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इमाम हुसैन का आन्दोलन-6

इमाम हुसैन का आन्दोलन-6

इमाम हुसैनं अलैहिस्सलाम के आंदोलन की एक बड़ी विशेषता यह थी कि इस आंदोलन से जुड़े हर व्यक्ति में शहादतप्रेम की भावना अपनी चरम सीमा पर थी। शहादत उस मौत को कहते हैं जो महान व्यक्तियों के भाग्य में लिख दी जाती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों में शहादत और महान लक्ष्यों के लिए बलिदान की भावना सबके मुख पर तेज बनकर चमक रही थी। नौ मोहर्रम का दिन बीता और आशूर की रात आ गई तो इमाम हुसैन के साथियों के चेहरे और भी दमकने लगे। यह रात बड़ी विचित्र रात थी। इस रात इमाम हुसैन के साथियों ने यह किया कि एक एक करके उठे और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास जाकर अपनी निष्ठा की पुनरावृत्ति की और सत्य के मार्ग में जान दे देने का संकल्प दोहराया। कहीं किसी के चेहरे पर किसी प्रकार की चिंता या घबराहट का कोई भाव नहीं था। इससे यह संदेश मिलता है कि आस्था के मार्ग में जीवन की बलि चढ़ा देना और ईश्वर के मार्ग में शहादत को गले लगाना उन महान लोगों की हार्दिक कामना होती है जो भौतिकवादी संबंधों से मुक्ति प्राप्त करके शहादत की छत्रछाया में अमर जीवन के लिए स्वयं को समर्पित कर चुके हों। ईश्वर ने क़ुरआने मजीद की विभिन्न आयतों में शहादत तथा सत्य के मार्ग में मृत्यु का उल्लेख किया है। क़ुरआन के सूरए तौबा की आयत नम्बर 111 में ईश्वर ने कहा है कि अल्लाह ने स्वर्ग के बदले मोमिन इंसानों की जान और उनका माल ख़रीद लिया है। वह मोमिन इंसान जो ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करते हुए दूसरों को मारते और स्वयं भी मारे जाते हैं। यह ईश्वर का सच्चा वादा है जिसका उसने तौरैत, इंजील और क़ुरआन में उल्लेख किया है। कौन है जो ईश्वर से बढ़कर अपने वचनों पर कटिबद्ध हो। आप लोगों के लिए ख़ुशख़बरी है कि आपने ईश्वर से सौदा किया और यही महान सफलता है।इस्लामी संस्कृति में शहादत का महत्व इतना अधिक है कि धार्मिक महापुरुष सदैव यह कामना करते थे कि उन्हें शहादत का सौभाग्य मिले। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का एक कथन है कि एक भलाई, दूसरी सभी भलाइयों से श्रेष्ठ है और वह है ईश्वर के मार्ग में जान दे देना, अतः यदि कोई ईश्वर के मार्ग में मारा जाए तो इससे बड़ी कोई भलाई नहीं है।पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनों में शहादत को मृत्यु का सबसे महान रूप बताया गया है और शहीद के ख़ून की हर बूंद ईश्वर के निकट अत्यंत मूल्यवान है। शहीद वे लोग हैं जो स्वर्ग में सबसे पहले जाएंगे और दूसरे लोग शहीदों का महान स्थान देखकर उसकी कामना करेंगे। शहादत का अर्थ होता है गवाही देना, ईश्वर के मार्ग में आने वाली मौत को शहादत का नाम इस लिए दिया गया है कि ईश्वर के फ़रिश्ते प्रलय के मैदान में उपस्थित होकर इसकी गवाही देंगे, इसी प्रकार ईश्वर और उसके दूत गवाही देंगे कि ईश्वर के मार्ग में जान देने वाले लोग स्वर्ग के निवासी हैं। क़ुरआने मजीद में अनेक स्थानों पर शहीदों के बारे में कहा गया है कि वे जीवित हैं। जैसे सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 154 में ईश्वर ने कहा है कि जो लोग ईश्वर के मार्ग में मारे गए हैं उन्हें मृत न कहो, बल्कि वे जीवित हैं किंतु तुम इस बात को नहीं समझ पाते।ईश्वर के सच्चे बंदे सत्य के मार्ग में शहादत को अपने लिए बड़ा गौरव मानते हैं क्योंकि उन्हें इस तथ्य का ज्ञान है कि ईश्वर के मार्ग में जान देते ही उनके अस्तित्व के भीतर नई ज्योति उत्पन्न हो जाती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी ईश्वर के मार्ग में जीवन के बलिदान को अपमानित जीवन पर प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ईश्वर के मार्ग में शहीद हो जाना बहुत गहरे प्रभाव का स्रोत है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा यज़ीद के दरबार में शहादत पर गर्व करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करती हैं जिसने उनके भाग्य में शहादत लिखी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम भी यज़ीद के गवर्नर इब्ने ज़ियाद के दरबार में कहते हैं कि शहादत हमारा गौरव है, तू हमें मौत से डराने का प्रयास न कर।