लिये ज़हर बुझे हुए क़ातिल तैयार कर रखे हैं

और अपने तीरों के निशाने मुझ पर बाँध लिये हुए हैं और इसकी आँख मेरी तरफ़ से झपकती नहीं और ईस ने मुझे तकलीफ देने की ठान रखी है और मुझे ज़हर के घूँट पिलाने पर आमादा है ,

लेकिन तू ही है जिस बड़ी सख्तियों की मुकाबिल मेरी कमज़ोरी और मुझ से मुक़ाबला करने का क़सद रखने वालों के सामने मेरी नाताक़ी और मुझे

पर योरिश करने वालों के दरम्यान मेरी तन्हाई क़ो देखा जो मुझे ऐसी तकलीफ़ देना चाहते हैं जिसका सामना करने का मैंने सोचा भी न था बस तुने अपनी क़ुव्वत से मेरी

हिमायत की और अपनी नुसरत से मुझे सहारा दिया और मेरे दुश्मन की तलवार क़ो कुंद कर दिया और तुने उन्हें रुसवा कर दिया जबकि क़ो वो अपनी बहुत बड़ी तादाद और सामान

के साथ जमा थे , तुने मुझे दुश्मन पर ग़ालिब किया और इसने मेरे लिये मकर व फ़रेब के जो जाल बुने थे

तुने मेरी जगह इनमे इन्ही क़ो फंसा दिया तो न इसकी तशनगी दूर हुई न इसके गुस्से के आग ठंडी हुई और

अफ़सोस के साथ इसने अपनी उंगलियाँ चबा लीं और वो पस्त हो गया जब इसके झंडे ग़िर पड़े! बस हम्द तेरे लिये ही है परवरदिगार की तू तवाना है

जिसकी शिकस्त नहीं होती और तो वो बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मुहम्मद (स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नेमतों का शुक्र

अदा करने वालों और पाने एहसानों के याद करने वालों में क़रार दे , ऐ माबूद किसी सरकशी ने मेरे खिलाफ़ मकर से मुझे पर ज़्यादती की और मुझे फांसने के लिये शिकारी

जाल बिछाया और मुझे अपनी फ़ुर्सत के सुपुर्द कर दिया और ईस तरह ताक लगाईं है जैसे दरिंदा अपने भागे हुए शिकार क़ो पकड़े जाने तक देखता रहता है

हालाकि यह शख्स मुझ से मिलने में खुशगवार और कुशादवर है और अस्ल में बद-नियत है

बस जब तुने इसकी बद-बातिनी क़ो और अपनी मिल्लत के एक फ़र्द के लिये इसकी ख़बासत क़ो देखा यानी मेरे लिये इसे सितमगर पाया तो इसे तुने सर के बल ज़मीन पर फ़ेंक दिया

और इसकी साख़त्गी क़ो जड़ से उखाड़ डाला , बस तुने इसे इसी के खोदे हुए कुँए में धकेला और इसीके खोदे हुए गढ़े में फेंका और तुने इसके

मुंह पर इसके पांव की ख़ाक डाली और इसके बदन और रिज्क़ में गुम कर दिया , इसे इसी की पत्थर से मारा और इसकी गर्दन इसके कमान से छेदी ,

इसका सर इसी के तलवार से उड़ाया और इसे मुंह के बल गिराया इसका मकर इसी की गर्दन में डाला और पशेमानी की ज़ंजीर इसके गले में डाल दी इसकी

हसरत से इसे फ़ना किया बस मेरा वोह दुश्मन अकड़बाज़ और ज़लील हुआ और घुटनों के बल गिरा और सरकशी व तुन्दी के बाद रुसवा हुआ

और अपने मकरो-फ़रेब की रस्सियों में जकड़ा गया , यह वो फन्दा है जिस में वो मुझे अपने तसल्लुत में देखना चाहता था और

