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इमाम जाफ़र सादिक़ अ. आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में

इमाम सादिक़ अ. एक मुजाहिद (परिश्रमी) इन्सान थे, एक आलिम थे, और एक बहुत बड़े सिस्टम व नेटवर्क के लीडर थे। उनके आलिम होने के बारे में सब जानते हैं। इमाम सादिक़ अ. ने एजूकेशन का जो सिलसिला शुरू किया था वह सारे इमामों के ज़माने से बेहतर और ला जवाब था।
इमाम जाफ़र सादिक़ अ. आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में

 इमाम सादिक़ अ. एक मुजाहिद (परिश्रमी) इन्सान थे, एक आलिम थे, और एक बहुत बड़े सिस्टम व नेटवर्क के लीडर थे। उनके आलिम होने के बारे में सब जानते हैं। इमाम सादिक़ अ. ने एजूकेशन का जो सिलसिला शुरू किया था वह सारे इमामों के ज़माने से बेहतर और ला जवाब था।
इमाम सादिक़ अ. एक मुजाहिद (परिश्रमी) इन्सान थे, एक आलिम थे, और एक बहुत बड़े सिस्टम व नेटवर्क के लीडर थे। उनके आलिम होने के बारे में सब जानते हैं। इमाम सादिक़ अ. ने एजूकेशन का जो सिलसिला शुरू किया था वह सारे इमामों के ज़माने से बेहतर और ला जवाब था। चाहे वह उनसे पहले के इमामों का युग हो या उन के बाद के इमामों का समय। इस्लाम की सही जानकारी और क़ुरआने पाक की वास्तविक तफ़सीर जिसे एक सदी या उससे ज़्यादा तक भुला दिया गया था या उसमें फेर बदल कर दिया गया था उसे इमाम सादिक़ (अ.) ने ज़िन्दा किया और सही तरीक़े से बयान किया। लेकिन इमाम के मुजाहिद होने के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं इमाम एक बहुत बड़े जेहाद में बिज़ी थे जिसका मैदान बहुत बड़ा था इमाम का यह जेहाद हुकूमत हासिल करने और एक इस्लामी और अलवी हुकूमत की नींव डालने के लिये था यानी इमाम इस चीज़ की तैयारी कर रहे थे कि बनी उमय्या की हुकूमत को गिरा के उसकी जगह एक अलवी हुकूमत बनाएं जो कि सही और सच्ची हुकूमत हो। इमाम के बारे में तीसरी अहेम बात जो शायद ही किसी ने सुनी हो वह यह है कि इमाम का पूरी दुनिया में एक नेटवर्क था ख़ुरासान से उत्तरी अफ़्रीका तक इमाम के चाहने वालों, उन के मानने वालों, मोमिनों और अलवी हुकूमत के तरफ़दारों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क था यानी जब इमाम अपने चाहने वालों तक कोई मैसेज पहुँचाना चाहते थे तो इस्लामी दुनिया में रहने वाले उनके नुमाइंदे (एजेंट) सब तक वह संदेश पहुँचा देते थे या वह हर जगह से इमाम के लिये पैसा, ख़ुम्स, ज़कात जमा करके इमाम की सेवा में भेजते थे ताकि वह उनके द्वारा अपने जेहाद को जारी रखें। इमाम ने सभी शहरों में अपने नुमाइंदे रखे थे जो इमाम से जुड़े होते थे ताकि लोग अपने दीनी और सियासी समस्याओं में उनसे राय लें। सियासी ज़िम्मेदारी भी दीनी और शरई ज़िम्मेदारी की तरह वाजिब है। इमाम ने इस तरह का एक मज़बूत नेटवर्क बनाया हुआ था वह इस नेटवर्क के ज़रिये और लोगों की मदद से बनी उमय्या के ख़िलाफ़ जिहाद कर रहे थे। जब बनी उमय्या पर उनकी कामयाबी यक़ीनी हो गयी तो बनी अब्बास ने मौक़े से फ़ायदा उठाया और वह बीच में कूद पड़े फिर इमाम सादिक़ अ. का जेहाद बनी अब्बास के ख़िलाफ़ भी शुरू हो गया


source : wilayat.in
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