शहादत का गौरव इमाम हुसैन के छह महीने के शिशु हज़रत अली असग़र को भी मिला। हज़रत अली असग़र, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना से नन्हे सिपाही थे जिन्होंने कर्बला के मैदान में अपनी जान न्योछावर करके इमाम हुसैन के आंदोलन को बल प्रदान किया।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर्बला के मैदान में चारों ओर नज़र दौड़ाते हैं, कहीं कोई साथी दिखाई नहीं देता। अब न क़ासिम हैं, न अकबर हैं, न भाई अब्बास। सारे बहादुरों के शव कर्बला की तपती ज़मीन पर पड़े हुए हैं। सब अपने वचन को पूरा करके स्वर्ग की ओर रवाना हो चुके हैं। हुसैन को विचित्र सा आभास हो रहा है। कुछ ही घंटे पहले वे जिधर नज़र डालते थे, चाहने वाले साथी दिखाई देते थे। बनी हाशिम घराने के चांद चमकते थे और अब दूर दूर तक कोई नहीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ऊंची आवाज़ में कहते हैं कि है कोई जो मेरी मदद करे। क्या कोई है जो पैग़म्बरे इस्लाम के घराने की रक्षा करे। यज़ीद के सिपाहियों के दिल तो मानो पत्थर हो गए थे, उनके कान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के नवासे की आवाज़ नहीं सुन रहे थे, उनकी आंखें कुछ भी नहीं देख रही थीं। इमाम हुसैन की इस आवाज़ के जवाब में ख़ैमे के भीतर से अचानक रोने की आवाज़ आई। इमाम हुसैन ख़ैमे की ओर गए और पूछा कि यह रोने की आवाज़ कैसी है? जवाब मिला कि आपकी सेना के नन्हे सिपाही अली असग़र ने आपकी आवाज़ी सुनी तो स्वयं को झूले से गिरा दिया। अली असग़र की दशा यह थी कि ज़बान सूखी हुई थी और होठों पर पपड़ियां जमी हुई थीं। इमाम हुसैन ने कहा कि लाओ बच्चे को मुझे दे दो मैं उसे पानी पिला लाऊं।इमाम हुसैन ने जब अली असग़र को मैदान में ले जाने के लिए कहा तो ख़ैमे में इमाम हुसैन के क़ाफ़िले की महिलाएं बारी-बारी अली असग़र को अपनी गोद में लेने लगीं। अली असग़र, इमाम हुसैन की गोद में आए। हुसैन ने कांपते हाथों से असग़र को उठाया और बच्चे को लेकर मैदान की ओर से गए। इमाम हुसैन ने यज़ीदी सेना को संबोधित करते हुए कहा कि यदि तुम्हारी दृष्टि में मैं गुनहगार हूं तो इस बच्चे ने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है। इसने तुममें से किस का दिल दुखाया है? अली असग़र के रोने की आवाज़ बुलंद होती है। शायद वह अपने पिता की इस दशा पर रो रहे थे कि उन्हें शत्रु सेना से पानी मांगना पड़ा।इस स्थिति को देखकर यज़ीदी सिपाही आपस में बातें करने लगे और यज़ीदी सेना के कमांडर उमरे साद को यह भय सताने लगा कि कहीं बात बिगड़ न जाए। उसने तीर अंदाज़ी में विख्यात हुर्मुला को आदेश दिया कि हुसैन के शिशु का काम तमाम कर दे। हुर्मुला ने भी ऐसी क्रूरता और पाश्विकता का प्रदर्शन किया कि सब कांप गए। उसने तीन फलों वाला भारी तीर अपनी कमान पर चढ़ाया और छः महीने के शिशु के गले का निशाना लेकर मारा। तीर अली असग़र के छोटे से गले पर लगा और गले को काटता हुआ इमाम हुसैन के बाज़ू में चुभ गया। इमाम हुसैन भी स्तब्ध रह गए। हुसैन ने सुबह से अपने साथियों की लाशें उठायी थीं किंतु छह महीने के बच्चे की लाश का भार हुसैन के हाथ नहीं संभाल पा रहे थे। हुसैन कांप रहे थे। वे अली असग़र को लेकर ख़ैमे की ओर बढ़ते हैं किंतु कुछ सोचकर फिर पांव पीछे खींच लेते हैं। यह क्रिया इमाम हुसैन ने सात बार दोहराई। शायद इमाम हुसैन, अली असग़र को इस स्थिति में लेकर ख़ैमे में जाने का साहस जुटाने का प्रयास कर रहे थे। ख़ैमे के भीतर स्थिति यह है कि अली असग़र की मां उम्मे रबाब को अपने बच्चे की प्रतीक्षा है, अली असग़र की चार साल की बहन सकीना ख़ैमे का पर्दा पकड़े खड़ी हैं। सबको शिशु की प्रतीक्षा है। इतने में इमाम हुसैन ख़ैमे के निकट पहुंचे। औरतें दौड़कर आगे आ गईं। इमाम हुसैन अ


source : www.abna.ir
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