ऐ परवरदिगार अगर तेरी रहमत मुझ पर न होती तो क़रीब था के मेरे साथ वोही होता जो इसके साथ हुआ , बस हम्द तेरे ही लिये है ,

ऐ परवरदिगार के तू वो तवाना है जिसे शिकस्त नहीं ,

तू वो बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता , मोहम्मद (स:अ:व:व) व आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फरमा और मुझे अपने नेमतों का शुक्र करने वालों और अपने एहसानों के याद करने वालीं में क़रार दे ,

खुदाया! मेरे कई हासिद हसरत से गुलुगीर हुए और दुश्मन गुस्से में जल भुन गए और तेज़ी ज़बान से मुझे अज़ीयत दी और मुझे अपनी आँखों की पलकों से ज़ख्मे जिगर लगाए और मुझे अपनी नफ़रत के तीरों का निशाना बनाया ,

मेरे गले में फन्दा डाला तो ऐ परवरदिगार मै ने तुझे लगातार पुकारा के तेरी पनाह लूं जो यक़ीनी है की तू जल्द क़बूलियत करने वाला है ,

मेरा भरोसा तेरे हुस्ने दफ़ा 'अ पर रहा है जिसकी मुझे पहले ही मारेफ़त है ,

मै जानता हूँ की जो तेरे साया-ए-रहमत में आ जाए तो तू इसकी पर्दावारी नहीं करता और जो तुझ से मदद माँगता रहे मसाएब इसकी सरकोबी नहीं कर सकते ,

बस तू अपने क़ुदरत से तो मुझे दुश्मन की अज़ीयत से महफूज़ फ़रमा , बस हम्द तेरे ही लिये है! ऐ परवरदिगार! के तू वो तवाना है

जिसे शिकस्त नहीं होती तू वो बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) व आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फरमा और मुझे अपनी नेमतों का शुक्र अदा करने वालों

और अपने एहसानों के याद करने वालों में क़रार दे ,

खुदाया कितने ही ख़तरनाक बादलों क़ो तुने मेरे सर से हटाया और नेमतों के आसमान से मुझ पर मेंह बरसाया और इज़्ज़त व आबरू की नहरें जारी की

और सख्तियों के सर 'चश्मों क़ो ना 'पैद कर दिया और रहमत का साया फैला दिया और आफ़ियत की जिरह पहना दी और दुखों के भवर तोड़ कर रख दिए और जो कुछ हो रहा था

इसे क़ाबू कर लिया जो तू करना चाहे इससे आजिज़ नहीं और जिसका तू इरादा करे इसमें तुझे दुशवारी नहीं बस हम्द तेरे ही लिये है ऐ परवरदिगार के तू वो तवाना है जिसे शिकस्त नहीं होती और तू वो बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता ,

मोहम्मद (स:अ:व:व) व आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फरमा और मुझे अपनी नेमतों का शुक्र अदा करने वालों और अपने एहसानों के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ अल्लाह तुने बहुत सी ख़ुश ख्यालियों क़ो हक़ीक़त बना दिया और मेरी तंगदस्ती क़ो दूर फ़रमा दिया और मेरी बेचारगी क़ो मुझ से दूर किया और मार डालने वाले थपेड़ों से अमन दिया

और मुशक्क़त की बजाये राहत दी जो तू करे मेरे दुश्मन ईस पर तुझे कुछ कह नहीं सकते की वो तेरे सामने जवाबदेह हैं , अता व बख्शीश से तेरा खज़ाना कम नहीं होता ,

जब भी तुझ से माँगा गया तो तुने अता किया और सवाल न किया गया तो भी तुने दिया और तेरी दरगाहे आली से जो तलब किया गया तुने ईस से दरेग़ न किया न ही देर की ,

मगर यह के नेमत दी और एहसान किया , और बहुत ज़्यादा दिया!

ऐ परवरदिगार तुने खूब दिया और मैंने तो तेरी हुर्मतों क़ो तोड़ा और तेरी नाफ़रमानी करने में जुर्रत की और तेरी हदों से तजावुज़ किया ,

और तेरे डराने के बावजूद बे-परवाई की , और अपने और तेरे दुश्मनों की इता 'अत की , लेकिन ऐ मेरे परवरदिगार! ऐ मेरे मददगार मेरी ना-शुक्री पर तुने अपने एहसान क़ो मुझ से नहीं रोका ,

और मेरी ना-फर्मानियाँ ईन इनायतों में आड़े नहीं आईं , ऐ माबूद! यह हाल है तेरे ईस ज़लील बन्दे का जो तेरी तौहीद क़ो मानता है ,

और खुद क़ो तेरे हक़ की अदाएगी में कसूरवार गर्दान्ता है और गवाही देता है के तूने ईस पर नेमत की बारिश फ़रमाई और इसके साथ अच्छा बर्ताव किया और ईस पर तेरा एहसान ही एहसान हैबस

ऐ मेरे माबूद और ऐ मेरे आक़ा मुझे अपने फज़ल से मुझे वो रहमत नाज़िल फ़रमा जिस का ख्वाहाँ हूँ ताकि मै इसे जीना बना कर तेरी रज़ाओं तक पहुँच पाऊँ और तेरी नाराज़गी से बच सकूँ ,

तुझे वास्ता है अपनी इज़्ज़त व सखावत और अपने नबी मुहम्मद (स:अ:व:व) का , बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और

मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ माबूद बहुत से बन्दे ऐसे हैं जो मौत की शिकंजे में सुबह और शाम करते हैं जब की दम सीने में घुट जाता है और आँखें वो चीज़ देखती हैं जिस से बदन काँप उठता है

और दिल घबराहट में जाता है और मै ईन हालातों में अमन में रहा हूँ बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और

अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , ऐ माबूद बहुत से ऐसे बन्दे हैं जो सुबह और शाम करते हैं बीमारी और दर्द में आह 'ज़ारी के साथ और ग़म से बे 'क़रार होते हैं ,

न कोई चारा रखते हैं , न इन्हें खाने पीने का मज़ा भला लगता है , लेकिन मै जिस्मानी लिहाज़ से तंदुरुस्त और ज़िंदगी के लिहाज़ से आराम में हूँ

और सब तेरा ही करम है बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों

और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , ऐ माबूद बहुत से ऐसे बन्दे हैं जो सुबह और शाम करते हैं डरे हुए दबे हुए सहमे हुए , कांपते हुए ,

भागे हुए दुत्कारे हुए तंग कोठरी में घुसे हुए और ओट में छुपे हुए के यह ज़मीन अपनी वुस 'अतों के बा 'वजूद इनके लिये तंग है ,

न ईन का कोई वसीला है न निजात का ज़रिया , और न पनाह की जगह है , जबकि मै ईन बातों से अमन व चैन और आराम व आसाइश में हूँ बस हम्द तेरे ही लिये है ,

ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा

और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ माबूद बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की जबकि दुश्मनों के हाथों हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े हैं के इनपर रहम नहीं किया जाता , वो अपने ज़न व फ़र्ज़न्द से जुदा ,

कैदे तन्हाई में हैं अपने शहर और अपने भाइयों से दूर हर लम्हा ईस ख़्याल में हैं

के इन्हें किस तरह क़तल किया जाएगा और किस किस तरह ईन के जोड़ काटे जायेंगे और मै ईन सब सख्तियों से महफूज़ हूँ बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है ,

जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों

और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ माबूद बहुत से ऐसे बन्दे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की ,

हालते जंग और मैदाने किताल में जबकि इनपर दुश्मन छाये हुए हैं और हर तरफ़ से इनपर आब्दारे शम्शीरी और तेज़ धार नैज़े और दीगर असलहा के वार हो रहे हैं

इनकी हिम्मत टूट चुकी है , वो नहीं जानते के अब क्या करें कोई जगह नहीं जहां भाग के चले जाएँ ,

वो ज़ख्मों से चूर हैं या अपने खून में गलताँ गोदों की सुमों के ज़द में बे बस पड़े हैं वो एक घूँट पानी क़ो तरस रहे हैं या अपने ज़न व फ़र्ज़न्द क़ो देखने क़ो तड़प रहे हैं

और इनती ताक़त नहीं रखते , और मै ईन सब दुखों से बचा हुआ हूँ , बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने

एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , ऐ माबूद बहुत से बन्दे ऐसे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की समुन्दरों की तारीकियों और बाद व बारां के बला खेज़ तूफानों में बीफरी

हुई मौजों के खतरों में जब के इन्हें डूब के मर जाने का खौफ़ हो वो ईस से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं पाते या वो घर चमकती बिजलियों में घिरे हुए हैं

या बे मौत मर जाने या जल जाने या दम घुट जाने या ज़मीन में धंसने या सूरत बिगड़ने या बेमारी के हाल में हैं और मै ईन सारी तकलीफों से अमन में हूँ

बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले

मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ माबूद बहुत बन्दे ऐसे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की हालत-ए-सफ़र में अपने ज़न व फ़र्ज़न्द से दूर ब्याबानों में रास्ता भूले हुए हैं ,

वो वहशी दरिंदों , चौपायों और कांटे वाले कीड़े मकोड़ों में यकता व तन्हा परेशान हैं जहां इनका कोई चारा नहीं और न इन्हें कोई राह सूझती है या सर्दी में ठीठरते या

गर्मी में जलते हैं या भूक या उरयानी वगैरा ऐसे सख्तियों में गिरफ्तार हैं जिन से मै एक तरफ़ हूँ और ईन सब दुखों से आराम में हूँ बस हम्द तेरे ही लिये है ,

ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और

मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , ऐ माबूद , ऐ मेरे आका बहुत से बन्दे ऐसे हैं जो सुबह व शाम करते हैं

जबकि वो मोहताज , बे ख़र्च , बे लिबास बे नवासिर नगूं , गोशा नशीं , ख़ाली पेट , और प्यासे हैं वो देखते हैं की कौन आता है जो हमें खैरात दे

या ऐसा आब्रूमंद बंदा जो तेरे यहां मुझ से ज़्यादा इज्ज़तदार है और तेरी ईबादत और फरमाबरदारी में बढ़ा हुआ है वो हिकारत की क़ैद में है ,

ईस ने तकलीफों का बोझ अपने कन्धों पर उठा रखा है और गुलामी की सख्ती और बंदगी की तकलीफ और तलवार का ज़ख़्म खाए हुए या बड़ी मुसीबत में गिरफ्तार है

के जिन क़ो सह नहीं सकता सिवाए ईस मदद के जो तू करे और मुझे खिदमतगार नेमतें आफ़ियत और इज़्ज़त हासिल है , मै ईन चीज़ों से अमान में हूँ

बस हम्द तेरे ही लिये है , ऐ परर्दिगार के तू तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और

आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे ,

ऐ माबूद और ऐ मेरे मौला बहुत से ऐसे बन्दे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की जबकि वो अलील बीमार कमज़ोर व बदहाल हैं ,

बिस्तरे अलालत पर बीमारियों के लिबास में दायें बाएं करवटे बदल रहे हैं , इनको खाने की किसी चीज़ का जायेका नहीं और न कोई चीज़ पी सकते हैं ,

वो आप पर हसरत की नज़र डालते हैं की वो खुद क़ो कुछ फ़ायेदा या नुक़सान पहुंचाने पर क़ादिर नहीं और मै ईन दुखों से अमन में हूँ यह तेरा करम और तेरी

नवाज़िश है , बस तेरे सिवा कोई माबूद नहीं , तू पाक है ऐसा तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नेमतों का शुक्र करने वालों

और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , अपनी मेहरबानी से मुझ पर रहमत फ़रमा , ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले मेरे मौला और मेरे आक़ा ,

बहुत से बन्दे ऐसे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की जबकि इनकी मौत का वक़्त क़रीब आ गया है

और फ़रिश्ता-ए-अजल ने अपने साथियों समेत इन्हें घेर रखा है वो मौत की गशियों में ,

जाँ 'कुनी की सख्तियों में पड़े हैं , वो दायें बाएं नज़र घुमा घुमा कर अपने दोस्तों मेहरबानों और साथियों क़ो देखते हैं जबकि वो बोलने से कासिर और

गुफ्तगू करने से आजिज़ हैं , वो अपने आप पर हसरत की निगाह डालते हैं जिसके नफ़ा और नुक़सान पर क़ुदरत नहीं रखते

और मैं ईन तमाम मुह्किलों से महफूज़ हूँ यह तेरा करम और एहसान है बस तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू पाक है ऐसा तवाना है ,

जिसे शिकस्त नहीं होती , ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और

मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , और अपनी मेहरबानी से मुझ पर रहमत फ़रमा

ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले मेरे मौला मेरे आक़ा बहुत से बन्दे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की जब वो ज़िन्दानों और कैदखानों की

तंग कोठरियों में तकलीफों और ज़िल्लतों के साथ बेड़ियों में जकड़े एक निगराण से दूसरे सख्तगीर निगराण के हवाले किये जाते हैं

बस नहीं जानते के इनका क्या हाल होगा और इनका कौन कौन स जोड़ काटा जाएगा तो वो गुज़ारा मुश्किल और ज़िंदगी दुशवार है!

वो अपने आप क़ो हसरत की निगाह से देखते हैं की जिस के नफ़ा और नुक़सान पर अखत्यार नहीं रखते और मै ईन सब ग़मों से आज़ाद हूँ ,

यह तेरा करम और एहसान है बस तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू पाक है ऐसा तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और

मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , और अपनी मेहरबानी से मुझ पर रहमत फ़रमा ,

ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले मेरे सरदार और मौला बहुत से बन्दे हैं जिन्हों ने सुबह और शाम की जिन पर क़ज़ा वारिद हो चुकी है

और बलाओं ने इन्हें घेरा हुआ है और वो अपने दोस्तों मेहरबानों और साथियों से जुदा हैं और इन्हों ने काफिरों के हाथों क़ैदी ,

न 'पसंदीदा और ख़्वार होकर शाम की है और दुश्मन ईन क़ो दायें बाएं खींचते हैं जबकि वो काल कोठरियों में बंद हैं और बेड़ियाँ लगी हुई

वो ज़मीन पर फैलने वाले उजाले क़ो नहीं देख पाते और न कोई ख़ुशबू सूंघते हैं ,

वो अपने आप क़ो हसरत से देखते हैं के जिस के नफ़ा और नुक़सान पर वो कुछ भी अखत्यार नहीं रखते और मै ईन सब तंगियों से अमन में हूँ

यह तेरा करम और एहसान है , बस तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू पाक है ऐसा तवाना है , जिसे शिकस्त नहीं होती ,

ती बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझे अपनी नामेताओं का शुक्र करने वालों

और अपने एहसान के याद करने वालों में क़रार दे , और अपनी मेहरबानी से मुझ पर रहमत फ़रमा , ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले ,

वास्ता है तेरी इज़्ज़त का ऐ करीम की मै वो तलब करता हूँ जो तेरे पास है और बार बार मांगता हूँ और तेरे आगे हाथ फैलाता हूँ अगर्चेह यह तेरे यहाँ

मुजरिम है ऐ परवरदिगार फिर किस की पनाह लूँ और किस से अर्ज़ करूँ सिवाए तेरे मेरा और कोई नहीं क्या तू मुझे हँका देगा जबकि तू ही मेरा तक्या है

और तुझी पर मेरा भरोसा है , ,मै तेरे ईस नाम के ज़रिये सवाल करता हूँ जिसे तुने आसमानों पर रखा तो वो मुस्तक़िल हो गए और ज़मीन पर रखा तो

क़ायेम हो गयी और पहाड़ियों पर रखा तो वो अपनी जगह जम गए और रात पर रखा तो वो काली हो गयी और दिन पर रखा तो वो चमक उठा , हाँ तू

मुहम्मद और आले मुहम्मद पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी तमाम हाजतें पूरी कर दे और मेरे सभी गुनाह माफ़ फ़रमा दे , छोटे भी और बड़े भी ,

और मेरे रिज्क़ में फराकी फ़रमा की जिस से मुझे दुन्या व आख़ेरत में इज़्ज़त हासिल हो , ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले मेरे मौला मै भी तुझी से मदद माँगता हूँ ,

बस मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी मदद कर मै तेरी पनाह लेता हूँ ,

बस मुझे पनाह दे और अपनी इता 'अत के ज़रिये मुझे अपने बन्दों की इता 'अत से बे 'नेयाज़ कर दे ,

अपना सवाली बना कर लोगों का सवाली बन्ने से बचा ले और फ़िक्र (भीख) की ज़िल्लत से निकाल कर बे नेयाज़ी की इज़्ज़त दे और ना 'फ़रमानी की

ज़िल्लत के बजाये फरमाबरदारी की इज़्ज़त दे , तुने मुझे अपने कसीर बन्दों पर जो बड़ाई दी है वो महज़ तेरा फ़ज़ल व करम है , न यह के मै ईस का हक़दार हूँ ,

ऐ माबूद तेरे ही लिये हम्द है की तुने यह मेहरबानियाँ फ़रमायीं मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे अपनी

नेमतों के शुक्र्गुज़ारों और अपने एहसानों क़ो याद करने वालों में क़रार दे

फिर सजदे में जाएँ और कहें

मेरे कमतर चेहरे ने तेरी ज़ाते अज़ीज़ ओ जलील क़ो सजदा किया , मेरे फामी व पस्त चेहरे ने तेरी हमेशा क़ायेम रहने वाली ज़ात क़ो सजदा किया , मेरे मोहताज चेहरे ने तेरी बे 'नेयाज़ व बुलंद ज़ात क़ो सजदा किया ,

मेरे चेहरे कान आँख गोश्त खून चमड़े और हड्डी ने और मेरा जो कुछ रुए ज़मीन पर है ईस ने आलमीन के रब क़ो सजदा किया! खुदाया मेरी जहालत क़ो बुर्दबारी से ढांप ले ,

मेरी मोहताजी पर अपनी दौलत बरसा दे , मेरी पस्ती क़ो अपनी बुलंदी व अखत्यार से दूर फ़रमा और मेरी कमजोरी क़ो अपनी क़ुव्वत से दूर कर दे

और मेरे खौफ़ क़ो अपने अमन से मिटा दे और मेरी खताओं और गुनाहों क़ो अपनी रहमत से बख्श दे , ऐ रहम वाले , ऐ मेहरबान , ऐ अल्लाह ,

मै तेरी पनाह लेता हूँ फलां बिन फलां के हमलों से और ईस के शर से तेरी पनाह चाहता हूँ बस इससे मेरी किफ़ायत कर जैसे अपने अंबिया की और औलिया की अपने

मख्लूक़ से अपने नेक बन्दों की किफ़ायत फ़रमाई , अपने मख्लूक़ में से सरकशों और शरीरों से जो तेरे दुश्मन थे और सारी मख्लूक़ के शर से अपनी रहमत के साथ ,

ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले , बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है , और अल्लाह हमारे लिये काफ़ी है जो बेहतरीन कारसाज़ है!

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